भारत के किस इलाके को कहते हैं 'छोटा ईरान',किस राज्य को मानते हैं 'छोटा इजरायल'

1 week ago

दुनियाभर में इस समय ईरान और इजरायल खासे चर्चा में हैं. क्या आपको मालूम है कि भारत में भी एक इलाका ऐसा है जिसको छोटा ईरान कहते हैं. उसी तरह देश में कम से कम तीन ऐसी जगहें हैं, जिन्हें मिनी इजरायल या छोटा इजरायल कह देते हैं.

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर ईरान से हमेशा खास रिश्ता रहा है. इस शहर में बहुत से लोग ऐसे हैं जो पिछले 400 सालों में ईरान से यहां आए और फिर यहीं बस गए. उनके तौरतरीके और त्योहार अब तक ईरानियों से मिलते हुए हैं. उसी तरह हिमाचल प्रदेश के कसोल, धर्मकोट को मिनी इजरायल कहते हैं. इसी तरह मिजोरम को भी छोटा इजरायल कहा जाता है.

हैदराबाद को “छोटा ईरान” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां की संस्कृति, खानपान, भाषा, वास्तुशिल्प और समाज में ईरानी प्रभाव गहराई से रचा-बसा है. यहां बसे ईरानी परिवारों ने अपनी परंपराओं को सहेजकर रखा है, जिससे हैदराबाद में एक अनूठा ईरानी रंग देखने को मिलता है.

ईरान से आए शख्स ने रखी थी इस शहर की नींव

16वीं सदी में क़ुली क़ुतुब शाह का शाही घराना ईरान से दिल्ली आया था. वहां से दक्षिण भारत के दक्कन क्षेत्र में आकर बसा. इसी परिवार ने हैदराबाद की नींव रखी, जिससे शहर की संस्कृति, वास्तुशिल्प, खान-पान और भाषा पर ईरानी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है.

हालांकि ईरान से आकर बसे कई परिवारों की तीसरी-चौथी पीढ़ी खुद को ‘पक्का हैदराबादी’ मानती है, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़ी हुई है. वे अपनी विरासत, भाषा, खानपान और आतिथ्य को गर्व के साथ आगे बढ़ाते हैं.

हैदराबाद के बनाने पर ईरान का बहुत असर है. हैदराबाद की नींव रखने वाले कुली कुतुब शाह का परिवार ईरान से ही आया था. (news18)

ईरानी परंपराओं का पालन करते हैं यहां के शिया

हैदराबाद में शिया मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है, जो ईरानी रीति-रिवाज और मज़हबी परंपराओं का पालन करती है. मुहर्रम के मौके पर अशूरख़ाना, अंजुमन, और मातम का चलन ईरान की परंपरा से काफी मिलता-जुलता है. निज़ाम के ज़माने में हैदराबाद में ईरान से आए कई शिया आलिम, कारीगर और व्यापारी बस गए थे. पुराने शहर के कई मोहल्लों में आज भी ईरानी ताजियादारी और महफ़िलें होती हैं.

घरों में फारसी और ईरानी व्यंजन आम

हैदराबाद में ईरानी चाय और बिरयानी बेहद लोकप्रिय हैं. यहां के कई रेस्तरां और कैफे ईरानी शैली की चाय और व्यंजन परोसते हैं. कई ईरानी परिवार पीढ़ियों से हैदराबाद में बसे हैं, जो अपनी भाषा, भोजन और संस्कृति को आज भी जीवित रखे हुए हैं. घरों में फ़ारसी बोली जाती है और ईरानी व्यंजन आम हैं.

हैदराबाद के स्थापत्य पर ईरानी शहर शिराज़ का गहरा प्रभाव है. (news18)

इस ईरानी जगह को देखकर बनाया गया हैदराबाद

हैदराबाद के स्थापत्य पर ईरानी शहर शिराज़ का गहरा प्रभाव है. क़ुतुब शाही और निज़ामों के शासनकाल में ईरान से वास्तुकार, उलेमा और इंजीनियर बुलाए जाते थे. इतिहासकारों के अनुसार, हैदराबाद की योजना मध्य ईरान के इस्फहान प्रांत से प्रेरित मानी जाती है. फारसी में हैदराबाद का उच्चारण भी ‘हेदराबाद’ जैसा होता है.

भारत का वो राज्य जिसे छोटा इजरायल कहते हैं

हिमाचल प्रदेश के दो गांवों में इजरायली इतने बहुतायत में आते हैं कि उस जगह मिनी इजरायल ही कहा जाने लगा है लेकिन उससे पहले हम जानते हैं भारत के एक ऐसा राज्य के बारे में जिसे छोटा इजरायल ही कहा जाता है.

मिज़ोरम में बनेई मेनाशे (Bnei Menashe) नामक समुदाय, जिन्हें यहूदी माना जाता है. इजरायल ने भी उनको अपने यहां बसने की अनुमति दे दी है. (news18)

यहूदी रहते हैं यहां यहूदी परंपराओं का पालन भी

भारत में मिज़ोरम राज्य को अक्सर “छोटा इज़राइल” कहा जाता है. इसके पीछे ऐतिहासिक और धार्मिक कारण हैं. मिज़ोरम में बनेई मेनाशे (Bnei Menashe) नामक समुदाय के लोग रहते हैं, जो अपने आपको इज़राइल की खोई हुई 10 जातियों में एक का वंशज मानते हैं. इन लोगों ने यह दावा किया कि वे यहूदी हैं और वर्षों से यहूदी परंपराओं का पालन करते आ रहे हैं.

उनका दावा है कि वे प्राचीन इजरायल की खोई हुई दस यहूदी जनजातियों के वंशज हैं. इनका दावा है कि 722 ईसा पूर्व में जब अश्शूर साम्राज्य ने इजरायल पर विजय प्राप्त की थी, तब उनके पूर्वज वहां से निर्वासित होकर मध्य-पूर्व चीन होते हुए भारत-बर्मा सीमा के इस इलाके में आकर बस गए.

20वीं सदी में जब मिजोरम और मणिपुर में ईसाई मिशनरियों ने बाइबल का अनुवाद स्थानीय भाषाओं में किया, तब इन समुदायों को अपनी यहूदी जड़ों का अहसास हुआ. उन्होंने यहूदी धर्म के रीति-रिवाजों को फिर से अपनाना शुरू किया. आज भी बनेई मेनाशे समुदाय के लोग इजरायल के यहूदी त्योहार, परंपराएं और धार्मिक रीति-रिवाज भारतीय संस्कृति के साथ निभाते हैं.

इजरायल ने इन्हें यहूदी मान इजरायल में बसने की अनुमति दी

इज़राइल की सरकार ने 2005 से इन्हें यहूदी मानते हुए इज़राइल आने और बसने की अनुमति दी. मिज़ोरम और मणिपुर के इन इलाकों में हिब्रू परंपराएं, सबात का पालन और पुराने यहूदी रीति-रिवाज आज भी देखे जाते हैं.

हिमाचल के कसोल गांव को मिनी इजरायल कहा जाता है. वहां के दुकानों के बोर्डों और रेस्टोरेंट पर हिब्रू भाषा में लिखा भी मिल जाएगा. (News18)

कैसे इजरायल ने इन्हें अपने यहां बसने की अनुमति दी

इजरायल ने मिजोरम और मणिपुर के बनेई मेनाशे समुदाय के सदस्यों को यहूदी मानकर इजरायल में बसने की अनुमति दी लेकिन यह प्रक्रिया कुछ शर्तों और औपचारिकताओं के साथ होती है.

2005 में इजरायल के सेफार्डी चीफ रब्बी श्लोमो अमर ने बनेई मेनाशे को “इस्राएल की खोई हुई जनजाति” के रूप में औपचारिक मान्यता दी. इसके बाद, इजरायली रब्बिनेट (यहूदी धार्मिक प्राधिकरण) की देखरेख में इन लोगों का औपचारिक रूप से यहूदी धर्म में धर्मांतरण कराया गया. इसके बाद ही वे इजरायल में ‘अलियाह’ (यहूदी प्रवास) के पात्र माने जाते हैं.

3000 बनेई मेनाशे इजरायल में जाकर बस भी चुके हैं

अब तक लगभग 3,000 बनेई मेनाशे सदस्य इजरायल में बस चुके हैं. करीब 7,000 लोग अब भी भारत में हैं जो भविष्य में इजरायल जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इजरायल सरकार समय-समय पर सीमित संख्या में ही इन्हें इजाजत देती है. प्रत्येक व्यक्ति को इजरायल के कानून के अनुसार यहूदी धर्म अपनाने की प्रक्रिया पूरी करनी होती है.

कसोल और धर्मकोट को भी कहा जाता है मिनी इजरायल

इसी तरह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के गांव कसोल और धर्मकोट को मिनी इजरायल कहा जाता है. कसोल को यह उपनाम इसलिए मिला क्योंकि 1990 के दशक से यहां बड़ी संख्या में इजरायली पर्यटक आना शुरू हुए. अब यहां की संस्कृति, खानपान, रेस्टोरेंट्स, होटल्स और यहां तक कि सड़कों पर भी इजरायली प्रभाव साफ दिखाई देता है. यहां के कई रेस्टोरेंट्स में हिब्रू भाषा में मेन्यू मिलते हैं. कई इजरायली नागरिक यहां लंबे समय तक रहते भी हैं.

धर्मकोट में चबाड हाउस भी

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में धर्मशाला के पास धर्मकोट गांव को भी “मिनी इजरायल” या “पहाड़ों का तेल अवीव” कहा जाता है. यहां भी इजरायली पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं. यहां एक चबाड हाउस (यहूदी सामुदायिक केंद्र) भी है, जिससे यहूदियों को घर जैसा माहौल मिलता है.

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