चुनाव आयोग ने 12 राज्यों में एसआईआर का ऐलान कर दिया है. इन सभी राज्यों में मतदाता सूचियां 27 अक्टूबर को आधी रात से फ्रीज हो जाएंगी. अब इनमें जो भी तब्दीली होगी, वो SIR के जरिए ही होगी. SIR का मतलब है स्पेशल इंटेसिव रिविजन. इन 12 राज्यों में उत्तर प्रदेश, बंगाल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, राजस्थान शामिल हैं. मुख्य बात ये है कि चुनाव आयोग ने इन मतदाता सूची के लिए वर्ष 2003-04 को आधार बनाने की बात की है. आखिर इसका मतलब क्या है. इससे क्या होगा. क्या इसका असर ताजातरीन मतदाता सूची पर पड़ेगा.
SIR का मतलब है कि मतदाता सूची पूरी जांच परख के बाद फिर से तैयार की जाएगी. घर – घर जाकर मतदाताओं की जानकारी ली जाएगी. इसके जरिए नए मतदाताओं को जोड़ा जाएगा. जिनका निधन हो गया या जिनका नाम पात्रता में सही नहीं पाया गया, उन्हें हटाकर नई मतदाता सूची तैयार की जाएगी. यानि इसे मतदाता सूची में गहन संशोधन कहा जा सकता है.
भारतीय चुनाव आयोग का कहना है कि इस एसआईआर के लिए वर्ष 2003-04 को आधार वर्ष मानकर ही नई मतदाता सूचियां तैयार की जाएंगी. तो हम ये जानेंगे कि चुनाव आयोग ने 2003-04 को इस SIR के लिए आधार वर्ष माना है.
सवाल – क्यों वर्ष 2003-04 को SIR का आधार बनाया गया है?
– ECI ने माना है कि जिस राज्य में SIR पहली बार हो रहा है. वहां पिछली बार यह तरह की गहन मतदाता समीक्षा 2002-03/2003 के आसपास हुई थी. इसलिए उसे आधार वर्ष माना जाएगा. इस वजह से ECI ने कहा है कि 2003 के बाद करीब 20 साल से इस मतदाता सूची का गहन तरीके से रिविजन नहीं हुआ है, इसलिए अब जरूरत आयी है.
जिनका नाम साल 2003 की वोटर लिस्ट में था तो अतिरिक्त दस्तावेज देने की जरूरत नहीं.
इसकी एक वजह ये भी है कि 2003 से अब तक काफी समय हो गया है. इस बीच जनसंख्या, श्रम प्रवासन, नगरीकरण, मृत्यु-माइग्रेशन आदि में बहुत बदलाव हुआ है. इसलिए 2003-04 की सूची को “मर्यादित” या “विश्वसनीय” आधार के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. ताकि जो लोग उस सूची में थे, उन्हें सापेक्ष रूप से आसान प्रक्रिया मिले. और जो नए या बाद में जो जुड़े हैं, उन्हें दस्तावेज देने की अतिरिक्त अनिवार्यता हो.
ECI का तर्क है कि जिन लोगों का नाम 2003-04 की सूची में था, उन्हें नए दस्तावेज नहीं देने होंगे. उनका नाम अपने आप लिस्ट में जगह पा जाएगा लेकिन जिनका नाम चुनाव मतदाता सूची में नया जुड़ा है, उन्हें दस्तावेजी प्रमाण के तौर पर जन्म-तिथि, माता/पिता का जन्मस्थान, नागरिकता प्रमाण आदि के दस्तावेज दिखाने पड़ सकते हैं.
सवाल – वर्ष 2003-04 को एसआईआर का आधार बनाने पर किन सवालों पर विवाद है?
– इस तारीख के चयन एवं इसके असर को लेकर कुछ बड़े विवाद भी उठे हैं. क्यों 2003-04 को विशेष आधार के रूप में चुना गया. क्या उस वर्ष का रोल वास्तव में “शुद्ध” था या उसमें कितनी भूलें थीं. हालांकि इस प्रक्रिया में दस्तावेजों की मांग, समयसीमा और प्रवासी या गरीब मतदाताओं को कठिनाई होने की आशंका जरूर है.
सवाल – जिन मतदाताओं के नाम ताजा मतदाता लिस्ट यानि 2024-25 के रोल में हैं, उन पर 2003–04 की “आधार तारीख” का क्या असर पड़ेगा?
– चुनाव आयोग ने कहा है कि 2003–04 की मतदाता सूची को एक बैंचमार्क साल माना जाएगा. यानी उस वर्ष जिन लोगों के नाम मतदाता सूची में दर्ज थे, उन्हें पुराने मतदाता के तौर पर मान्यता दी जाएगी. इसका मतलब यह नहीं कि 2003 की सूची फिर से लागू की जाएगी, बल्कि यह एक रेफरेंस प्वाइंट माना जाएगा.
ECI ने साफ कहा है कि किसी भी मौजूदा मतदाता का नाम केवल 2003 की सूची में न होने की वजह से हटाया नहीं जाएगा. यानी अगर वर्ष 2003-04 की सूची में नाम नहीं था, तो ये नाम हटाने का कारण नहीं बनेगा. उसकी जांच होगी. अगर जांच में पता चलता है कि उस व्यक्ति की पहचान या नागरिकता संदिग्ध है या डुप्लीकेट प्रविष्टि है तो नाम आब्जेक्टेड लिस्ट में डाला जा सकता है.
सवाल – क्या 2003 की सूची में नाम होने या नहीं होने से क्या फर्क पड़ेगा?
– जिनका नाम 2003–04 की सूची में था, उन्हें लीगेसी वोटर माना जाएगा. उन्हें अतिरिक्त नागरिकता या पहचान दस्तावेज़ देने से छूट मिल सकती है; केवल पुरानी सूची के पेज या पहचान पर्याप्त होगी.
– जिनका नाम 2003–04 की सूची में नहीं था यानि बाद में जुड़ा. उन्हें ताजातरीन वेरिफिकेशन में शामिल किया जाएगा. उन्हें पहचान, निवास, जन्मतिथि या नागरिकता प्रमाण देना होगा, जैसे आधार, पासपोर्ट या माता-पिता के दस्तावेज़. इसलिए. इसका असर दस्तावेज़ देने के तौर पर पड़ेगा – ना कि मतदाता अधिकार पर.
सवाल – तो अब किस तरह मतदाता सूची का मिलान होगा या उनमें संशोधन होगा?
– SIR में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर सभी नामों का मिलान करेंगे. जो नाम 2003 सूची से पहले के हैं, उन्हें बस हस्ताक्षर या एक संक्षिप्त फॉर्म से वेरिफाई किया जाएगा. जो बाद में जुड़े, उनसे अतिरिक्त दस्तावेज़ मांगे जा सकते हैं. नाम हटाने की संभावना तभी
– जब व्यक्ति दो जगह मतदाता सूची में पाया जाए.
– व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी हो
– वह व्यक्ति अब उस क्षेत्र में नहीं रहता
– दस्तावेज़ देने में असफल हो और पहचान स्थापित न कर सके
सवाल – तो इसमें असली विवाद कहां है?
– इसमें विवाद अप्रत्यक्ष नागरिकता जांच के डर को लेकर है. कई विपक्षी दल और नागरिक समूह कह रहे हैं कि SIR, खासकर 2003 को आधार बनाना, नागरिकता की अप्रत्यक्ष जांच जैसा बन सकता है. क्योंकि 2003 में नागरिकता कानून में बड़ा संशोधन हुआ था, जिसने जिसने जन्म से नागरिकता के अधिकार को सीमित किया था.
– पुराने मतदाताओं को दस्तावेज़ी छूट देना और नए मतदाताओं से कड़े कागज़ मांगना “असमान” माना जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से इस बारे में पूछा भी है. खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में लोग सोच रहे हैं कि 2003 के बाद बने मतदाता अयोग्य हो जाएंगे या नहीं
सवाल – इस पूरे मामले में एसआईआर को वर्ष 2003-04 का आधार बनाने पर भारतीय चुनाव आयोग क्या कह रहा है?
– चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा है कि किसी भी वोटर का नाम केवल 2003 की वोटर सूची में नहीं होने के कारण हटाया नहीं जाएगा. ये रिफरेंस ईयर का इस्तेमाल लीगेसी मैचिंग और वेरिफिकेशन को आसान करने के लिए है.
इसका सीधा मतलब ये है- 2003–04 की सूची एक सहायता सूची का काम करेगी ना कि कोई सीमा रेखा का.
सवाल – तो किसे सतर्क रहना चाहिए?
– जिनके नाम हाल के वर्षों में यानि वर्ष 2015 से 2024 के बीच जोड़े गए हैं, उन्हें सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका फॉर्म-6, फोटो और आधार लिंकिंग सही है.
BLO के आने पर सही दस्तावेज़ दिखाना और साइन कराना ज़रूरी होगा. अगर नाम आब्जेक्शन लिस्ट में चला जाता है तो तय समय में फॉर्म-8 से जवाब देना होगा.
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।

3 hours ago
