मंदिर जाने से इनकार पर ईसाई अधिकारी की बर्खास्तगी, क्या कहता है आर्मी एक्ट

17 minutes ago

Army Act: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ईसाई सैन्य अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा, जिसने एक मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा कि सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है और इसके अनुशासन से समझौता नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, “आपने अपने सैनिकों की भावनाओं को ठेस पहुंचायी है.” कोर्ट ने अधिकारी सैमुअल कमलेसन पर घोर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए उन्हें ‘सेना के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त’ बताया.

2017 में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त और सिख स्क्वाड्रन में तैनात कमलेसन ने अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती देते हुए तर्क दिया था कि मंदिर में प्रवेश के लिए मजबूर करना उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि उनका आचरण वैध आदेश की अवज्ञा के बराबर है. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के मई 2025 के आदेश को बरकरार रखा. इस आदेश में अधिकारी सैमुअल कमलेसन को 2021 में पेंशन और ग्रेच्युटी के बिना भारतीय सेना से बर्खास्त करने का आदेश दिया गया था.

सेना ने क्यों हटाया ईसाई अधिकारी को?
2017 में कमीशन प्राप्त सैमुअल कमलेसन एक सिख स्क्वाड्रन में तैनात थे. बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार , अनिवार्य रेजिमेंटल परेड के दौरान रेजिमेंट के हिंदू मंदिर और गुरुद्वारे के गर्भगृह में प्रवेश करने से इनकार करने पर उन्हें अनुशासनात्मक कार्यवाही का सामना करना पड़ा. कमलेसन ने दावा किया कि उनकी आपत्ति न केवल उनके ईसाई धर्म के प्रति सम्मान के संकेत के रूप में थी, बल्कि उनके सैनिकों की भावनाओं के प्रति भी सम्मान था. ताकि अनुष्ठानों में उनकी गैर-भागीदारी से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उनके सैनिकों ने इसका बुरा नहीं माना, न ही इससे उनके और उनके बीच के मजबूत रिश्ते पर कोई असर पड़ा. हालांकि, सेना ने कहा कि वरिष्ठ अधिकारियों और ईसाई पादरियों द्वारा परामर्श के बाद भी अधिकारी ने अपना रुख नहीं बदला.

हाईकोर्ट ने भी बर्खास्तगी को बरकरार रखा
अंततः 2021 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया. सेना ने कहा कि अधिकारी की आपत्ति से यूनिट की एकजुटता और सैनिकों का मनोबल कमजोर हुआ है. 30 मई के अपने आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट ने कमलेसन की बर्खास्तगी को बरकरार रखा और कहा कि अधिकारी ने अपने धर्म को अपने वरिष्ठ के वैध आदेश से ऊपर रखा, जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता का कृत्य था. इसमें यह भी कहा गया कि सेना अधिनियम की धारा 41 के तहत वरिष्ठ अधिकारी के आदेश की अवहेलना करना अपराध है.

सैन्य अधिकारी ने दिया क्या तर्क?
सैमुअल कमलेसन  की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को सिर्फ इस आधार पर बर्खास्त कर दिया गया कि उन्होंने गर्भगृह में प्रवेश करने से परहेज किया. क्योंकि यह उनकी आस्था के विरुद्ध था और उन्होंने तभी आपत्ति जताई जब उन्हें पूजा करने के लिए कहा गया. शंकरनारायणन ने आगे कहा कि अधिकारी उन जगहों पर जाते थे जहां सर्वधर्म स्थल थे. शंकरनारायणन नेआगे कहा, “इस विशेष रेजिमेंटल सेंटर में केवल एक मंदिर या गुरुद्वारा है. उन्होंने (अधिकारी ने) मंदिर में प्रवेश करने से इनकार कर दिया और कहा कि गर्भगृह में प्रवेश करना मेरी आस्था के विरुद्ध है. मैं बाहर से फूल चढ़ाऊंगा, लेकिन अंदर नहीं जाऊंगा. किसी और को कोई समस्या नहीं थी, लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी.” शंकरनारायणन ने कहा, “मुझे किसी देवता की पूजा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. संविधान इतनी स्वतंत्रता देता है.”

आर्मी एक्ट और अनुशासनहीनता
भारतीय सेना आर्मी एक्ट, 1950 और उसके तहत बनाए गए आर्मी रूल्स, 1954 द्वारा शासित होती है. ये अधिनियम सेना के कर्मियों के आचरण, अनुशासन और कर्तव्यों को परिभाषित करते हैं. आर्मी एक्ट ऐसे किसी भी कार्य को गंभीर अनुशासनहीनता मानता है जो सेना के किसी आदेश की अवज्ञा करता हो या सैन्य सद्भाव को भंग करता हो. कमलेसन का मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से इनकार करना, जब यह रेजिमेंटल गतिविधि का हिस्सा था. इसे एक आदेश की अवज्ञा और सैनिकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला कार्य माना गया. कोर्ट ने इसे धारा 41 (सेवा में रहते हुए वरिष्ठ अधिकारी की अवज्ञा) और धारा 63 (सेवा के लिए हानिकारक आचरण) के तहत दंडनीय अपराध माना.

रेजिमेंटल भावना और धर्मनिरपेक्षता
भारतीय सेना अपनी रेजिमेंटल परंपराओं और विभिन्न धर्मों के सैनिकों के बीच अटूट एकता के लिए जानी जाती है. एक अधिकारी का प्राथमिक कर्तव्य इस एकता और मनोबल को बनाए रखना है. सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है. एक अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह अपने सैनिकों की धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं का सम्मान करे और सभी रेजिमेंटल गतिविधियों में भाग लेकर एकता का प्रदर्शन करे, बशर्ते कि वे गतिविधियां कानूनन अवैध न हों. एक अधिकारी द्वारा जानबूझकर एक रेजिमेंटल परंपरा में भाग लेने से इनकार करना, विशेष रूप से धार्मिक आधार पर, रेजिमेंटल भावना के विपरीत है. कोर्ट ने माना कि यह आचरण अधिकारी को धर्मनिरपेक्ष और एकजुट सेना के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त बनाता है.

संवैधानिक स्वतंत्रता की सीमा
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है. सेना के संदर्भ में ‘अनुशासन और रेजिमेंटल सद्भाव’ को सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए अनिवार्य माना जाता है. इसलिए सेना द्वारा अपने अनुशासन को बनाए रखने के लिए धार्मिक स्वतंत्रता पर लगाए गए तर्कसंगत प्रतिबंधों को संवैधानिक रूप से उचित ठहराया जाता है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धार्मिक प्रचार या धार्मिक आधार पर आदेश की अवज्ञा अनुशासन को कमजोर करती है और सेना को इसे रोकने का अधिकार है.

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