DNA Analysis: DNA मित्रो, जब आपकी गाड़ी लंबे वक्त तक चल जाती है तो उसको सर्विसिंग की ज़रूरत पड़ती है. ये बेहद ज़रूरी है क्योंकि इससे आपकी गाड़ी की सुरक्षा, लंबी उम्र और बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित होती है. लेकिन बदलते वर्ल्ड ऑर्डर और दुनिया में अशांति के बीच दुनिया के सबसे बड़े संगठन संयुक्त राष्ट्र को भी सर्विसिंग कराने की जरूरत है.
उसकी मरम्मत भी बेहद ज़रूरी हो गई है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसके लिए दो तस्वीरों के बारे में बताएंगे. पहली तस्वीर उस समय की है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपनी पत्नी मेलानिया के साथ संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के एस्केलेटर पर चढ़ रहे थे. लेकिन ट्रंप के चढ़ते ही एस्केलेटर अचानक रुक गया. इसके बाद मेलानिया ने रुके हुए एस्केलेटर पर पैदल चढ़ना शुरू किया, जबकि ट्रंप उनके पीछे-पीछे थे. दूसरी तस्वीर UN जनरल असेंबली के मंच की है. ट्रंप ने अपना भाषण शुरू ही किया था कि टेलीप्रॉम्पटर ने काम करना बंद कर दिया. इसके बाद ट्रंप को टेलीप्रॉम्प्टर के बिना ही अपनी बात रखनी पड़ी.
ये दो घटनाएं बताती हैं कि वैचारिक मरम्मत के साथ-साथ UN को तकनीकी मरम्मत की भी ज़रूरत है. UN का सिर्फ़ एस्केलेटर ही नहीं अटकता बल्कि पूरा UN ही अटका हुआ है. UN का सिर्फ़ टेलीप्रॉम्पटर ही नहीं ख़राब हुआ है, बल्कि UN की आवाज़ को दुनिया ने सुनना बंद कर दिया है. UN कहां-कहां अटका है, कहां-कहां भटका है, पिछले 80 साल में UN में क्या-क्या ख़राबी आ गई है, ये जानने से पहले सुनते हैं कि ट्रंप ने कैसे UN का मज़ाक़ उड़ाया.
#DNAWithRahulSinha : 'अटका' हुआ एस्केलेटर..UN की 'हकीकत'! यूएन की 'सर्विसिंग'.. कितनी जरूरी हो गई?#DNA #UN #DonaldTump #UNGA | @RahulSinhaTV pic.twitter.com/aZX596X6vg
— Zee News (@ZeeNews) September 24, 2025
यूएन एक अटका हुआ एस्केलेटर बन गया है. ये सवाल हम सिर्फ इसलिए नहीं उठा रहे हैं कि यूएन में ट्रंप के पैर रखते ही वहां का एस्केलेटर अटक गया. दरअसल, यूएन का सिस्टम ही सालों से अटका हुआ है. इसलिए UN की वैचारिक और तकनीकी 'मरम्मत' करने का समय अब आ गया है. UN में सुधार वास्तव में इस समय पूरी दुनिया की ज़रूरत है. जिस संयुक्त राष्ट्र की स्थापना दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में शांति और सुरक्षा बनाए रखने, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और युद्धों को रोकने के लिए की गई थी, वो अपने सभी उद्देश्यों में फिलहाल नाकाम नज़र आता है.
- दुनिया में इस समय सबसे ज़्यादा अशांति और असुरक्षा है.
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की जगह दुनिया गुटों में बंटी है.
- रूस-यूक्रेन और गाजा जैसे 2 बड़े युद्ध लंबे समय से चल रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र की इन्हीं नाकामियों की वजह से ट्रंप इसे नाकाम संगठन बताते हैं. 21वीं सदी के भी 25 साल बीत चुके हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र मौजूदा समय की वास्तविकताओं से दूर है. ये अभी भी 8 दशक पहले की दुनिया में खोया हुआ है. अगर ये कहा जाए कि संयुक्त राष्ट्र सफ़ेद हाथी बन गया है तो ग़लत नहीं होगा. संयुक्त राष्ट्र की नाकामियों की वजह से भारत भी लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग कर रहा है.
-भारत का सबसे ज़्यादा ज़ोर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार पर है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाले देश का सुरक्षा परिषद में शामिल नहीं होना, इसके प्रतिनिधित्व पर सवाल खड़ा करता है. अफ्रीका और लैटिन अमेरिका की भी इसमें कोई नुमाइंदगी नहीं है.
- भारत सुरक्षा परिषद के सदस्यों के वीटो पावर पर भी लचीलापन चाहता है क्योंकि इसकी वजह से ऐसे फ़ैसले भी नहीं हो पाते जो बेहद ज़रूरी हैं. आतंकवाद के मुद्दे पर बार-बार चीन पाकिस्तान को बचाता है और सब कुछ जानते हुए भी सुरक्षा परिषद बेबस नज़र आती है. लेकिन सुधार, विस्तार और आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र लंबे समय से अटका हुआ है. P5 यानी सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के अड़ंगे की वजह से इसमें अब तक नाकामी मिली है. जब सुधार की बात होती है तो कोई महाशक्ति इसे बाएं खींचती है तो कोई दाएं. UN चार्टर का अनुच्छेद 108 कहता है कि किसी भी संशोधन के लिए P5 देशों की अनुमति जरूरी है यानी एक भी देश मना कर दे तो पूरी प्रक्रिया ठप.
इज़रायल के आरोपों के बाद संयुक्त राष्ट्र
एक सवाल संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता पर भी है. जब ख़ुद संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों पर आतंकवाद के आरोप लगेंगे तो वो आतंकवाद का सामना कैसे करेगा. 7 अक्टूबर 2023 को इज़रायल पर हुए हमास के आतंकवादी हमले में उसके कर्मचारी भी शामिल थे. फिलिस्तीन में शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNRWA के कर्मचारियों को हमास के हमले में शामिल पाया गया था. इज़रायल के आरोपों के बाद संयुक्त राष्ट्र ने ख़ुद इन आरोपों की जांच करवाई थी, जिसमें पाया गया कि UNRWA के कर्मचारी वाकई हमले के दौरान हमास के आतंकवादियों के साथ थे. जांच के बाद 9 कर्मचारियों को बर्खास्त करना पड़ा. ये घटना बताती है कि संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों में कितना भटक गया है. अब एक नज़र इस पर भी डालना चाहिए कि इस भटके हुए संगठन पर दुनिया के अलग-अलग देश कितना खर्च करते हैं.
2025 में संयुक्त राष्ट्र का नियमित बजट
2025 में संयुक्त राष्ट्र का नियमित बजट 3.72 अरब डॉलर यानी लगभग 33 हज़ार करोड़ रुपये है. वहीं शांति और रक्षा का बजट 2.8 अरब डॉलर यानी लगभग 25 हज़ार करोड़ रुपये है. यानी 1 साल में UN का कुल खर्च 58 हज़ार करोड़ रुपये है. संयुक्त राष्ट्र के बजट में भारत का योगदान 2025 में 300 करोड़ रुपये से ज़्यादा का है जबकि 22 प्रतिशत योगदान के साथ अमेरिका पहले नंबर पर है. लेकिन भारी-भरकम खर्च करने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र फिलहाल अपने उद्देश्यों से भटका हुआ है...यही वजह है कि हम UN की वैचारिक और तकनीकी मरम्मत पर ज़ोर दे रहे हैं.