Last Updated:October 25, 2025, 11:40 IST
General Knowledge, Artificial Rain in Delhi: दिल्ली में आर्टिफिशियल रेन यानी कृत्रिम बारिश की तैयारी अंतिम चरण में है. माना जा रहा है कि 29 अक्टूबर 2025 को देश की राजधानी दिल्ली में क्लाउड सीडिंग से कृत्रिम बारिश करवाई जा सकती है. लेकिन क्या इसी तरह से दिल्ली में बर्फबारी भी करवाई जा सकती है?
Artificial Snowfall: दिल्ली में आर्टिफिशियल स्नोफॉल की कितनी संभावना है?नई दिल्ली (General Knowledge, Artificial Rain in Delhi). राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हर साल नवंबर-दिसंबर में घने कोहरे, शीत लहर और दमघोंटू प्रदूषण से जूझती है. इससे निजात पाने के लिए कृत्रिम समाधानों पर विचार किया जाता है. माना जा रहा है कि प्रदूषण से निपटने के लिए 29 अक्टूबर 2025 को क्लाउड सीडिंग के जरिए दिल्ली में आर्टिफिशियल रेन (कृत्रिम बारिश) करवाई जाएगी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसी वैज्ञानिक तकनीक से दिल्ली में आर्टिफिशियल स्नोफॉल (कृत्रिम बर्फबारी) भी करवाई जा सकती है?
कृत्रिम बर्फबारी की तकनीक मौजूद तो है, लेकिन इसके साथ कई तरह की साइंटिफिक कॉम्प्लेक्सिटी जुड़ी हुई हैं. इसका सफल क्रियान्वयन प्राकृतिक और मौसमी परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जो दिल्ली के लिए एक बड़ी चुनौती है. कृत्रिम बारिश और कृत्रिम बर्फबारी, दोनों ही प्रक्रियाएं मूल रूप से क्लाउड सीडिंग के सिद्धांत पर आधारित हैं, लेकिन उनकी परिस्थितियां अलग-अलग हैं. कृत्रिम बर्फबारी की प्रक्रिया उन ठंडे मौसम वाले क्षेत्रों में सफल होती है, जहां प्राकृतिक रूप से बर्फ बनने के लिए जरूरी तापमान और नमी मौजूद हो.
Artificial Snowfall: क्या दिल्ली में कृत्रिम बर्फबारी हो सकती है?
देश की राजधानी दिल्ली अपेक्षाकृत गर्म, समतल और घनी आबादी वाला महानगरीय क्षेत्र है. यहां कृत्रिम बर्फबारी तकनीक को बड़े पैमाने पर लागू करना बहुत जटिल और महंगा प्रयास होगा. यह सिर्फ बादलों में केमिकल्स को इंजेक्ट करने तक सीमित नहीं है, बल्कि विशिष्ट वायुमंडलीय और थर्मोडायनामिक बैलेंस की भी मांग करता है. इसकी कमी के कारण दिल्ली में कृत्रिम बर्फबारी वर्तमान में वैज्ञानिक संभावना से ज्यादा एक सपना प्रतीत होती है.
कृत्रिम बर्फबारी के लिए जरूरी शर्तें
क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बर्फबारी करवाने के लिए 3 प्रमुख प्राकृतिक शर्तें पूरी करना जरूरी है, जो फिलहाल दिल्ली के लिए मुश्किल है:
अत्यधिक ठंडा तापमान: बर्फबारी के लिए जरूरी है कि बादल के अंदर और जमीन पर भी तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे हो. दिल्ली में दिसंबर और जनवरी की सबसे ठंडी रातों में भी यह तापमान बमुश्किल 4 डिग्री सेल्सियस से 5 डिग्री सेल्सियस तक गिरता है, जो बर्फ के कणों को जमीन तक आने से पहले ही पिघला देगा. बहुत ठंडा पानी: बादलों में -4 डिग्री सेल्सियस से -20 डिग्री सेल्सियस के बीच अधिशीतित जल यानी बहुत ठंडे पानी की बूंदें पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए. इस रेंज में सिल्वर आयोडाइड के संपर्क में आने पर ये बूंदें सीधे बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती हैं. पर्याप्त नमी और बादल: आसमान में ऐसे बादलों की उपस्थिति जरूरी है, जिनमें बर्फ बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मौजूद हो.दिल्ली में क्या चुनौतियां हैं?
उच्च भूमि तापमान: दिल्ली की भौगोलिक स्थिति समतल है और यहां का न्यूनतम तापमान बर्फबारी के लिए पर्याप्त रूप से कम नहीं होता. खर्च और दक्षता: बड़े महानगरीय क्षेत्र में कृत्रिम बर्फबारी करवाने का खर्च बहुत अधिक होगा, जबकि इसकी सफलता की दर दिल्ली के गर्म वातावरण के कारण कम रहेगी. स्नोमेकिंग टेक्नीक का इस्तेमाल: कृत्रिम बर्फबारी के लिए स्की रिसॉर्ट्स में इस्तेमाल की जाने वाली ‘स्नोमेकिंग’ तकनीक (पानी को महीन फुहारों में बदलकर कम तापमान पर बर्फ के कण बनाना) को खुले शहर में लागू नहीं किया जा सकता. इसके लिए सीमित और अत्यधिक ठंडे क्षेत्र की जरूरत होती है.क्लाउड सीडिंग से बर्फबारी करवाना वैज्ञानिक रूप से संभव है (ठंडे देशों में किया भी जाता है), लेकिन दिल्ली के मौजूदा तापमान और वायुमंडलीय स्थितियों के कारण, बड़े पैमाने पर कृत्रिम बर्फबारी करवाना वर्तमान में मुमकिन नहीं है.
With over more than 10 years of experience in journalism, I currently specialize in covering education and civil services. From interviewing IAS, IPS, IRS officers to exploring the evolving landscape of academi...और पढ़ें
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First Published :
October 25, 2025, 11:40 IST

3 hours ago
