Last Updated:November 05, 2025, 12:27 IST
दिल्ली एनसीआर में एक बच्चे के जन्म और उसके बचने के बाद बहुत सारे लोगों के लिए उम्मीद की किरण पैदा हो गई है. यह घटना बताती है कि अब 22 हफ्ते के प्रीमैच्योर बच्चों को भी बचाया जा सकता है. दिल्ली पटपड़गंज के क्लाउड नाइन अस्पताल में आईवीएफ की मदद से प्रेग्नेंट हुई एक महिला ने 22 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में ही बच्ची को जन्म दे दिया, हालांकि 105 दिनों तक एनआईसीयू में रहने के बाद बच्ची को न केवल बचाया गया है बल्कि वह एकदम स्वस्थ भी है.
अब 22 हफ्तों के प्रीमैच्योर बच्चों को भी बचाना होगा संभव, डॉक्टरों ने जगाई उम्मीद. 22 Weeks Premature baby birth in Delhi: आमतौर पर बच्चे को जन्म देने का अनुभव हर मां के लिए लगभग एक जैसा ही होता है, दर्द भरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद नन्हे बच्चे की किलकारी उस पीड़ा को तत्काल खुशी और आनंद के पलों की ओर मोड़ देती है, लेकिन हाल ही में दिल्ली पटपड़गंज के क्लाउड नाइन अस्पताल में आया मामला इससे एकदम अलग है. बच्चे के जन्म लेने की प्रक्रिया इतनी कठिन हो गई कि इसमें मां, बच्चे और परिवार से लेकर डॉक्टरों के संघर्ष की एक पूरी कहानी दर्ज है. बल्कि यह दिल्ली-एनसीआर का पहला मामला भी बन गया. आखिरकार जिंदगी और मौत के बीच की इस जंग में जीत जिंदगी की हुई.
क्लाउड नाइन अस्पताल पटपड़गंज में आए केस के मुताबिक माता-पिता लंबे समय से बांझपन यानि इनफर्टिलिटी की परेशानी से जूझ रहे थे और उन्होंने डॉ. नेहा त्रिपाठी की देखरेख में आईवीएफ ट्रीटमेंट का सहारा लिया था. पहली बार में आईवीएफ प्रक्रिया से गर्भ ठहरने लेकिन कुछ समय बाद गर्भपात होने के बाद उन्होंने एक बार फिर इसी प्रक्रिया से दोबारा माता-पिता बनने के लिए कोशिश की. इस बार उन्हें सफलता तो मिली लेकिन 22 हफ्ते 5 दिन के पूरा होते ही गर्भवती मां को अचानक लेबर पेन होना शुरू हो गए.
22 से 24 हफ्तों यानि कि 5 से 6 महीने की गर्भावस्था में डिलिवरी होने पर बच्चे का जिंदा रहना बेहद ही मुश्किल होता है, जिसे पेरिवायबल एज ग्रुप कहा जाता है, फिर भी गर्भवती महिला को क्लाउड नाइन अस्पताल लेकर आया गया. जहां महिला ने 22 हफ्ते 5 दिन की प्रेग्नेंसी में एक बच्ची को जन्म दिया, जिसका वजन मात्र 525 ग्राम था. इस बच्ची को 105 दिनों तक एनआईसीयू (NICU) में रखा गया और डॉक्टरों ने पूरी देखभाल की. इसके बाद 3 नवम्बर 2025 को पूरी तरह स्वस्थ होने के और दो किलो 10 ग्राम वजन होने के बाद घर भेजा गया.
डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची को बचाने की यात्रा काफी मुश्किल भरी थी. प्रीमैच्योर एज के चलते बच्ची को कई समस्याएं थीं. बच्ची को जन्म के तुरंत बाद सांस की मदद दी गई और NICU में भर्ती किया गया. स्थिति काफी गंभीर थी फिर भी बच्ची के माता-पिता ने हर संभव इलाज कराने का फैसला किया.
बच्ची को दिया मां का दूध
बच्ची का इलाज डॉ. जय किशोर की देखरेख में होने लगा. उसे वेंटिलेटर पर रखा गया और जल्दी ही सर्फैक्टेंट थेरेपी दी गई ताकि फेफड़ों को मदद मिल सके. तीसरे दिन से बच्ची को मां का दूध (MOM – Mother’s Own Milk) बहुत कम मात्रा में देना शुरू किया गया. वहीं दसवें दिन बच्ची को इनवेसिव वेंटिलेशन से हटाया गया. धीरे-धीरे उसे NIPPV और CPAP (सांस में मदद देने वाली मशीनें) से निकालकर सामान्य हवा में रखा गया.
लेजर थेरेपी की पड़ी जरूरत
डिस्चार्ज करने से पहले बच्ची के दिमाग का अल्ट्रासाउंड (Cranial USG) किया गया, जिसमें कोई असामान्यता नहीं मिली. हालांकि उसकी आंखों में ROP (रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी) के इलाज के लिए लेजर थेरेपी की गई. पूरे 105 दिनों के इलाज के दौरान बच्ची को एक बूंद भी फॉर्मूला दूध नहीं दिया गया. उसकी देखभाल में मां का दूध, कंगारू मदर केयर, और समर्पित नर्सिंग स्टाफ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही. इन सभी कोशिशों के बाद बच्ची अब स्वस्थ है और अच्छे वजन के साथ घर जा चुकी है.
इस केस के बाद प्रीमैच्योर बच्चों के जन्म के बाद उन्हें बचाने की उम्मीद मजबूत हुई है. यह घटना बताती है कि ये 6 महीने की गर्भावस्था में ही जन्मे बच्चों को भी अब बचाना संभव है.
priya gautamSenior Correspondent
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ एंड लाइफस्...और पढ़ें
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ एंड लाइफस्...
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Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
November 05, 2025, 12:27 IST

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