Last Updated:September 29, 2025, 20:11 IST
'I Love Muhammad' Toolkit: ‘आई लव मोहम्मद’ टूलकिट को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. खुफिया सूत्रों के मुताबिक ‘आई लव मोहम्मद’ टूलकिट त्योहारों से पहले धार्मिक भावनाओं को भड़काकर विरोध प्रदर्शनों को हवा देने की सोची-समझी प्लानिंग है.

नई दिल्ली: देश में इन दिनों ‘आई लव मोहम्मद’ को लेकर बवाल मचा हुआ है. हर तरफ इसी की चर्चा हो रही है. हालांकि अब इसे लेकर बड़ा खुलासा सामने आया है. भारत की खुफिया एजेंसियों के इनपुट में दावा किया गया है कि ‘आई लव मोहम्मद’ टूलकिट कोई अचानक शुरू हुई कैंपेन नहीं है. बल्कि एक सोची-समझी प्लानिंग है. इसका मकसद धार्मिक भावनाओं को उभारकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर विरोध प्रदर्शनों को हवा देना है.
खुफिया सूत्रों के मुताबिक इस कैंपेन की टाइमिंग बेहद अहम है. इसे जानबूझकर गणेश चतुर्थी, पितृपक्ष, नवरात्रि, दुर्गा पूजा, दशहरा, रामलीला, दिवाली, छठ पूजा और गुरु नानक जयंती जैसे बड़े हिंदू त्योहारों से ठीक पहले शुरू किया जाता है ताकि धार्मिक माहौल के बीच आंदोलन को ‘स्वाभाविक’ रूप दिया जा सके.
मानव नेटवर्क पर आधारित टूलकिट
सूत्रों का कहना है कि यह टूलकिट मानव नेटवर्क पर आधारित है. इसमें राजनीतिक नेता, मस्जिद कमेटियां और सोशल ऑर्गनाइजर्स अहम रोल निभाते हैं. इनके जरिए संदेश और गतिविधियों को संगठित किया जाता है और फिर सोशल मीडिया एल्गोरिद्म की मदद से उसे तेजी से फैलाया जाता है.
ओवैसी और अन्य नेताओं का नाम
एजेंसियों ने अपने इनपुट में दावा किया है कि असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता और मौलाना तौकीर रजा इस अभियान की टाइमिंग और मैसेजिंग तय करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इसके बाद इन संदेशों को X, इंस्टाग्राम और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म्स के जरिए तेजी से फैलाया जाता है.
अंतरराष्ट्रीय एंगल भी शामिल
खुफिया एजेंसियां कहती हैं कि इस कैपेन में विदेशी कनेक्शन भी है. ‘आई लव मोहम्मद’ नारा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि फ्रांस, इटली, ब्रिटेन जैसे देशों में भी गूंजने के लिए बनाया गया है. जहां धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस होती रहती है. इसके अलावा सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों में धार्मिक भावनाओं को जगाने और वहां से आर्थिक मदद जुटाने की भी कोशिश हो रही है.
फंडिंग और बाहरी नेटवर्क की भूमिका
अभी तक ज्यादातर फंडिंग स्थानीय स्तर पर दिख रही है. लेकिन एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि कुछ वैश्विक इस्लामिक नेटवर्क से जुड़े NGO इसमें दिलचस्पी दिखाने लगे हैं. ऐसे ही पैटर्न पहले भी दूसरे धार्मिक अभियानों में देखे गए हैं.
अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की प्रतिक्रिया का इस्तेमाल
खुफिया इनपुट बताते हैं कि आयोजक अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और विदेशी सरकारों की संभावित प्रतिक्रियाओं को भी ध्यान में रखते हैं. जब विदेश से चिंता जताई जाती है तो भारत के भीतर राजनीतिक ताकतें इन्हें “पक्षपात” या “अल्पसंख्यक उत्पीड़न” का सबूत बताकर इस्तेमाल करती हैं.
बाहरी संगठनों की निगरानी
एजेंसियों का कहना है कि विदेशी इस्लामिक समूह भारत में हो रहे प्रदर्शनों पर लगातार नजर रखे हुए हैं और उन्हें अपने प्रचार और भर्ती अभियानों में इस्तेमाल कर रहे हैं.
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First Published :
September 29, 2025, 20:11 IST