हथियारों की दुनिया में अब एक नया नाम गूंजता है - भारत, जानिए कैसे

3 hours ago

भारत की रक्षा-उद्योगीय वृद्धि अब सिर्फ़ राष्ट्रीय सुरक्षा तक सीमित नहीं रही है, बल्कि वह वैश्विक ताक़तों के समीकरण को बदलने वाला एक कारक बन गई है. मई 2025 में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह सच्चाई युद्ध के मैदान में साबित कर दी. जब 9-10 मई की रात पाकिस्तान ने मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया, तो भारत का जवाब सिर्फ़ हथियारों से नहीं, बल्कि स्वदेशी तकनीक, बेहतर समन्वय और हर तरह के ख़तरे के अनुरूप बनी रणनीति से आया. उस रात दुश्मन के विदेशी हथियारों की सीमाएँ सामने आईं, जबकि भारत के स्वदेशी हथियारों ने निर्णायक प्रभाव दिखाया.

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता में ‘अकाशतीर’ स्वदेशी वायु रक्षा प्रणाली ने निर्णायक भूमिका निभाई. यह पूरी तरह से स्वदेशी, स्वचालित एयर-डिफेंस कंट्रोल सिस्टम, नेटवर्क-सेंट्रिक युद्ध में विश्वस्तरीय क्षमता वाला साबित हुआ. अकाशतीर ने टैक्टिकल कंट्रोल रडार, 3D टैक्टिकल रडार, लो-लेवल लाइटवेट रडार और आकाश वेपन सिस्टम के रडारों को एक साथ जोड़कर एक अभेद्य वायु रक्षा चक्रव्यूह रचा. इसी एकीकृत नेटवर्क ने दुश्मन के हर मिसाइल, ड्रोन को समय रहते पहचानकर मार गिराया.

यहाँ सबसे महत्वपूर्ण तुलना तब सामने आई जब दुश्मन की चीनी-निर्मित HQ-9 और HQ-16 वायु रक्षा प्रणालियाँ पूरी तरह विफल रहीं, जबकि भारत का अकाशतीर सिस्टम न केवल प्रभावी रहा, बल्कि उसने आधुनिक युद्ध के नए मानदंड स्थापित किए. अकाशतीर की सफलता ने साबित कर दिया कि आज के युद्ध में डेटा-फ्यूज़न, त्वरित निर्णय क्षमता और नेटवर्क-केंद्रित युद्धाभ्यास ही वास्तविक शक्ति का स्रोत हैं. इस एकीकृत सेंसर नेटवर्क ने ‘फ्रेंडली फायर’ की संभावना को शून्य के करीब लाते हुए दुश्मन को सटीक जवाब दिया. भारत ने अकाशतीर के माध्यम से न केवल अपनी तकनीकी श्रेष्ठता स्थापित की, बल्कि यह भी प्रमाणित किया कि अब वह वैश्विक रक्षा प्रौद्योगिकी के मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर और सक्षम है.

ऑपरेशन सिंदूर में भारत की नौसैनिक रणनीति ने एक नए युग का संकेत दिया. उत्तरी अरब सागर में तैनात आईएनएस विक्रांत कैरियर बैटल ग्रुप ने न केवल भारत की समुद्री शक्ति का प्रदर्शन किया, बल्कि ‘ऑफेंसिव डिटरेंस’ की उस नीति को साकार किया जिसने दुश्मन को बातचीत की मेज पर आने के लिए मजबूर किया. आईएनएस विक्रांत की तैनाती का दबाव इतना प्रभावी रहा कि विरोधी पक्ष को युद्धविराम की मांग करनी पड़ी. वर्तमान आईएनएस विक्रांत (IAC-1) ने उसी ऐतिहासिक विरासत को आगे बढ़ाया है जिसने 1961 के गोवा मुक्ति अभियान और 1971 के युद्ध में भारत की नौसैनिक शक्ति का लोहा मनवाया था. अंतर केवल इतना है कि आज का विक्रांत पूर्णतः स्वदेशी तकनीक से निर्मित है, जो भारत की बढ़ती शिपबिल्डिंग क्षमता का प्रतीक है.

स्वदेशी शिपबिल्डिंग क्षमता ठोस नीव पर खड़ी है. इस क्षमता की नीव के स्तंभ हैं आईएनएस विक्रांत, कोलकाता और विशाखापटनम क्लास डिस्ट्रॉयर, शिवालिक और नीलगिरि क्लास फ्रिगेट, अरिहंत क्लास परमाणु और स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बी. 2014 से अब तक भारतीय शिपयार्ड्स ने नौसेना को 40 से अधिक स्वदेशी युद्धपोत और पनडुब्बियाँ सौंप दी हैं — यानी लगभग हर 40 दिन में एक नया प्लेटफ़ॉर्म भारतीय नौसेना की शक्ति में जुड़ रहा है. दिसंबर 2024 तक भारत 133 से अधिक स्वदेशी युद्धपोत और पनडुब्बियाँ बना चुका है. और तो और, नौसेना की नई युद्धपोत योजना के तहत प्रस्तावित 64 में से 63 जहाज देश में ही निर्मित हो रहे हैं. यह आत्मनिर्भरता न केवल भारत की सैन्य शक्ति का विस्तार है, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता के वास्तुकार के रूप में उसकी भूमिका को भी मज़बूत करती है. भारतीय नौसेना ‘ब्लू-वॉटर नौसेना’ के रूप में उभरी है – एक ऐसी नौसैनिक शक्ति जो न केवल अपने तटों की रक्षा करती है, बल्कि वैश्विक समुद्री हितों की सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

युद्ध के मैदान में भारत की बढ़ती ताकत का एक प्रमुख स्तंभ पिनाका रॉकेट सिस्टम साबित हुआ है. पुणे स्थित आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (ARDE) द्वारा विकसित यह मल्टी-बैरल रॉकेट सिस्टम अपनी घातक क्षमता और विश्वसनीयता के कारण भारतीय सेना की रीढ़ बन चुका है. वर्तमान पिनाका प्रणाली 37 किमी तक के लक्ष्यों को सटीक निशाना बना सकती है, जबकि इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसकी तीव्र गति है – एक रेजिमेंटल प्लेटफॉर्म मात्र 45 सेकंड में 12 रॉकेट दागकर दुश्मन की अग्रिम बख्तरबंद वाहनों को ध्वस्त कर सकता है.

भारत की रक्षा अनुसंधान टीम इसकी क्षमताओं को लगातार बढ़ा रही है, जिसके तहत गाइडेड पिनाका के नए संस्करणों पर काम चल रहा है. इनकी मारक क्षमता क्रमशः 120 किमी, 150 किमी और 200 किमी तक बढ़ाने का लक्ष्य है, जो चीन के लंबी दूरी के रॉकेट सिस्टमों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में सक्षम होगा. पिनाका की इस उन्नत क्षमता ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी ध्यान आकर्षित किया है, जहाँ आर्मेनिया ने पिनाका रेजिमेंट की खरीद की है और फ्रांस जैसा उन्नत रक्षा देश इस प्रणाली का अध्ययन कर रहा है. यह भारत के रक्षा शोध और उद्योग की बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता का स्पष्ट संकेत है, जो देश की आत्मनिर्भर रक्षा नीति की सफलता को रेखांकित करता है.

मिसाइल-डोमेन में ब्रह्मोस ने भारत की रणनीतिक पहुँच को वैश्विक मानचित्र पर स्थानीय बल में बदल दिया. “ऑपरेशन सिन्दूर” के बाद इस मिसाइल ने न केवल भारत की आक्रामक सामरिक क्षमता को सिद्ध किया, बल्कि इसकी विश्वसनीयता ने भारत को एक भरोसेमंद रक्षा साझेदार के रूप में स्थापित किया. 18 अक्टूबर, 2025 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ स्थित ब्रह्मोस इंटीग्रेशन एंड टेस्टिंग फैसिलिटी से पहले स्वदेशी निर्मित ब्रह्मोस बैच को रवाना किया. उल्लेखनीय है कि 11 मई, 2025 को इस सुविधा के वर्चुअल उद्घाटन के मात्र पांच महीने के भीतर ही पहला बैच उत्पादन के लिए तैयार हो गया. 28 जनवरी, 2022 को ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड और फिलीपींस के रक्षा विभाग के बीच 375 मिलियन अमेरिकी डॉलर के शोर-बेस्ड एंटी-शिप मिसाइल सिस्टम समझौते ने भारत को वैश्विक रक्षा निर्यातकों के मानचित्र पर स्थापित कर दिया.

ब्रह्मोस की इस सफलता ने वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्राजील, आर्मेनिया और रूस जैसे देशों में गहरी रुचि जगाई है. यह न केवल भारत की तकनीकी क्षमता का प्रमाण है, बल्कि उसकी बढ़ती मिसाइल कूटनीति और गुणवत्तापूर्ण प्रतिस्पर्धा का भी सबूत है. ब्रह्मोस ने यह साबित कर दिया है कि भारत अब उच्च-तकनीकी रक्षा उपकरणों के निर्माण और निर्यात में वैश्विक मानक स्थापित करने में सक्षम है.

भारत के रक्षा उत्पादन में निजी-सार्वजनिक सहयोग का एक आदर्श उदाहरण वडोदरा स्थित टाटा-एयरबस सी-295 विमान परिसर है. सितंबर 2021 में रक्षा मंत्रालय और एयरबस डिफेंस के बीच हुए ₹21,935 करोड़ के ऐतिहासिक समझौते के तहत 56 सी-295 परिवहन विमानों की खरीद तय हुई, जिनमें से 16 विमान स्पेन से सीधे आयात किए जाएंगे, जबकि 40 विमानों का निर्माण भारत में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) द्वारा किया जाएगा. इस महत्वाकांक्षी परियोजना की प्रगति तेजी से आगे बढ़ रही है. अब तक छह विमान भारतीय वायुसेना के 11 स्क्वाड्रन (वडोदरा) में शामिल किए जा चुके हैं. इसके बाद सितंबर 2026 में पहला ‘मेड इन इंडिया’ सी-295 विमान वडोदरा संयंत्र से रोल-आउट करेगा और शेष विमानों की डिलीवरी अगस्त 2031 तक पूरी हो जाएगी. यह परियोजना न केवल भारत की वायु सैन्य क्षमता को मजबूत करेगी, बल्कि देश को एयरोस्पेस विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित होगी. इस सार्वजनिक-निजी साझेदारी से भारत के रक्षा और एयरोस्पेस उद्योग को एक नई दिशा मिलेगी.

ऊँचाई पर लड़ने की सामर्थ्य का प्रतीक “ज़ोरावर लाइट टैंक” ने भी आश्वस्त किया कि भारत सीमावर्ती ऊँचाई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर रक्षा-समाधान दे सकता है. DRDO-CVRDE (Chennai) द्वारा विकसित और L&T द्वारा निर्मित यह टैंक 4,200 मीटर से अधिक ऊँचाई पर सफलतापूर्वक फायरिंग टेस्ट कर चुका है; इसका पहले चरण का रेगिस्तान-ट्रायल सितंबर 2024 में सम्पन्न हुआ था. यह टैंक विशेषकर लद्दाख जैसे क्षेत्रों में चीन की हल्की बख्तरबंद तैनाती का प्रभावी जवाब है. उच्च-ऊंचाई वाले युद्ध के लिए भारत ने एक ऐसा स्वदेशी हल्का टैंक विकसित किया है जो हिमालयी सीमाओं पर भारत की रक्षा क्षमता को नया आयाम देगा.

भारत के रक्षा परिदृश्य में एक ऐतिहासिक बदलाव आया है. 2020-24 के दौरान देश के हथियार आयात में 9.3% की गिरावट दर्ज की गई, जो एक सकारात्मक रुझान को दर्शाता है. वैश्विक हथियार बाजार में भारत की हिस्सेदारी 2019-23 में 10% से घटकर 2020-24 में 8.3% रह गई, लेकिन इस गिरावट के पीछे निराशा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की सफल कहानी छिपी है. रूस से हथियार आयात 72% से गिरकर 36% पर आ गया है, जो एक रणनीतिक बदलाव का संकेत है. 2019-23 के दौरान रूस से आयात में 34% की गिरावट दर्ज की गई. इसके पीछे रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की बढ़ती स्वदेशी क्षमता प्रमुख कारण हैं.

वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का रक्षा उत्पादन ₹1.27 लाख करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा, जो 2014-15 की तुलना में 174% की अभूतपूर्व वृद्धि को दर्शाता है. इससे स्पष्ट है कि आयात में गिरावट स्वदेशी क्षमताओं में वृद्धि की कीमत पर आई है. रक्षा निर्यात ने 2024-25 में ₹23,622 करोड़ का आंकड़ा छुआ, जो 2013-14 की तुलना में 34 गुना अधिक है. निजी क्षेत्र ने इसमें ₹15,233 करोड़ और सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा इकाइयों (DPSUs) ने ₹8,389 करोड़ का योगदान दिया. रक्षा उत्पादन विभाग ने 2024-25 में 1,762 निर्यात अनुमतियां जारी कीं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 16.92% अधिक है.

यह बदलाव न केवल आत्मनिर्भरता की उपलब्धि है, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार की शक्ति के समीकरण को पुनर्परिभाषित करने वाला कदम है. गुणवत्ता, लागत-प्रभावशीलता, विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला और रणनीतिक कूटनीति का यह संयोजन भारत को केवल एक नया प्रतियोगी ही नहीं बना रहा; यह उन स्थापित रक्षा दिग्गजों के लिए एक चुनौती खड़ी कर रहा है जिनका दशकों से वैश्विक बाजार पर दबदबा रहा है. अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन जैसे देश आज एक नए भारतीय विकल्प के उदय का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं — एक ऐसा विकल्प जो केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं, बल्कि तकनीकी परिपक्वता, औद्योगिक गति और एक दृढ़ राजनीतिक सहमति से समर्थित है. भारत अब सिर्फ एक ‘बाजार’ नहीं रहा; वह एक ‘मंच’, एक ‘साझेदार’ और एक ‘शक्ति’ के रूप में उभरा है, जो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को नया आकार दे रहा है.

ऑपरेशन सिंदूर ने यह सिद्ध कर दिया कि आत्मनिर्भरता केवल नीतिगत उद्देश्य नहीं रह जाती — वह सामरिक क्षमता बन जाती है. जब एक राष्ट्र अपनी ही निर्मित प्रणालियों से आसमान, समुद्र और जमीन पर नियंत्रण स्थापित कर सकता है, तो वह रक्षा-निर्माण के क्षेत्र में न सिर्फ़ भागीदार बल्कि निर्णायक विकल्प बनकर उभरता है. यही वह संकेत है जो विश्व सुन रहा है: वह भारत जो कभी किन्हीं विकल्पों का उपभोक्ता था, आज उन्हीं विकल्पों का निर्माता और चुनौतीकर्ता बन चुका है.

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