'चुप्पी रणनीति है या? कूटनीति पर नई कसौटी, दुनिया देख रही PM मोदी की अगली चाल'

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Last Updated:November 08, 2025, 17:13 IST

भारत की विदेश नीति ने पिछले दशक में वैश्विक मंच पर दम दिखाया. अब ट्रंप युग की नई चुनौती का सामना कर रही है. ट्रंप के दबाव और विवादित बयानों के बीच मोदी सरकार ने ‘रणनीतिक मौन’ अपनाया है, जिससे भारत की वैश्विक मौजूदगी सीमित होती दिख रही है. क्षेत्रीय झटकों, छूटी बैठकों और कूटनीतिक दूरी के बीच सवाल है, क्या भारत अब फिर से ‘फ्रंट फुट’ पर खेलेगा?

'चुप्पी रणनीति है या? कूटनीति पर नई कसौटी, दुनिया देख रही PM मोदी की अगली चाल'ट्रंप के दूसरे कार्यकाल ने भारत की कूटनीति के लिए तमाम चुनौतियां पैदा कर दी हैं (File Photo)

पिछले एक दशक में भारत की विदेश नीति ने जिस आत्मविश्वास और रणनीतिक संतुलन के साथ दुनिया को प्रभावित किया है, वह अभूतपूर्व रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भी भारत ने पश्चिमी दबाव को नकारते हुए रूसी तेल खरीदना जारी रखा, तो वहीं पीएम नरेंद्र मोदी के ‘यह युद्ध का युग नहीं’ वाले बयान ने ग्लोबल डिप्लोमेसी की दिशा तय की. लेकिन अब ट्रंप की वापसी के साथ भारत की कूटनीति एक नए इम्तिहान से गुजर रही है. क्या मोदी सरकार का ‘रणनीतिक मौन’ वाकई एक सोची-समझी चाल है या प्रभाव घटने का संकेत? पढ़‍िए हमारे सहयोगी ‘फर्स्टपोस्ट’ के लिए वेस्ट एशिया मामलों के एक्सपर्ट कर्नल राजीव अग्रवाल (रिटा.) का महत्वपूर्ण एनालिसिस.

भारत की डिप्लोमेसी की उड़ान, ‘ग्लोबल साउथ’ से लेकर G20 तक

कोविड महामारी के दौरान वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत भारत ने 100 से अधिक देशों को वैक्सीन भेजी, जिससे ग्लोबल साउथ में भारत की छवि एक जिम्मेदार नेता की बनी. 2023 में दिल्ली में हुए G20 शिखर सम्मेलन में ‘दिल्ली घोषणा पत्र’ का सर्वसम्मति से पारित होना भारत की कूटनीतिक क्षमता का सबूत था. वहीं इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) जैसी परियोजनाओं ने भारत को वैश्विक कनेक्टिविटी का केंद्र बना दिया. परंतु ट्रंप युग में यह चमक कुछ धुंधली पड़ती दिख रही है.

ट्रंप और भारत: दबाव, दूरी और रणनीतिक मौन

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यक्तिगत और दबाव वाली कूटनीति ने लगभग हर देश को झुकाया, लेकिन भारत अब भी अपने रुख पर कायम है. हालांकि, ट्रंप द्वारा ‘भारत पर दबाव डालकर पाकिस्तान से युद्धविराम करवाने’ वाले बयान ने नई दिल्ली को असहज किया है. भारत ने इस पर सीधे प्रतिक्रिया न देकर ‘साइलेंट डिप्लोमेसी’ अपनाई. न ट्रंप को जवाब, न फोटो-ऑप्स, न मुलाकातें. यह रणनीति भले ही टकराव टालने वाली लगे, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि भारत की ग्लोबल मौजूदगी के ‘विजुअल्स’ कमजोर हो रहे हैं.

मिस्ड ऑपर्च्युनिटीज और कम होती ग्लोबल विजिबिलिटी

ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद ट्रंप के वॉशिंगटन निमंत्रण को मोदी ने ठुकरा दिया. उसके बाद BRICS वर्चुअल समिट और UN जनरल असेंबली, दोनों में मोदी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को भेजा. ASEAN शिखर सम्मेलन में भी प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति ने सवाल उठाए, जबकि ट्रंप वहीं पाकिस्तान के पीएम और आर्मी चीफ के साथ सुर्खियां बटोरते रहे. गाजा शांति सम्मेलन (Sharm el-Sheikh) में भी मोदी की गैर-मौजूदगी ने यह आभास दिया कि भारत ने नेतृत्व का मौका खो दिया.

क्षेत्रीय झटके, ताजिकिस्तान से बांग्लादेश तक

भारत की कूटनीति को एक और झटका तब लगा जब ताजिकिस्तान ने Ayni एयरबेस (गिस्सार मिलिट्री एयरोड्रोम) का लीज बढ़ाने से इनकार कर दिया. यह भारत का एकमात्र विदेशी सैन्य ठिकाना था, जो मध्य एशिया में रणनीतिक निगरानी का अहम केंद्र था. बताया जा रहा है कि चीन के दबाव में यह फैसला लिया गया.

इधर, बांग्लादेश और पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य नजदीकी भी भारत के लिए चिंताजनक संकेत है. पाकिस्तान, जो ऑपरेशन सिंदूर में बुरी तरह हारा था, अब बांग्लादेश की नयी सरकार से रिश्ते मजबूत कर भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है.

मोदी की प्राथमिकताएं और भारत का रुख

भारत अभी भी अपनी ‘स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी’ नीति पर कायम है यानी किसी भी वैश्विक दबाव में न झुकना. मोदी ने खुद कहा था, ‘भारत किसानों, मछुआरों और डेयरी सेक्टर के हितों पर कभी समझौता नहीं करेगा, चाहे कीमत कुछ भी चुकानी पड़े.’ लेकिन मौजूदा हालात में सवाल यह है कि क्या भारत का स्ट्रैटेजिक साइलेंस अब उसकी डिप्लोमैटिक एज को कमजोर कर रहा है? क्या ग्लोबल स्टेज पर बार-बार ‘अनुपस्थिति’ भारत की सक्रिय भूमिका को कम कर रही है?

वक्त है फिर से ‘फ्रंट फुट’ पर खेलने का

भारत आज दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और मजबूत सैन्य शक्ति वाला देश है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मंचों से दूरी बनाए रखना उस छवि को कमजोर कर सकता है जो मोदी ने पिछले दशक में बनाई है. भारत को यह तय करना होगा कि उसकी रणनीतिक चुप्पी कब तक प्रभावी है और कब यह साइलेंस कूटनीति से ज़्यादा सेल्फ-आइसोलेशन में बदलने लगता है. ट्रंप के दौर में, जब हर शब्द, हर तस्वीर और हर बैठक एक वैश्विक संदेश बन जाती है. भारत के लिए यह वक्त है फ्रंट फुट पर खेलने का.

(कर्नल राजीव अग्रवाल वेस्ट एशिया एक्सपर्ट हैं और चिंतन रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में सीनियर रिसर्च कंसल्टेंट हैं. उनका X हैंडल @rajeev1421 है. ऊपर दिए गए लेख में दिए गए विचार उनके अपने हैं और पूरी तरह से लेखक के हैं.)

Deepak Verma

दीपक वर्मा न्यूज18 हिंदी (डिजिटल) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में काम कर रहे हैं. लखनऊ में जन्मे और पले-बढ़े दीपक की जर्नलिज्म जर्नी की शुरुआत प्रिंट मीडिया से हुई थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म...और पढ़ें

दीपक वर्मा न्यूज18 हिंदी (डिजिटल) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में काम कर रहे हैं. लखनऊ में जन्मे और पले-बढ़े दीपक की जर्नलिज्म जर्नी की शुरुआत प्रिंट मीडिया से हुई थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म...

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

November 08, 2025, 17:11 IST

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