Last Updated:December 03, 2025, 18:15 IST
Unique campaign to save Rajasthani tradition : राजस्थान की पारंपरिक पगड़ी और धोती–कुर्ता की बदलती जीवनशैली में धीरे-धीरे होता गायब प्रचलन अब फिर से जीवन पा रहा है. झुंझुनूं जिले की अजाडी कलां ग्राम पंचायत में आयोजित एक अनूठी सांस्कृतिक पहल के तहत 21 बुजुर्गों को पगड़ी और पारंपरिक वेशभूषा पहनाकर सम्मानित किया गया, ताकि युवाओं में संस्कृति के प्रति गर्व और जुड़ाव बढ़े.
अजाडी कलां ग्राम पंचायत में संस्कृति संरक्षण के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजितझुंझुनूं : आधुनिक फैशन के दौर में राजस्थान की अद्वितीय पहचान – पगड़ी और धोती – कुर्ता – ग्रामीण इलाकों में भी कम होता जा रहा है. इसी चिंता को देखते हुए झुंझुनूं जिले की अजाडी कलां ग्राम पंचायत में ग्रामीणों ने एक सराहनीय पहल की है. संस्कृति को जीवित रखने और युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने के उद्देश्य से केसुके बालाजी मंदिर परिसर में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया. इसमें अजाडी कलां और बास नानक गांव के 21 बुजुर्गों को पगड़ी पहनाकर और धोती–कुर्ता भेंट कर सम्मानित किया गया.
इस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि यह किसी परिवारिक रस्म, शादी या धार्मिक अनुष्ठान के तहत नहीं हुआ, बल्कि केवल राजस्थानी संस्कृति के संरक्षण और पुनर्जीवन के उद्देश्य से आयोजित किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत परंपरागत तरीके से हुई जिसमें ग्रामीणों ने बुजुर्गों को तिलक लगाकर स्वागत किया. इसके बाद जब बुजुर्गों के सिर पर शान की पगड़ी सजाई गई तो पूरा परिसर तालियों से गूंज उठा. उपस्थित ग्रामीणों ने इस अनूठे नवाचार की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसे प्रयास राजस्थान की पहचान को नई ऊर्जा देंगे.
सम्मानित बुजुर्ग विधाधर ने भावुक होते हुए कहा
“राजस्थान की असली शान हमारे पहनावे में है. पगड़ी और धोती–कुर्ता गौरव के प्रतीक हैं. आज के युवाओं को भी इन्हें अपनाना चाहिए.” उन्होंने यह भी कहा कि जिस अपनत्व और सम्मान के साथ उन्हें पारंपरिक वेशभूषा पहनाई गई, उसने वर्षों पुरानी यादें ताजा कर दीं. आयोजकों का मानना है कि नई पीढ़ी आधुनिक पहनावे की ओर ज्यादा आकर्षित हो रही है, जिससे पूर्वजों की सांस्कृतिक धरोहर धीरे-धीरे गुम होती जा रही है. यदि समय रहते परंपरा को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ियां अपनी विरासत से दूर हो सकती हैं.
संस्कृति संरक्षण की दिशा में अहम पहल
ग्रामीणों ने उम्मीद जताई कि यदि इस तरह के कार्यक्रम निरंतर आयोजित होते रहे, तो सांस्कृतिक वेशभूषा न केवल जीवित रहेगी बल्कि गर्व के साथ भविष्य तक पहुंचेगी. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने उत्साह के साथ भाग लिया. सभी का मत यही रहा कि संस्कृति का सम्मान और संरक्षण तभी संभव है, जब समाज खुद मिलकर इसे मजबूत बनाए. यह पहल उसकी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी.
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रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन...और पढ़ें
Location :
Jhunjhunu,Rajasthan
First Published :
December 03, 2025, 18:15 IST

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