Last Updated:July 28, 2025, 17:30 IST
Bihar Chunav: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच श्रावणी मेला में पीएम मोदी की तस्वीरें गायब हैं, जबकि नीतीश कुमार, सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा की तस्वीरें प्रमुखता से दिख रही हैं. क्या यह एनडीए की रणनीति है या ब...और पढ़ें

हाइलाइट्स
सुल्तानगंज से देवघर सीमा तक पीएम मोदी की तस्वीर क्यों नदारद?नीतीश कुमार, सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा की तस्वीरों से पटा कांवड़िया पथक्या एनडीए की रणनीति या बिहार चुनाव से पहले बीजेपी की बड़ी चूक?पटना. बिहार चुनाव 2025 और मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया की सरगर्मी के बीच एनडीए की रणनीति की भी अब चर्चा होने लगी है. खासकर श्रावणी मेला जैसे बड़े धार्मिक आयोजन में जहां लाखों श्रद्धालु भागलपुर के सुल्तानगंज से देवघर दुम्मा बॉर्डर तक कांवर यात्रा के लिए जुटते हैं, वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें, होर्डिंग्स और बैनर गायब हैं. वह भी तब जब राज्य में अगले कुछ ही महीने में चुनाव होने वाले हैं. न्यूज 18 हिंदी की तहकीकात में 105 किलोमीटर कांवड़ पथ पर हर एक-दो किलोमीटर पर सीएम नीतीश कुमार और राज्य के दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा के तस्वीरें कई नजर आई, लेकिन 105 किलोमीटर के कांवड़ पथ पर पीएम मोदी की एक भी तस्वीर और होर्डिंग्स नजर नहीं आई. बिहार चुनाव को देखते हुए बीजेपी की यह बड़ी चूक है या फिर एनडीए की रणनीति?
देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े ध्वजवाहक के रूप में पहचान बनाने वाले पीएम मोदी की तस्वीर सुल्तानगंज से लेकर देवघर के तुंबा बोर्डर तक कहीं भी नजर नहीं आई. जबकि, इसी पथ पर हर दिन लाखों कांवड़ियां कांवड़ लेकर बोल बम-बोल बम का नारा लगाकर बाबाधाम पहुंचते हैं. झारखंड में पीएम मोदी की तस्वीर नहीं होना समझ में आता है. क्योंकि, वहां जेएमएम और कांग्रेस गठबंधन की सरकार है. लेकिन बिहार से पीएम मोदी की तस्वीर चुनाव से ठीक पहले गायब होना चर्चा का विषय बना हुआ है. 105 किलोमीट कांवड़िया पथ पर बिहार बीजेपी के कई नेताओं और मंत्रियों की तस्वीर जगह-जगह देखने को मिली. सीएम नीतीश कुमार, दोनों डिप्टी सीएम के साथ-साथ बिहार सरकार में मंत्री मंगल पांडेय, राजू कुमार सिंह, नीरज कुमार बबलू और नितिन नवीन जैसे कई मंत्रियों की तस्वीर सैकड़ों मिली. यहां तक की केंद्रीय मंत्री ललन सिंह, चिराग पासवान की भी तस्वीर नजर आई, लेकिन पीएम मोदी की एक भी तस्वीर कहीं नजर नहीं आई.
सुल्तानगंज से देवघर तक कांवडिया पथ पर पीएम मोदी की एक भी तस्वीर नहीं.
इसका प्रभाव क्या होगा?
यह स्थिति उस समय और हैरान करती है, जब बिहार बीजेपी के नेता खुले तौर पर पीएम मोदी के नेतृत्व को अपनी ताकत बताते हैं. आखिर एनडीए की इस रणनीति के पीछे क्या मंशा है और इसका 2025 के चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा? जानकारों की मानें तो श्रावणी मेला बिहार में न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. लाखों कांवरियों की भीड़ और सुल्तानगंज से दुम्मा बॉर्डर तक का 105 किलोमीटर का मार्ग पार्टियों के लिए मतदाताओं को साधने का सुनहरा अवसर था. आमतौर पर इस मेले में राजनीतिक दलों के होर्डिंग्स और बैनर मतदाताओं को लुभाने का काम करते हैं. इस बार एनडीए ने नीतीश कुमार, सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा की तस्वीरों को प्राथमिकता दी, जबकि पीएम मोदी की तस्वीरें नदारद हैं. यह नजारा तब और चौंकाता है, जब बीजेपी का आधिकारिक कैंपेन गीत ‘गरीबन के पीएम आवत बानी’ पीएम मोदी और नीतीश की जोड़ी को केंद्र में रखता है.
क्या नीतीश के नेतृत्व पर जोर?
एनडीए ने नीतीश कुमार को 2025 के चुनाव में अपना चेहरा घोषित किया है. जेडीयू और बीजेपी के कार्यालयों में नीतीश-मोदी की साझा तस्वीरें और नारे जैसे ‘सोच दमदार, काम असरदार… फिर एक बार एनडीए सरकार’ गठबंधन की एकजुटता का संदेश दे रहे हैं. श्रावणी मेले में नीतीश की तस्वीरों को प्रमुखता देना इस रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है, जिसका उद्देश्य नीतीश के कुर्मी, कोइरी और अति पिछड़ा वर्ग के 43% वोट शेयर को मजबूती से साधना है.
बिहार चुनाव से पहले बीजेपी के सबसे बड़े नेता की तस्वीर क्यों गायब?
पीएम मोदी को क्यों दरकिनार?
लेकिन पीएम मोदी की तस्वीरों का अभाव कई सवाल खड़े करता है. पहला, बिहार में स्थानीय नेतृत्व को मजबूत करने की कोशिश. बीजेपी को लगता है कि नीतीश का सुशासन और स्थानीय मुद्दों पर उनकी पकड़ सवर्ण, ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को एकजुट रख सकती है. दूसरा, धार्मिक आयोजन में मोदी की तस्वीरों से बचना एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है, ताकि विपक्ष को धार्मिक भावनाओं को भुनाने का मौका न मिले. तीसरा, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी अपने स्थानीय नेताओं खासकर सम्राट चौधरी को लव-कुश समीकरण (कुर्मी-कोइरी) के तहत प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रही है.
कुलमिलाकर यह रणनीति जोखिम भरी भी है. सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने सवाल उठाया है कि अगर नीतीश की तस्वीरें प्रमुख हैं तो ‘मोदी जी की तस्वीरें हर जगह क्यों नहीं?’ यह सवाल बीजेपी के कार्यकर्ताओं में भी असंतोष पैदा कर रहा है, जो मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ा चेहरा मानते हैं. मोदी की तस्वीरों का अभाव एनडीए के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकता है. मोदी की तस्वीर की अनुपस्थिति से विपक्ष, खासकर तेजस्वी यादव की ‘माई-बहिन मान योजना’ और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, शहरी और युवा मतदाताओं को लुभाने में सफल हो सकती है. अगर बीजेपी कार्यकर्ताओं में यह धारणा बनी कि मोदी को जानबूझकर पीछे रखा जा रहा है तो इसका असर जमीनी स्तर पर प्रचार में दिख सकता है.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
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