128 स्लम एरिया में सिर्फ दो नोटिफाइड! राम टेक की रिपोर्ट पर नगर निगम भी हैरान

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Last Updated:October 29, 2025, 18:06 IST

Dehradun latest news : नगर निगम ने 2022 में टेक्नोलॉजी की मदद से पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने का सपना देखा था. राम टेक नामक निजी कंपनी को 5 करोड़ रुपये में जीआईएस सर्वे का ठेका दिया गया था ताकि शहर की हर प्रॉपर्टी, निगम की संपत्तियों और अतिक्रमण का सटीक ब्योरा मिल सके. लेकिन सर्वे रिपोर्ट के नतीजों ने निगम और शहरवासियों को चौंका दिया. अब यह पूरा प्रोजेक्ट सवालों के घेरे में है.

128 स्लम एरिया में सिर्फ दो नोटिफाइड! राम टेक की रिपोर्ट पर नगर निगम भी हैरान5 करोड़ का जीआईएस सर्वे… और डेटा अधूरा, न निगम संपत्तियों की पूरी लिस्ट मिली, न अतिक्रमण का ब्योरा

देहरादून. नगर निगम का इरादा था कि जीआईएस सर्वे से देहरादून की हर संपत्ति की पहचान होगी, टैक्स वसूली आसान होगी और अतिक्रमण खत्म किया जा सकेगा. लेकिन जब राम टेक कंपनी ने सर्वे रिपोर्ट सौंपी, तो उसमें अनेक विसंगतियां सामने आईं. कंपनी ने 100 वार्डों में सिर्फ़ 3,20,100 मकानों का विवरण दिया, जिनमें 2,05,758 रेजिडेंशियल और 52,878 कमर्शियल बताए गए. लेकिन शहर के वास्तविक आकार और जनसंख्या के हिसाब से यह आंकड़ा काफी कम है. सर्वे रिपोर्ट में देहरादून के 128 स्लम एरिया का जिक्र किया गया, लेकिन इनमें से केवल दो को भविष्य में “नोटिफाइड” बताया गया. शहर के बड़े हिस्से, जैसे रिस्पना और बिंदाल नदी किनारे के झुग्गी-बस्तियां, सर्वे में सतही तौर पर ही शामिल की गईं. यानी जहां सबसे बड़ी अतिक्रमण और संपत्ति संबंधी चुनौतियां थीं, वहां सर्वे की गहराई दिखाई ही नहीं दी. इससे सवाल उठे कि क्या कंपनी ने वास्तव में जमीनी स्तर पर सर्वे किया या केवल कागज़ी आंकड़े तैयार कर दिए.

नगर निगम का दावा, टैक्स वसूली में मदद मिलेगी

देहरादून नगर निगम की आयुक्त नमामि बंसल का कहना है कि इस सर्वे से निगम को संपत्ति कर (हाउस टैक्स) वसूली में मदद मिलेगी. उनके अनुसार, यह डेटा अब टैक्स रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने में उपयोग किया जाएगा. हालांकि, एक्टिविस्ट अनूप नौटियाल का कहना है कि सर्वे का उद्देश्य केवल टैक्स वसूली नहीं, बल्कि अतिक्रमण की सटीक पहचान और निगम की संपत्तियों का रिकॉर्ड तैयार करना भी था. लेकिन कंपनी का काम सिर्फ़ “गिनती” तक सीमित रह गया.

5 करोड़ का प्रोजेक्ट, पर नतीजा शून्य जैसा

राम टेक कंपनी को यह काम पूरा करने के लिए शहरी विकास विभाग से सीधे 5 करोड़ रुपये दिए गए थे. कंपनी को जिम्मेदारी थी कि वह यह बताए कि कौन-सी जमीन निगम की है, कौन-सी कब्जे में है, और कहां अवैध निर्माण हुआ है. लेकिन रिपोर्ट में न तो निगम की संपत्तियों की पूरी सूची मिली, न ही अतिक्रमण का स्पष्ट नक्शा. अब निगम के अंदर भी यह चर्चा है कि क्या 5 करोड़ रुपये का उपयोग सही तरीके से हुआ या सिर्फ़ कागज़ी सर्वे कर दिया गया.

एक्टिविस्ट बोले: जांच जरूरी, नहीं तो रिपोर्ट भी फाइलों में दबी रह जाएगी

सामाजिक कार्यकर्ता और अर्बन एनालिस्ट अनूप नौटियाल ने कहा कि देहरादून नगर निगम का यह जीआईएस सर्वे अब “टेक्नोलॉजी के नाम पर अपारदर्शिता” का उदाहरण बन गया है. उनका कहना है कि अगर इस प्रोजेक्ट की जांच नहीं हुई, तो यह रिपोर्ट भी किसी फाइल में “मर्ज” होकर रह जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि जीआईएस जैसी आधुनिक तकनीक पारदर्शिता लाने का जरिया बन सकती है, लेकिन सही निगरानी न होने पर यह केवल दिखावा बन जाती है.

अब निगाहें निगम की अगली कार्रवाई पर

शहर के नागरिकों और पारदर्शिता से जुड़े संगठनों की निगाहें अब नगर निगम की अगली कार्रवाई पर हैं. सवाल यह है कि क्या निगम इस अधूरे सर्वे की जांच करवाएगा या इसे भी कागज़ों में दफना दिया जाएगा. देहरादून जैसे तेजी से बढ़ते शहर के लिए यह सर्वे एक अवसर था, लेकिन नतीजों ने उस भरोसे को कमजोर कर दिया है जो नागरिकों ने टेक्नोलॉजी आधारित शासन से जोड़ा था.

Location :

Dehradun,Uttarakhand

First Published :

October 29, 2025, 18:06 IST

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