Explainer:आखिर ब्रिक्स से क्यों लगने लगा ट्रंप को डर,क्यों चाहते हैं इसे तोडना

3 hours ago

रियो डी जेनेरियो में ब्रिक्स का 17वां शिखर सम्मेलन हो गया. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसमें शिरकत की. ब्रिक्स में इस बार 11 देशों ने शिरकत की. जब ये ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए मुख्य एजेंडे पर विचार विमर्श कर रहे थे, तभी अमेरिकी प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने इस संगठन को लेकर ना केवल नाराजगी जाहिर की बल्कि ब्रिक्स से जुड़े देशों पर टैरिफ की तगड़ी चाबुक चलाने की धमकी दे दी. आखिर क्यों ट्रंप को ब्रिक्स इतना नागवार गुजर रहा है. इसकी वजह क्या है.

इस बार ब्रिक्स में जो 11 देश शामिल हुए, उसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल रहे. इन देशों को मिलाकर दुनिया की लगभग आधी आबादी और वैश्विक आर्थिक उत्पादन का करीब 40% हिस्सा ब्रिक्स के साथ जुड़ता है.

इस बार सम्मेलन का मुख्य एजेंडा आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीति, वैश्विक शासन में सुधार, ग्लोबल साउथ की आवाज़, कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानि एआई और जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण रहा. इसके अलावा टैरिफ पर भी चर्चा हुई.

जब ये सम्मेलन रियो डि जेनेरिया में शुरू हुआ, उसी दौरान न्यूयार्क से डोनाल्ड ट्रंप की ब्रिक्स को लेकर नाराजगी और चेतावनी देने की खबरें भी आईं. उन्होंने धमकी दी कि जो भी देश ब्रिक्स की “अमेरिका विरोधी नीतियों” के साथ खुद को जोड़ेंगे या उनका समर्थन करेंगे, उन पर अमेरिका 10% अतिरिक्त आयात शुल्क (टैरिफ) लगाएगा.

ट्रंप ने साफ कहा कि इस नीति में कोई अपवाद नहीं होगा. उन्होंने सभी देशों को चेतावनी दी है कि ब्रिक्स की ऐसी नीतियों के साथ जुड़ना अमेरिका के आर्थिक हितों के खिलाफ है. ट्रंप की यह प्रतिक्रिया खासतौर पर तब आई, जब ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र में अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ की आलोचना की गई. ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर यह बयान जारी किया.

ब्रिक्स देशों और खासकर ब्राजील के राष्ट्रपति ने ट्रंप की इस धमकी का जवाब देते हुए कहा कि दुनिया बदल चुकी है और किसी सम्राट की जरूरत नहीं है, साथ ही ब्रिक्स किसी देश के खिलाफ भी नहीं.

BRICS शिखर सम्मेलन. (Credit- Reuters)

सवाल – ब्रिक्स आखिर है क्या और इसकी ताकत क्या है?

– ब्रिक्स (BRICS) एक अंतरराष्ट्रीय समूह है जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. 2009 में इसकी शुरुआत आर्थिक सहयोग और साझा विकास के मकसद से हुई थी. अब इसमें 2024 के बाद ईरान, सऊदी अरब, मिस्र, यूएई, इथियोपिया और अर्जेंटीना जैसे नए देश भी शामिल हो रहे हैं.
ब्रिक्स की ताकत इसके सदस्य देशों की जनसंख्या (करीब 3.6 अरब लोग) और वैश्विक GDP में हिस्सेदारी (28-30%) में है.

इसके अलावा ऊर्जा संसाधन, खनिज, तेल-गैस, और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का एक मजबूत गठजोड़ इस समूह को पश्चिमी देशों के लिए संभावित चुनौती बनाता है.

सवाल – ट्रंप को ब्रिक्स से क्या दिक्कत है?

– ट्रंप और अमेरिकी दक्षिणपंथी ब्रिक्स को एक ऐसा मंच मानते हैं जो अमेरिकी नेतृत्व वाली वर्ल्ड ऑर्डर को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है. खासतौर पर जब ब्रिक्स ने अपने स्वतंत्र करेंसी सिस्टम, न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और डॉलर पर निर्भरता कम करने की योजनाएं बनानी शुरू कीं, तबसे ट्रंप की नाराज़गी और बढ़ गई.

ट्रंप का मानना है कि अगर ब्रिक्स डॉलर की बजाय अपनी करेंसी में ट्रेड शुरू कर देता है, तो इससे डॉलर की वैश्विक हैसियत कमजोर होगी. अमेरिका की आर्थिक और रणनीतिक पकड़ ढीली पड़ सकती है.

सवाल – क्या ब्रिक्स वाकई अमेरिका के लिए खतरा बन सकता है?

– हां, ब्रिक्स के मौजूदा विस्तार और डॉलर मुक्त व्यापार की योजनाएं अमेरिका के लिए संभावित रणनीतिक चुनौती बन सकती हैं. अगर ब्रिक्स देश आपस में अपनी करेंसी या कोई साझा करेंसी बनाकर ट्रेड करने लगें, तो इससे डॉलर का वर्चस्व खतरे में पड़ सकता है.

साथ ही, ब्रिक्स देशों का संयुक्त फोरम G7 और वर्ल्ड बैंक जैसी पश्चिमी संस्थाओं का विकल्प बन सकता है. चीन और रूस पहले से अमेरिका विरोधी नीति अपनाए हुए हैं, ऐसे में भारत, सऊदी अरब, ईरान, ब्राजील जैसे देशों का भी झुकाव इसी दिशा में हुआ तो अमेरिका की कूटनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है.

सवाल – ट्रंप ने पहले भी ब्रिक्स या इसके सदस्य देशों को लेकर कुछ कहा है?

– ट्रंप ने 2020-2021 के दौरान अपने कार्यकाल में कई बार चीन और रूस के साथ-साथ भारत की नीतियों पर भी तीखा बयान दिया था. ट्रंप ने ब्रिक्स को ‘अमेरिकी हितों के लिए खतरनाक गठजोड़’ बताया था.

2024 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान में भी ट्रंप ने ब्रिक्स के विस्तार पर कहा था, “ये विकासशील तानाशाहों और तुच्छ तानाशाहों का संगठन है, जो अमेरिका को कमजोर देखना चाहते हैं.”

सवाल – आखिर ट्रंप को किस बात का सबसे बड़ा डर है?

– ट्रंप को सबसे बड़ा डर ये है कि ब्रिक्स के ज़रिए डॉलर की ग्लोबल करेंसी की हैसियत को चुनौती मिल सकती है. दुनिया का करीब 60% विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में रखा जाता है. अंतरराष्ट्रीय तेल व्यापार, बड़े हथियार सौदे, और कच्चे माल की खरीद-बिक्री भी डॉलर में होती है.

अगर ब्रिक्स देश डॉलर छोड़कर अपनी करंसी में या ब्रिक्स की साझा करंसी में ट्रेड शुरू कर दें, तो डॉलर की मांग घटेगी और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अस्थिरता आ सकती है. इससे अमेरिका की वैश्विक सुपरपावर हैसियत को झटका लगेगा और यही ट्रंप का सबसे बड़ा डर है.

डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है. (Credit- Reuters)

सवाल – क्या ब्रिक्स अमेरिका को कूटनीतिक स्तर पर भी घेर सकता है?

– बिल्कुल. ब्रिक्स का एजेंडा केवल आर्थिक नहीं, बल्कि कूटनीतिक भी है. हाल के वर्षों में ब्रिक्स देशों ने कई वैश्विक मुद्दों पर अमेरिका के विरोध में एकजुट होकर संयुक्त बयान दिए हैं, जैसे यूक्रेन युद्ध, ईरान प्रतिबंध, जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका की भूमिका.

ट्रंप को डर है कि अगर ब्रिक्स का ये राजनीतिक और रणनीतिक गठजोड़ मजबूत हुआ, तो अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

सवाल – ब्रिक्स की अपनी करेंसी बनाने की योजना कितनी गंभीर है?

– ब्रिक्स देशों ने 2023 में ये प्रस्ताव रखा था कि डॉलर की निर्भरता कम करने के लिए वो एक साझा करेंसी पर विचार कर रहे हैं. हालांकि इसे अभी लागू करने में काफी वक्त लग सकता है, मगर ये विचार अमेरिका के लिए बहुत ज्यादा असहज करने वाला है.

ट्रंप इस पहल को अमेरिका के लिए आर्थिक झटके की शुरुआत मानते हैं. उनका तर्क है कि अगर डॉलर का प्रभुत्व खत्म हुआ, तो अमेरिका की ब्याज दरें और कर्ज लेने की क्षमता प्रभावित होगी.

सवाल – क्या ट्रंप ब्रिक्स को रोकने के लिए कोई रणनीति बना रहे हैं?

– ट्रंप का प्लान है कि वो ब्रिक्स देशों पर आर्थिक प्रतिबंध, कूटनीतिक दबाव और सैन्य गठजोड़ (जैसे NATO, QUAD) के ज़रिए उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश करेंगे.
साथ ही, ट्रंप ने 2024 के प्रचार में कहा है कि वो अमेरिका के तेल उत्पादन को दोगुना कर देंगे ताकि ब्रिक्स देशों के ऊर्जा निर्यात पर निर्भर देशों की कमर तोड़ी जा सके.

सवाल – अमेरिका के अंदर ब्रिक्स को लेकर क्या राय है?

– अमेरिका की सत्ता और कॉर्पोरेट लॉबी में दो राय हैं. कुछ रणनीतिकार मानते हैं कि ब्रिक्स फिलहाल अमेरिका के लिए सीधा खतरा नहीं है, लेकिन इसके बढ़ते प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. वहीं ट्रंप जैसे नेता इसे भविष्य का सबसे बड़ा आर्थिक और कूटनीतिक खतरा मानते हैं.
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट्स में भी लिखा गया है कि ब्रिक्स का ये विस्तार अमेरिका की एकछत्र वर्ल्ड शक्ति की स्थिति को चुनौती दे सकता है.

सवाल – क्या ब्रिक्स सचमुच अमेरिका को पीछे छोड़ सकता है?

– अभी तो नहीं लेकिन लंबे समय में जरूर ऐसा हो सकता है. ब्रिक्स में मतभेद, भौगोलिक दूरी और नीतिगत असहमति हैं. मगर अगर ये देश आर्थिक, सैन्य और तकनीकी मोर्चे पर एकजुट हो गए, तो अमेरिका की आज की सुपरपावर स्थिति खतरे में पड़ सकती है. ट्रंप को इसी का डर है और इसलिए वो इसको अभी कुचल देना चाहते हैं.

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