Last Updated:November 07, 2025, 11:20 IST
Vande Mataram PM Modi Speech: पूरा देश वंदे मातरम के गौरवशाली 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है. दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया. उन्होंने वंदे भारत के मूल भाव के बारे में बता की. साथ ही उन्होंने बताया कि वंदे मातरम कैसे गुलामी के कालखंड में आजादी के संकल्प का उद्घोष बना.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे भारत के 150वीं जयंती पर देश को संबोधित किया. (फाइल फोटो)प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार यानी 7 नवंबर को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य आयोजित समारोह में भाग लिया. नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में वंदे मातरम के 150वें स्मरणोत्सव का उद्घाटन किया. साल भर चलने वाले इस समारोह के उद्घाटन समारोह के दौरान पीएम मोदी ने एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया और साथ ही उन्होंने इसका ट्रू-मिनिंग बताया.
7 नवंबर 2025, का दिन बहुत ऐतिहासिक है. आज हम ‘वंदे मातरम’ के 150वें वर्ष का महाउत्सव मना रहे हैं. यह पुण्य अवसर हमें नई प्रेरणा देगा, कोटि कोटि देशवासियों को नई ऊर्जा से भर देगा. इस दिन को इतिहास की तारीख में अंकित करने के लिए आज ‘वंदे मातरम’ पर एक विशेष सिक्का और डाक टिकट भी जारी किए गए हैं.
वंदे एक ऊर्जा, एक सपना एक संकल्प है. यह मां भारती की साधना आराधना है. ये शब्द हमें इतिहास में ले जाता है. हमारे वर्तमान को आत्मविश्वास देता है. आत्मविश्वास है कि ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जो हम पा ना सके. यह एक सामूहिक गान का अदभूत अनुभव है. ये अभिव्यक्ति से परे-एक लय एक स्वर एक भाव और भावनाओं से भरा माहौल है.
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था कि बंकिमचंद्र की 'आनंदमठ’ सिर्फ एक उपन्यास नहीं है, यह स्वाधीन भारत का एक स्वप्न है. ‘आनंदमठ’ में ‘वंदे मातरम’ का प्रसंग, उसकी हर पंक्ति, बंकिम बाबू के हर शब्द और हर भाव, सभी के अपने गहरे निहितार्थ थे, और आज भी हैं. इस गीत की रचना गुलामी के कालखंड में हुई, लेकिन इसके शब्द कभी भी गुलामी के साए में कैद नहीं रहे. वे गुलामी की स्मृतियों से सदा आजाद रहे. इसी कारण ‘वंदे मातरम’ हर दौर में, हर काल में प्रासंगिक है. इसने अमरता को प्राप्त किया है.
1875 में, जब बंकिम बाबू ने ‘बंग दर्शन’ में ‘वंदे मातरम’ प्रकाशित किया था, तब कुछ लोगों को लगा था कि यह तो बस एक गीत है. लेकिन देखते ही देखते ‘वंदे मातरम’ भारत के स्वतंत्रता संग्राम का स्वर बन गया. एक ऐसा स्वर, जो हर क्रांतिकारी की ज़ुबान पर था, एक ऐसा स्वर, जो हर भारतीय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा था!
राष्ट्र को एक geopolitical entity मानने वालों के लिए राष्ट्र को मां मानने वाला विचार हैरानी भरा हो सकता है. लेकिन भारत अलग है, भारत में मां जननी भी है और पालनहारिणी भी है. और अगर संतान पर संकट आ जाए तो मां 'संहार कारिणी' भी है.
वंदे मातरम हर युग और हर काल में प्रासंगिक है. इसने अमरता प्राप्त कर ली है. वंदे मातरम की पहली पंक्ति है: 'सुजलं सुफलं मलयजशीतलं शस्यश्यामलां मातरम्.' इसका अर्थ है- हमारी मातृभूमि को प्रणाम, जो प्रकृति के दिव्य आशीर्वाद से सुशोभित है.
1937 में, ‘वंदे मातरम’ के महत्वपूर्ण पदों को अलग कर दिया गया था, जो ऐसा था जैसे कि उसकी आत्मा के एक हिस्से को अलग कर दिया गया हो. ‘वंदे मातरम’ को तोड़ दिया गया था. इस विभाजन ने, देश के विभाजन के भी बीज बो दिए थे. राष्ट्र-निर्माण के इस महामंत्र के साथ यह अन्याय क्यों हुआ, यह आज की पीढ़ी को जानना जरूरी है. क्योंकि वही विभाजनकारी सोच आज भी देश के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.
वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य पर पीएम मोदी ने कहा, 'हमें इस सदी को भारत की सदी बनाना है. यह सामर्थ्य भारत में है, यह सामर्थ्य 140 करोड़ भारतीयों में है. और इसके लिए हमें खुद पर विश्वास करना होगा.
दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व...और पढ़ें
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
November 07, 2025, 11:10 IST

3 hours ago
