डॉ. रमेश चंद्रा अपहरण कांड में बिहार ने अपने भरोसे की नब्ज कमजोर होते देखी !

11 hours ago

Last Updated:November 08, 2025, 08:56 IST

Bihar Chunav Issue Jungleraj in Bihar Dr. Ramesh Chandra kidnapping case: बिहार की राजधानी में उस रात सन्नाटा कुछ ज्यादा गहरा था... शहर के चर्चित न्यूरोसर्जन डॉ. रमेश चंद्रा डिनर पार्टी से लौट रहे थे. घर पहुंचने से पहले ही रास्ता बदल गया और बिहार की सियासत में एक ऐसा किस्सा दर्ज हुआ जो वर्षों तक “जंगलराज” की पहचान बना रहा.

डॉ. रमेश चंद्रा अपहरण कांड में बिहार ने अपने भरोसे की नब्ज कमजोर होते देखी !2003 में पटना के डॉक्टर रमेश चंद्रा अपहरण कांड ने बिहार को झकझोर दिया था.

पटना. मई 2003 की 17 तारीख को रात भी गर्म थी… बिहार की राजधानी पटना के बेली रोड से गुजरती एक मारुति कार धीमे-धीमे मीठापुर की ओर बढ़ रही थी. गाड़ी में बैठे थे पटना के जाने-माने न्यूरो सर्जन डॉ. रमेश चंद्रा… सर्जरी की दुनिया में ऐसा नाम जिनके पास इलाज के लिए अमीर-गरीब दोनों लाइन लगाकर खड़े रहते थे, लेकिन उस रात वे खुद किसी अनजान ऑपरेशन टेबल पर रखे मरीज की तरह बन गए जिनकी किस्मत अब अपराधियों के हथियारों के नीचे थी. पटना के सरपेंटाइन रोड (दारारोगा प्रसाद राय पथ) के पास हड़ताली मोड़ पार करते ही उनकी गाड़ी के आगे एक सफेद जीप मॉडल की एक गाड़ी (संभवत: बोलेरो) आकर रुकी. इससे अचानक ही कई हथियारबंद लोग उतरे और डॉक्टर रमेश चंद्रा को सरेआम उठा ले गए. अगली सुबह उनकी गाड़ी न्यू बाईपास पर मिली… टूटा हुआ चश्मा, कुछ बिखरे कागज और एक उनका कोट भी मिला.

जानकारी के अनुसार, पटना के ही किसी नामचीन डॉक्टर के घर में पार्टी अटेंड करने के बाद डॉ. रमेश चंद्रा अपने घर के लिए निकले थे. ड्राइवर साथ नहीं था और वह अकेले थे, उन्होंने सोचा कि थोड़ी देर में घर पहुंच जाएंगे… उस दौर में देर शाम को ही पटना के बेली रोड जैसी व्यस्त सड़क पर भी सुनसान हो जाया करती थी… पटना की सड़कों पर लोग नहीं दिखते थे. डॉ. चंद्रा घर की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन रात का सन्नाटा भी गहराता जा रहा था… इसी बीच वह पटना की सबसे सुरक्षित कही जाने वाली सड़क से सरेआम उठा लिए गए थे… यानी उनका अपहरण हो गया था. इस घटना के बाद बिहार के डॉक्टरों और अस्पतालों में खौफ फैल गया. प्रदेश के डॉक्टरों ने काम छोड़ना शुरू कर दिया, कई ने ट्रांसफर मांगे और सैकड़ों ने राज्य ही छोड़ दिया. मतलब यह कि जो राज्य कभी मेडिकल शिक्षा और सेवा में अग्रणी था, वहीं अब ‘ब्रेन ड्रेन’ की शुरुआत हो चुकी थी.

कैसे घटी थी किडनैपिंग की वह घटना

बताया जाता है कि 17 मई 2003 की रात, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य डॉ. अजय कुमार के घर पर डिनर पार्टी थी. करीब 10 बजे रात डॉ. चंद्रा वहां से निकले. ड्राइवर छुट्टी पर था तो वे खुद कार चला रहे थे. बेली रोड के ‘हड़ताली मोड़’ से कुछ ही दूरी पर एक सफेद गाड़ी ने उनकी गाड़ी को रोका. चार-पांच हथियारबंद लोग उतरे… कुछ सेकंड में कार का दरवाजा खुला और डॉक्टर को खींच कर बाहर ले जाया गया. अगली सुबह न्यू बाईपास पर उनकी कार मिली- टूटा चश्मा, बिखरे कागज और सीट पर एक सफेद कोट. जैसे किसी ने सिर्फ इंसान को उठा लिया हो और बाकी सब वहीं छोड़ दिया हो.

फिरौती का खेल और सत्ता की छांव

घर पर फोन बजा और आवाज आई… डॉक्टर को वापस चाहिए तो पचास लाख तैयार रखिए. परिवार सदमे में था. पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन सूत्रों ने बताया कि अपहरणकर्ताओं के तार एक सत्ताधारी दल से जुड़े दबंग विधायक से मिल रहे थे. मीडिया में सुर्खियां छपने लगीं- जब डॉक्टर सुरक्षित नहीं तो कौन सेफ है? सत्ता पर सवाल उठने लगे. विपक्ष ने इसे ‘जंगलराज’ का सबूत बताया. डॉक्टर समुदाय में खौफ ऐसा फैला कि पटना मेडिकल कॉलेज से लेकर निजी क्लीनिक तक काम ठप होने लगा. डॉक्टरों ने धरना दिया, सर्जरी टाले जाने लगे और राज्य में चिकित्सा व्यवस्था चरमरने लगी.

रिहाई और जांच का मोड़

पांच दिन बाद पुलिस को सूचना मिली कि अपहृत डॉक्टर को नौबतपुर के चिरउरा गांव में रखा गया है. स्पेशल टीम ने छापेमारी की-वहां एक जर्जर मकान के कमरे में डॉ. चंद्रा मिले. कमजोर, थके और सदमे में डूबे, लेकिन गनीमत थी कि वह जीवित थे. उनकी रिहाई ने पूरे बिहार को राहत दी पर यह राहत डर से भरी थी. आरोपों की दिशा धीरे-धीरे पूर्व विधायक सुनील पांडे की ओर गई. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और सालों बाद कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई.

डर जो डॉक्टरों की नसों में उतर गया

इस घटना ने बिहार के डॉक्टरों को भीतर तक हिला दिया. एक प्रसिद्ध सर्जन जो दिन-रात लोगों की जान बचाता था उसे राजनीति और अपराध के गठजोड़ ने बंधक बना लिया. रिपोर्ट्स के मुताबिक उस वक्त दर्जनों डॉक्टरों ने ट्रांसफर मांगे, कई ने दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद के अस्पतालों में जॉइन कर लिया. यानी ‘ब्रेन ड्रेन’ का बीज इसी घटना से बोया गया. राज्य से बुद्धिजीवी और विशेषज्ञ वर्ग का पलायन बढ़ा और बिहार की स्वास्थ्य सेवाएं बदतर होने लगीं.

जंगलराज का प्रतीक बना अपहरण

डॉ. चंद्रा का अपहरण उस दौर का प्रतीक बन गया जब अपराध और सत्ता एक ही मंच पर नाच रहे थे. जहां विधायक अपराधी थे और अपराधी विधायक बन रहे थे. पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में थी और जनता के मन में विश्वास मर रहा था. इस केस ने पूरे देश को बताया कि ‘जंगलराज’ केवल एक राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि बिहार की हकीकत थी. इस मामले में सुनील पांडे को उम्रकैद तो हुई, लेकिन 2010 में हाईकोर्ट से बरी हो गए.

आज भी गूंजता है वह नाम

रिहाई के बाद डॉ. चंद्रा ने बिहार छोड़ दिया और अमेरिका चले गए और वहीं प्रैक्टिस करने लगे. वर्ष 2019 में 81 साल की उम्र में निधन हो गया और परिवार अमेरिका में ही बस गया. बिहार ने उस दिन सिर्फ एक डॉक्टर नहीं खोया था, उसने अपने भरोसे की नब्ज़ कमजोर होते देखी थी. डॉ. रमेश चंद्रा अपहरण कांड के कलंक की छाया आज तक पूरी तरह मिट नहीं पाई है. एक अपहरण जिसने व्यवस्था का एक्स-रे कर दिया. ये केस जंगलराज का बड़ा उदाहरण बन गया. डॉ. चंद्रा कांड की याद अब भी बिहार के डॉक्टरों को डराती है.

Vijay jha

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें

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First Published :

November 08, 2025, 08:56 IST

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