नेहरू की बहन विजयालक्ष्मी को क्यों आनंद भवन में एशेज रखने की अनुमति नहीं मिली

1 hour ago

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी पंडित अपने जमाने में ताकतवर नेता और राजनयिक रहीं. बाद में उनका जीवन देहरादून में बीता. आखिरी समय में वह लंबे समय तक बीमार रहीं. देहरादून में ही 1 दिसंबर 1990 में उनका निधन हो गया. वह चाहती थीं कि उनकी अस्थियां आनंद भवन में ही रखी जाएं, इस पर स्मारक बने लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कहा जाता है कि उनके परिजनों को इसकी अनुमति नहीं मिली. जानते हैं क्या है सच्चाई. ये भी जानेंगे कि अपनी भतीजी इंदिरा गांधी से उनके संबंध क्यों बिगड़ गए.

दरअसल विजयालक्ष्मी पंडित ने स्पष्ट तौर पर कहीं लिखकर ये नहीं कहा कि उनकी अस्थियां इलाहाबाद में एक जमाने में उनका पारिवारिक आवास रहे आनंद भवन में ही रखी जाएं, जो कई सालों से इलाहाबाद में राष्ट्रीय स्मारक बन चुका है.

1970–80 के दशक के परिवारिक वृत्तांतों में ये बात उभरती है कि वह अपनी अस्थियों को नेहरू परिवार की विरासत वाली जगह यानि आनंद भवन के परिसर में रखना चाहती थीं, ताकि वह माता-पिता और भाई जवाहरलाल नेहरू के “स्मृति-स्थल” के पास रहें.

आनंद भवन में गुजरा बचपन और जवानी

दरअसल विजया लक्ष्मी का बचपन और युवावस्था आनंद भवन में ही गुजरा था. यहां गांधी और और कांग्रेस के शीर्ष नेता लगातार आते रहते थे. यहां उनकी मीटिंग्स होती रहती थीं. विजयालक्ष्मी पंडित ने अपनी बॉयोग्राफी में लिखा, आनंद भवन उनका “सचमुच का घर” था.

इलाहाबाद का आनंद भवन, जो कभी नेहरू परिवार का आवास हुआ करता था, इसको पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दान कर दिया था. (Photo – Sanjay Srivastava)

क्यों आनंद भवन में अस्थियां नहीं रखी गईं

उनकी अस्थियों को आनंद भवन में नहीं दबाया जा सका, इसके कई मुख्य कारण थे. आनंद भवन एक व्यक्तिगत आवास नहीं रहा था, क्योंकि आनंद भवन को नवंबर 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत सरकार को दान कर दिया था, जिसके बाद इसे राष्ट्रीय संग्रहालय (एक स्मारक) के रूप में जनता के लिए खोल दिया गया. इसका मतलब ये था कि ये जगह विजया लक्ष्मी पंडित के निधन से पहले ही राष्ट्रीय स्मारक-संग्रहालय बन चुका था.

क्या हो गए बाद में नियम 

इसके बाद परिसर में किसी नई समाधि या अस्थि-स्थापन की अनुमति नहीं थी. कोई व्यक्ति या परिवार निजी निर्णय लेकर वहां कुछ भी नहीं कर सकता था. कोई भी बदलाव संस्थागत और सरकारी अनुमति के बिना संभव नहीं था. नेहरू मेमोरियल सोसाइटी की पॉलिसी ये थी कि “स्मारक स्थल में व्यक्तिगत समाधि या अस्थि-कलश स्थापित नहीं किए जाएंगे.” इसका उद्देश्य था कि इस स्थान का चरित्र “परिवार-संग्रहालय” का ही रहे. शायद औपचारिक वजह यही थी कि आनंद भवन अब परिवार का प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं था.

इंदिरा गांधी के साथ विजया लक्ष्मी पंडित (बीच में)

क्या गांधी-नेहरू परिवार नहीं चाहता था

वैसे पब्लिक डोमेन में ये बात अक्सर कही जाती रही है कि नेहरू गांधी परिवार ऐसा करना नहीं चाहता था. कई जगह ये भी कहा गया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसकी अनुमति नहीं दी. हकीकत ये है कि जब विजया लक्ष्मी पंडित का निधन हुआ तब देश के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर थे. हालांकि ये बात सही है कि आनंद भवन का स्वामित्व और प्रबंधन जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड के पास है. नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य पारंपरिक रूप से जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड के ट्रस्टियों में शामिल रहे हैं. ट्रस्ट के प्रबंधन में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं.

इंदिरा और विजया लक्ष्मी में रिश्ते और तनाव 

अगर बात इंदिरा गांधी और विजया लक्ष्मी पंडित के संबंधों की जाए तो दोनों के बीच भतीजी और बुआ का रिश्ता था लेकिन इसे ऐतिहासिक तौर पर स्वीकार किया जाता है कि 1960 के दशक के बाद से इंदिरा गांधी और विजयालक्ष्मी पंडित के संबंध काफी तनावपूर्ण हो गए थे. विजया लक्ष्मी पंडित राजनीतिक तौर पर उनकी विरोधी हो गईं थीं. आपातकाल में उन्होंने खुलेआम इंदिरा गांधी की शासन शैली की आलोचना की थी. दोनों के संबंधों में फिर कभी सामान्य स्थिति नहीं आई.

अस्थियां गंगा में प्रवाहित की गईं

विजया लक्ष्मी पंडित के परिवार ने उनकी अस्थियां हरिद्वार में गंगा में प्रवाहित कीं. उपलब्ध ऐतिहासिक रिकॉर्ड ये भी कहते हैं कि विजयालक्ष्मी पंडित के परिवार की ओर से ऐसा कोई औपचारिक अनुरोध आनंद भवन, नेहरू मेमोरियल फंड और केंद्र सरकार से नहीं किया गया था कि उनकी अस्थियां आनंद भवन में दफन या संरक्षित की जाएं.

मोयनदीप, पुपुल जयकर, केथरीन फ्रैंक जैसे जीवनी इतिहासकर उल्लेख करते हैं, विजयालक्ष्मी पंडित ने निजी बातचीतों में कई बार ये कहा था कि वह चाहेंगी उनकी अस्थियां आनंद भवन के परिसर में रहें. हालांकि विजया लक्ष्मी के परिवार ने इसे संस्थागत स्तर पर कभी आगे नहीं बढ़ाया, क्योंकि उन्हें पहले से पता था कि यह प्रॉपर्टी अब निजी नहीं रही.

विजया लक्ष्मी पंडित की तीनों बेटियों ने उनकी अस्थियों को हरिद्वार में गंगा नदी में प्रवाहित करने का फैसला किया. वैसे ये सही है कि विजया लक्ष्मी पंडित को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई. क्योंकि वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख सेनानी थीं. संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष थीं. महाराष्ट्र की पूर्व राज्यपाल थीं. उन्होंने कैबिनेट मंत्री का पद संभाला. वह लोकसभा सदस्य भी थीं. सोवियत संघ, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में भारत की राजदूत और उच्चायुक्त भी थीं.

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