मोकामा टाल की धरती पर गोली और गोलबंदी, सियासी खेमेबंदी में 'D' फैक्टर खास

3 hours ago

पटना. बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर मोकामा विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में हमेशा चर्चा में रही है. प्राय: मीडिया की सुर्खियों में रहते आ रहे ‘छोटे सरकार’ अनंत सिंह दो दशक से इस सीट की राजनीति पर हावी रहे हैं. भूमिहार जाति से आने वाले अनंत सिंह ने यादव जाति के बड़े प्रभाव वाले इस इलाके में अपनी दबंग छवि से वर्चस्व कायम किया, लेकिन दुलारचंद यादव की हत्या ने एकाएक उस संतुलन को हिला दिया है. दरअसल, कभी लालू यादव के बेहद करीबी रहे दुलारचंद यादव का राजनीतिक सफर कई दलों और समीकरणों से गुजरा, लेकिन उनकी हत्या ने इस बार पूरे मोकामा क्षेत्र में जातीय ध्रुवीकरण को फिर से जगा दिया है. इसका परिणाम यह कि मोकामा का चुनाव अब सियासी जमीन पर तीनतरफा तो दिख रहा है, लेकिन अब यह दो ध्रुवीय होता हुआ लग रहा है. मोकामा की राजनीति में अनंत सिंह (जदयू) बनाम बीना देवी (राजद) बनाम पीयूष प्रियदर्शी (जनसुराज) का संघर्ष सियासी जमीन पर साफ-साफ दिख रहा है. लेकिन, भीतर ही भीतर 1990 के दशक वाली जातीय गोलबंदी जैसी सियासी तस्वीर भी उभरती हुई प्रतीत हो रही है.

दरअसल, बाहुबलियों की आपसी अदावत में जान गंवा चुके दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा की राजनीति एक बार फिर उबाल पर है. राजनीति के जानकार बताते हैं कि भूमिहार वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में जहां अनंत सिंह की दबंग छवि वर्षों से कायम थी, वहीं अब यादव और धानुक समुदाय के समीकरण इस सत्ता-संतुलन को चुनौती दे रहे हैं. बदले माहौल में यादव समाज का रुझान दोबारा आरजेडी की ओर लौटता हुआ दिख रहा है. जबकि, परंपरागत रूप से नीतीश कुमार का वोट बैंक धानुक समाज अब जनसुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी (धानुक जाति से हैं) के साथ गोलबंद होने की बातें सियासी फिजा में फैल रही हैं. ऐसे में यहीं से मोकामा का सियासी समीकरण भी उलझता हुआ प्रतीत हो रहा है. जानकारों की नजर में मोकामा विधानसभा सीट बाहुबली की ताकत से नहीं, बल्कि समाज की संवेदनाओं, जातीय गोलबंदी और रणनीतिक चतुराई से तय होगी.

दुलारचंद मौत से एनडीए को झटका, किसका अपर हैंड?

“200 राउंड गोली चलाने वाले को सरकार बचा रही है”… यह कहते हुए तेजस्वी यादव ने भले ही किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका यह बयान- सीधे अनंत सिंह की ओर इशारा माना गया. जाहिर है जनसुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के प्रचार के दौरान दुलारचंद यादव की हत्या ने चुनावी माहौल को अचानक जातीय और भावनात्मक दिशा देने की कोशिश की है. दूसरी ओर, अनंत सिंह ने सूरजभान सिंह को जिम्मेदार ठहराकर यह दिखाने का प्रयास किया है कि दुलारचंद यादव की हत्या का पूरा मामला राजनीतिक षड्यंत्र है. साफ है कि हत्या के बाद से ही माहौल बेहद संवेदनशील है और जमीनी सच्चाई यह भी है कि दुलारचंदयादव की हत्या ने एनडीए खेमे को बड़े नुकसान की आशंका से डरा दिया है.

मोकामा में दुलारचंद यादव की हत्या ने चुनावी समीकरण बदल दिए हैं. अनंत सिंह, बीना देवी और पीयूष प्रियदर्शी के बीच जातीय गोलबंदी निर्णायक बन गई है.

मोकामा विधानसभा सीट की राजनीति गंगा की धारा की तरह

बता दें कि दुलारचंद यादव पहले लालू यादव के करीबी थे, लेकिन बाद में कई राजनीतिक ध्रुवों से जुड़े और अंततः जनसुराज के समर्थन में उतर गए. हालांकि, दुलारचंद के पोते ने एक मीडिया चैनल से कहा है कि वह भीतर-भीतर आरजेडी का चुनाव प्रचार कर रहे थे. बावजूद इसके चूंकि खुले तौर पर वह जन सुराज के पक्ष में प्रचार करते देखे जा रहे थे तो अब मोकामा में उनके समर्थक भावनात्मक रूप से जनसुराज के पक्ष में झुकाव दिखा रहे हैं, यानी सहानुभूति वोटों का रुझान बदल सकता है. धानुक समाज पारंपरिक रूप से जेडीयू समर्थक रहा, परंतु 2024 लोकसभा चुनाव में उसने आरजेडी की ओर झुकाव दिखाया था. अब चूंकि पीयूष प्रियदर्शी इसी समाज से आते हैं, और हत्या की सहानुभूति लहर भी है, इसलिए यह वर्ग निर्णायक भूमिका में आता दिख रहा है.

धानुक समाज का झुकाव बना मोकामा चुनाव का मेन फैक्टर

मोकामा में लगभग 2.68 लाख मतदाता हैं जिनमें भूमिहार, यादव, कुर्मी (धानुक) और मुस्लिम-पासवान प्रमुख जातीय समूह हैं. जानकारी के अनुसार, भूमिहार- लगभग 22-25% हैं तो यादव करीब 20-22% हैं. कुर्मी/धानुक (Dhanuk-D Factor) की आबादी 18-20% और दलित-पासवान-मुस्लिम मिलाकर करीब 30% के करीब होते हैं. 2020 के विधानसभा उपचुनाव में जब नीलम देवी (अनंत सिंह की पत्नी) ने उपचुनाव जीता तब धानुक समाज का एक बड़ा हिस्सा निष्क्रिय रहा था. लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव में यही समाज आरजेडी के प्रत्याशी के पक्ष में झुका दिखा था. ऐसे में यह संकेत था कि कुर्मी/धानुक वोट अब स्थायी रूप से एनडीए के साथ नहीं हैं. वही, दुलारचंद यादव की हत्या के बाद पीयूष प्रियदर्शी (स्वयं धानुक समुदाय से) के पक्ष में सहानुभूति और जातीय एकता दोनों फैक्टर एकसाथ आ गया है.

तेजस्वी यादव की एंट्री और आरजेडी की आक्रामक रणनीति

हत्या के बाद तेजस्वी यादव, तेजप्रताप यादव, अशोक महतो और पप्पू यादव जैसे नेता मौके पर पहुंच चुके हैं. जाहिर है यह आरजेडी की रणनीतिक चाल-यादव-मुस्लिम वोटों के साथ-साथ सहानुभूति की लहर को भुनाने की प्रतीत हो रही है. जानकारों की नजर में तेजस्वी यादव का तीन मकसद तो साफ-साफ दिख रहा है. पहला- यादव समाज को पूरी तरह एकजुट रखना, दूसरा मुस्लिम वोट को एनडीए के खिलाफ मोड़े रखना और तीसरा धानुक समाज में ‘दलित-पिछड़ा एकता’ का नैरेटिव खड़ा करना. जानकार कहते हैं कि यदि यह गोलबंदी सफल हुई तो मोकामा में ‘अगड़ा बनाम पिछड़ा’ का सीधा समीकरण बन जाएगा और इसका सीधा नुकसान अनंत सिंह को हो सकता है.

दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा में जातीय गोलबंदी ने बदला पूरा समीकरण. अनंत सिंह के सामने राजनीतिक चुनौती बढ़ गई.

अनंत और सूरजभान…भूमिहार समाज के आगे दोहरी दुविधा

वहीं, दूसरी ओर भूमिहार मतदाता मोकामा में अब दो ध्रुवों में बंटे हुए दिख रहे हैं. एक ओर अनंत सिंह हैं जो वर्षों से इस समाज के प्रतीक माने जाते रहे तो दूसरी ओर सूरजभान सिंह का परिवार है, जिनकी पत्नी बीना देवी आरजेडी प्रत्याशी हैं. दोनों का आधार एक ही जाति समूह है, लेकिन राजनीतिक पृष्ठभूमि अलग-अलग है. अगर भूमिहार वोट दो हिस्सों में बंटा तो तेजस्वी यादव और जनसुराज दोनों को फायदा मिलेगा. वहीं, आरजेडी का फोकस साफ है यादव-मुस्लिम एकजुटता के साथ धानुक समाज में ‘दलित-पिछड़ा एकता’ का नैरेटिव स्थापित करना. अगर यह रणनीति काम कर गई तो एनडीए खेमे के लिए पक्की जीत वाली मानी जा रही मोकामा सीट पर एनडीए के लिए नुकसान हो जाने का खतरा भी मंडराता रहेगा.

मोकामा विधानसभा सीट की सियासत अब टाल की तरह गहरी!

दरअसल, मोकामा का दुलारचंद यादव मर्डर केस केवल कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि जातीय गोलबंदी की नई शुरुआत है. यादव समाज पहले से ही आरजेडी के पक्ष में है, वहीं धानुक समाज सहानुभूति के चलते जनसुराज की तरफ झुक सकता है, जबकि भूमिहार समाज के वोट दो हिस्सों में बंट सकते हैं. इन तीनों फैक्टरों का जोड़ यह संकेत दे रहा है कि अनंत सिंह की राह अब पहले जैसी आसान नहीं रही. मोकामा विधानसभा सीट की यह लड़ाई अब ‘बाहुबल बनाम जनबल’ की नहीं रही, बल्कि जातीय रणनीति, भावनात्मक सहानुभूति और सियासी प्रबंधन की जंग बन चुकी है, जिसकी कमान अब टाल के पानी की तरह बहते वोट तय करेंगे- ये कब, किस ओर मुड़ जाएं कहना मुश्किल है.

Read Full Article at Source