Last Updated:July 28, 2025, 12:14 IST
Career Tips: कॉलेज में कैंपस प्लेसमेंट न मिले तो पहली नौकरी ढूंढ पाना मुश्किल हो जाता है. इस स्थिति में अपनी स्किल्स पर काम करके आप नए अवसर बना सकते हैं.

नई दिल्ली (Career Tips). हर साल देशभर के कॉलेजों से हजारों नए ग्रेजुएट अपना करियर शुरू करने के लिए बाहर निकलते हैं. हालांकि, उन्हें बहुत जल्द अहसास होता है कि प्रोफेशनल माहौल में सफल होने के लिए सिर्फ किताबी ज्ञान ही काफी नहीं है. जॉब मार्केट में कॉम्पिटीशन का स्तर बहुत बढ़ गया है. उसमें अपनी जगह बनाने के लिए स्किल्स को अपग्रेड करते रहना जरूरी है. पहली बार जॉब करने जा रहे हैं तो एकेडमिक्स यानी कॉलेज रिजल्ट के साथ ही स्किल्स का टेस्ट भी मायने रखता है.
जरा सोचिए, एक फ्रेशर जॉब इंटरव्यू के लिए जाता है. वह टेक्निकली क्वॉलिफाइड है, लेकिन उसे खुद को इंट्रोड्यूस करना नहीं आता, बोलने में कॉन्फिडेंस की कमी है और वर्कप्लेस के तौर-तरीकों से अनजान है. इससे पता चलता है कि कॉलेज में मिली एजुकेशन और असली दुनिया की नौकरियों के बीच कितना बड़ा फासला है. ऐसे में ‘री-स्किलिंग’ एजुकेशन और एंप्लॉयमेंट में सफलता के बीच एक ब्रिज का काम करती है. RuralShores Skill Academy के सीईओ नीरज अग्रवाल से समझिए, रीस्किलिंग क्या है और इसके फायदे.
असल है Employability गैप लेकिन परमानेंट नहीं
कॉलेज से नौकरी की दुनिया में कदम रखना मुश्किल होता है. यूनिवर्सिटी किताबी ज्ञान तो खूब देती है, लेकिन स्टूडेंट्स को रियल वर्ल्ड के लिए जरूरी स्किल सिखाने में कहीं-न-कहीं पीछे रह जाती है. इन जरूरी स्किल्स में कम्युनिकेशन, साथ मिलकर काम करना (कोलैबोरेशन), ऑफिस के तौर-तरीके (वर्कप्लेस एटिकेट) और डिजिटल जानकारी (डिजिटल फ्लुएंसी) शामिल हैं. हो सकता है कि नए ग्रेजुएट्स को बिजनेस प्रिंसिपल पता हों, लेकिन उन्हें एक प्रोफेशनल ईमेल लिखने, टाइम ठीक से मैनेज करने या टीमवर्क में दिक्कत आ सकती है.
री-स्किलिंग का मतलब क्या है?
री-स्किलिंग का मतलब ये नहीं है कि आपको फिर से स्कूल जाना है या सब कुछ नए सिरे से सीखना है. इसका मतलब है- पहले से मिली शिक्षा पर रियल वर्ल्ड की स्किल्स जोड़ना. यह आपको सिखाता है कि प्रैक्टिकली कैसे सोचना है, तुरंत प्रॉब्लम को कैसे सॉल्व करना है और प्रभावी ढंग से बातचीत कैसे करनी है. री-स्किलिंग प्रोग्राम में जिन मेन स्किल्स पर अक्सर फोकस किया जाता है, उनमें ईमेल लिखने का तरीका, एक्सेल और CRM जैसे डिजिटल टूल का इस्तेमाल, बिजनेस कम्युनिकेशन, कस्टमर इंटरेक्शन और टाइम मैनेजमेंट शामिल हैं.
जॉब कल्चर में आ रहा है बड़ा बदलाव
मौजूद दौर में नौकरी देने वाले सिर्फ अच्छे मार्क्स को प्रायोरिटी नहीं दे रहे हैं. अब कंपनियां ऐसे कैंडिडेट्स को पसंद कर रही हैं, जिनमें ढलने की क्षमता (adaptability) और प्रोफेशनलिज्म हो. वे ऐसे लोग ढूंढ रहे हैं जो जल्दी सीख सकें, टीम में कॉन्ट्रिब्यूशन दे सकें और प्रेशर में भी लगातार अच्छा काम कर सकें. कई स्किल ट्रेनिंग प्रोग्राम में सीखने वालों को रियल टाइम की चुनौतियों का सामना कराया जाता है, जैसे टीम वर्क के दौरान किसी झगड़े को सुलझाना या कम समय में प्रेजेंटेशन तैयार करना.
पहली नौकरी में सॉफ्ट स्किल्स पर करें फोकस
कैंडिडेट की पहली नौकरी में कंपनियां देखती हैं कि उम्मीदवार नया सीखने के लिए कितना तैयार है, कितना भरोसेमंद है, बदलती परिस्थितियों में कितना ढल सकता है और उसका रवैया कितना पॉजिटिव है. आजकल कई ट्रेनिंग सेंटर अब सिर्फ टेक्निकल चीजें ही नहीं सिखाते, बल्कि ‘सॉफ्ट स्किल्स’ पर भी फोकस करते हैं. इनमें बॉडी लैंग्वेज, इंटरव्यू की तैयारी, प्रोफेशनल कपड़े पहनना और कॉन्फिडेंस से बोलना सिखाया जाता है. ये छोटी-छोटी चीजें जॉब इंटरव्यू और रूटीन के ऑफिस वर्क में बहुत बड़ा फर्क लाती हैं.
मॉड्यूलर ट्रेनिंग से जल्दी मिलेगी नौकरी
री-स्किलिंग का एक बहुत ही असरदार तरीका है Purpose Driven Modular Training. ये ऐसी शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग क्लासेस हैं, जो एक बार में केवल एक ही स्किल पर फोकस करती हैं. स्टूडेंट्स को लंबे और जनरलाइज्ड कोर्सेज से परेशान करने के बजाय ये खास क्लासेस उन्हें धीरे-धीरे सीखने का मौका देती हैं. कम्युनिकेशन, डिजिटल लिटरेसी और क्लाइंट हैंडलिंग जैसी स्किल्स को एक क्रम में सिखाने के बजाय ट्रेनिंग को प्रोजेक्ट-बेस्ड मॉडल में अपनाया जा सकता है.
स्किल्स अपग्रेड करके नौकरी में बनें नंबर 1
2024 की व्हीबॉक्स (Wheebox) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 78% से ज्यादा भारतीय कंपनियों का मानना है कि जिन कैंडिडेट्स ने री-स्किलिंग या अप-स्किलिंग की ट्रेनिंग ली होती है, वे बदलते माहौल वाली नौकरियों में ज्यादा सफल होते हैं. ऐसे कैंडिडेट्स में आमतौर पर बेहतर कम्युनिकेशन, समय की पाबंदी और फीडबैक को स्वीकार करने का रवैया होता है. वे कंपनी के माहौल में तेजी से ढल जाते हैं और शुरुआती महीनों में उन्हें कम मदद की जरूरत पड़ती है. इससे कंपनी को प्रोडक्टिविटी के मामले में फायदा होता है.
कॉलेज में बदलना चाहिए सिस्टम
नौकरी पाने की योग्यता में जो कमी है, उसे पूरा करना सिर्फ स्टूडेंट्स की जिम्मेदारी नहीं है. इसमें ट्रेनिंग संस्थानों को भी अहम भूमिका निभानी होगी. कॉलेजों को अपने लास्ट सेमेस्टर में कंपनियों के साथ इंटर्नशिप के मौके बनाने चाहिए. इसके साथ ही, कॉलेजों में पढ़ाने वाले प्रोफेसर्स को भी दोबारा ट्रेनिंग (retrain) देने की जरूरत है. उन्हें सिर्फ लेक्चर देने के बजाय स्टूडेंट्स के अंदर छिपी हुई खास स्किल्स को बाहर निकालने और उन्हें निखारने पर जोर देना चाहिए.
Having an experience of 9 years, she loves to write on anything and everything related to lifestyle, entertainment and career. Currently, she is covering wide topics related to Education & Career but she also h...और पढ़ें
Having an experience of 9 years, she loves to write on anything and everything related to lifestyle, entertainment and career. Currently, she is covering wide topics related to Education & Career but she also h...
और पढ़ें