चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए जबरदस्त टिप्पणी की. जजों ने अपनी टिप्पणी में महान तमिल कवि तिरुवल्लुवर और महात्मा गांधी को भी कोट किया. दरअसल मद्रास हाई कोर्ट ने शराब की दुकान के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध कर रहे ग्रामीणों पर दर्ज FIR को रद्द करते हुए एक ऐसा ऑर्डर जारी किया, जिसने पूरे देश का ध्यान खींच लिया. अपने फैसले में कोर्ट ने शराब के दुष्प्रभावों का भी जिक्र किया. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा ‘जो शराब पीते हैं, वे खुद को और अपने लोगों को बर्बाद करते हैं.’
फैसले में हाई कोर्ट ने साफ कहा कि ग्रामीणों ने इलाके में मौजूद सरकारी TASMAC शराब दुकान का विरोध इसलिए किया क्योंकि इससे महिलाओं, बच्चों और आवासीय इलाकों को परेशानी हो रही थी. ऐसे में शांतिपूर्ण विरोध को अपराध बताकर दर्ज की गई FIR न्यायसंगत नहीं थी. अदालत के इस स्टैंड ने एक बार फिर शराबबंदी, सार्वजनिक असुविधा और नागरिक अधिकारों पर बहस को नई दिशा दी है.
क्या है पूरा मामला?
फरवरी 2025 में रामनाथपुरम जिले में TASMAC दुकान के सामने स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन किया. यह विरोध बिना अनुमति के किया गया था. इसके आधार पर VAO की शिकायत पर पुलिस ने 10 ग्रामीणों और अन्य लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कर दी. FIR में BNS की धारा 126(2), 189(2), 192, 292 और 132 के तहत आरोप लगाए गए थे. आरोप था कि प्रदर्शनकारियों ने अनुपयुक्त भीड़, नागरिक असुविधा और अधिकारी को ड्यूटी से रोकने जैसी हरकतें कीं.
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में कहा कि यह विरोध पूरी तरह शांतिपूर्ण था और उन्होंने सिर्फ यह मांग की थी कि आवासीय इलाकों के बीच चल रही दारू की दुकान को हटाया जाए.
कोर्ट ने तिरुवल्लुवर और गांधी का जिक्र क्यों किया?
जस्टिस बी. पुगलेंधी ने अपने आदेश में शराब से होने वाले सामाजिक और मानसिक नुकसान पर विस्तृत टिप्पणी की. उन्होंने कहा-
तिरुवल्लुवर का जिक्र
“जिस तरह सोया हुआ व्यक्ति मृत समान है, उसी तरह शराब के असर में व्यक्ति जहर खाने जैसा होता है.”
“जब एक मां अपने बेटे की गलतियों को माफ कर देती है, वह भी उसे नशे में देखकर सहन नहीं कर पाती.”
गांधी का जिक्र
“शराब आदमी को खुद से दूर कर देती है. जो शराब पीते हैं, वे खुद को और अपने लोगों को बर्बाद करते हैं.”
अदालत का मानना था कि अगर हजारों साल पुराने साहित्य से लेकर आजादी के नेताओं तक सभी शराब के सामाजिक दुष्प्रभावों को लेकर चेतावनी देते आए हैं, तो ग्रामीणों का यह विरोध न केवल जायज़, बल्कि सार्वजनिक हित से जुड़ा हुआ था.
आखिर विरोध किस बात का था?
ग्रामीणों का मुख्य तर्क था कि-
TASMAC दुकान घनी आबादी वाले इलाके में है. इससे महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा की समस्या. रात के समय लोगों का आना-जाना मुश्किल. शराब पीकर उत्पात मचाने की घटनाएं आम. स्कूल जाने वाले बच्चों पर खराब असर.याचिकाकर्ताओं ने कहा कि दुकान हटाने की मांग करना नागरिक अधिकार है, अपराध नहीं. सरकार की ओर से विपक्ष रखते हुए एडवोकेट पी. कोट्टैचामी ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने बिना अनुमति प्रदर्शन किया और सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित की.
कोर्ट ने FIR क्यों रद्द की?
अदालत ने चार महत्वपूर्ण बिंदु गिनाए-
फैसले के प्रमुख आधार
शांतिपूर्ण विरोध लोकतांत्रिक अधिकार है. प्रदर्शन से सार्वजनिक व्यवस्था भंग होने के कोई सबूत नहीं. याचिकाकर्ताओं ने किसी सरकारी अधिकारी पर हमला नहीं किया. FIR का मकसद “असंतोष जताने वालों पर दबाव” जैसा दिखता है. शराब दुकान से होने वाली असुविधा के आरोप वास्तविक और सामुदायिक हित से जुड़े.अदालत ने कहा कि प्रशासन को आम लोगों की चिंता सुननी चाहिए, न कि उन्हें अपराधी की तरह ट्रीट करना चाहिए.
फैसले की अहमियत
यह फैसला सिर्फ एक FIR रद्द करने भर का नहीं, बल्कि शराब नीति, नागरिक अधिकारों और सार्वजनिक व्यवस्था पर न्यायपालिका के दृष्टिकोण को नई रोशनी देता है. दक्षिण भारत में TASMAC की दुकानों को लेकर लंबे समय से बहस चलती रही है. लत, अपराध और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों को ग्रामीण बार-बार उठाते आए हैं. अदालत ने पहली बार इस प्रकार के विरोध को नैतिक और ऐतिहासिक आधार देते हुए तिरुवल्लुवर और गांधी का जिक्र किया.

1 hour ago
