INSV कौंडिन्य: नट-बोल्ट नहीं, रस्सी से सिला नेवी का अनोखा शिप, ओमान हुआ रवाना

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Last Updated:December 29, 2025, 18:42 IST

INSV Kaundinya Oman Visit: भारतीय नौसेना का अनोखा जहाज INSV कौंडिन्य अपनी पहली 1,400 किलोमीटर की विदेश यात्रा पर ओमान के लिए रवाना हो गया है. 5वीं शताब्दी की तकनीक से बने इस जहाज में नट-बोल्ट या कील का इस्तेमाल नहीं हुआ है. इसके लकड़ी के ढांचे को नारियल की रस्सियों से सिला गया है. यह प्राचीन स्टिच्ड शिप पूरी तरह मानसूनी हवाओं के सहारे मस्कट तक का चुनौतीपूर्ण सफर तय करेगा.

 नट-बोल्ट नहीं, रस्सी से सिला नेवी का अनोखा शिप, ओमान हुआ रवानापीएम मोदी ने नेवी के इस जहाज की तस्‍वीरें शेयर की.

नई दिल्‍ली. कल्पना कीजिए समंदर की ऊंची लहरें हों, मानसूनी हवाओं का शोर हो और उनके बीच तैर रहा हो एक ऐसा जहाज जिसमें न कोई इंजन है, न कोई स्टील का पतरा और न ही एक भी लोहे की कील. यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि भारतीय नौसेना का हकीकत बन चुका वो डिजिटल और पारंपरिक चमत्कार है जिसे दुनिया INSV कौंडिन्य (INSV Kaundinya) के नाम से जान रही है. आज यानी सोमवार 29 दिसंबर 2025 को जब यह जहाज गुजरात के पोरबंदर से ओमान के मस्कट के लिए रवाना हुआ तो इसने सिर्फ समंदर की लहरों को नहीं काटा बल्कि 1500 साल पुराने इतिहास को फिर से जिंदा कर दिया.

आज जब कौंडिन्य 1,400 किलोमीटर की अपनी पहली विदेश यात्रा पर निकला है तो यह दुनिया को बता रहा है कि भारत की ताकत केवल स्टील के विमानवाहक पोतों में नहीं बल्कि उस प्राचीन ज्ञान में भी है जो हजारों सालों से हमारे खून में दौड़ रहा है. यह जहाज मस्कट तक केवल सामान लेकर नहीं जा रहा बल्कि भारत की सांस्कृतिक संप्रभुता का झंडा गाड़ने जा रहा है.

अजंता की गुफाओं से समंदर के सीने तक
इस जहाज की कहानी किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं है. INSV कौंडिन्य का डिजाइन किसी आधुनिक सॉफ्टवेयर से नहीं बल्कि अजंता की गुफाओं में बनी 5वीं शताब्दी की एक पेंटिंग से लिया गया है. वैज्ञानिकों और नौसेना के वास्तुकारों के पास कोई ब्लूप्रिंट नहीं था. उन्होंने केवल उन प्राचीन चित्रों और मूर्तियों का बारीकी से अध्ययन किया और एक ऐसी कलाकृति तैयार की जो आज समंदर में सीना तानकर खड़ी है.

न कील, न लोहा
इस जहाज की सबसे रोमांचक विशेषता इसकी बनावट है. आधुनिक जहाजों को वेल्डिंग और भारी कीलों से जोड़ा जाता है लेकिन INS कौंडिन्य की लकड़ियों को नारियल की जटाओं (Coir) से सिली गई रस्सियों से जोड़ा गया है.

·         स्टिच्ड शिप तकनीक: केरल के कुशल कारीगरों ने बाबू संकरण के नेतृत्व में कई महीनों तक कड़ी मेहनत कर लकड़ी के तख्तों को आपस में सिला है.

·         नेचुरल रेजिन का कवच: सिलाई के बाद इसे प्राकृतिक राल और तेलों से सील किया गया है ताकि पानी की एक बूंद भी अंदर न जा सके.

यह वही तकनीक है, जिसके दम पर प्राचीन भारतीय नाविक अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया तक व्यापार करते थे.

सांस्कृतिक प्रतीकों से लैस समुद्री योद्धा
‘कौंडिन्य’ केवल एक जहाज नहीं बल्कि भारत की विरासत का चलता-फिरता संग्रहालय है.

1.      गंडाभेरुंडा और सूर्य: जहाज के पाल पर पौराणिक पक्षी गंडाभेरुंडा और सूर्य के चित्र बने हैं जो शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक हैं.

2.      सिंह याली (Simha Yali): जहाज के अगले हिस्से पर एक शेर जैसी पौराणिक आकृति सिंह याली को तराशा गया है.

3.      हड़प्पा शैली का लंगर: इसकी डेक पर हड़प्पा काल की याद दिलाने वाला पत्थर का लंगर (Stone Anchor) रखा गया है, जो हमारी प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की समुद्री जड़ों को जोड़ता है.

इतिहास और आधुनिक विज्ञान का संगम
इस प्रोजेक्ट के लिए संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और होडी इनोवेशन ने हाथ मिलाया था. नौसेना ने न केवल इसके निर्माण की निगरानी की बल्कि इसका हाइड्रोडायनेमिक परीक्षण’ भी किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बिना इंजन वाला यह जहाज समंदर के तूफानों को झेल सके. इसका नाम उस महान भारतीय नाविक कौंडिन्य के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने सदियों पहले दक्षिण-पूर्व एशिया की समुद्री यात्रा की थी.

First Published :

December 29, 2025, 18:42 IST

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