वो तारीख 7 अक्टूबर थी. भारतीय सेना ने श्रीलंका के जाफना प्रायद्वीप में घुस चुकी थी. LTTE के खिलाफ यह ऑपरेशन पवन था. मकसद LTTE के टॉप कमांडरों को खत्म करना था. तब देश में राजीव गांधी की सरकार थी और यह आदेश तत्कालीन चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ने IPKF को आदेश दिया. आईपीकेएफ यानी इंडियन पीस कीपिंग फोर्स. लिट्टे के कम्युनिकेशन नेटवर्क जैसे टीवी और रेडियो स्टेशन को खत्म के साथ उस पर नियंत्रण करना था. LTTE कैंप और चेकपॉइंट पर हमले के साथ ही टॉप लोगों को पकड़कर पूछताछ भी किया जाना था. इलाके में IPKF का प्रभाव बढ़ाने की कोशिश थी. ब्रिगेडियर जे. रैली की अगुआई में भारत की 91वीं ब्रिगेड ने 10 अक्टूबर 1987 को जाफना में आगे बढ़ना शुरू किया. अगली रात भारतीय सैनिकों ने जाफना में LTTE हेडक्वार्टर पर हवाई हमले किए. अचानक लिट्टे के लड़ाके खामोश दिख रहे थे लेकिन ज्यादा देर नहीं.
हेलिकॉप्टर और तोप के साथ पैदल सैनिक शहर के सेंटर में पहुंचने के लिए आगे बढ़ रहे थे. कुछ दिन से लिट्टे की गतिविधियां शांत थीं. बाद में पता चला कि उसने आईईडी विस्फोटक, स्नाइपर और बम से भरी इमारतें और बंकर तैयार कर लिए थे. लिट्टे ने रेडियो ट्रांसमिशन को इंटरसेप्ट कर दिया जिससे IPKF को बड़ा झटका लगा. इस दौरान सिख इन्फेंट्री को भारी नुकसान हुआ.
जाफना में भारतीय सैनिक और लिट्टे गायब!
हालांकि बात यही खत्म नहीं हुई. बड़ी संख्या में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी होने के कारण वे आगे बढ़ते गए. लिट्टे अब लड़ने लगा था. गुरिल्ला टेक्निक, आईईडी और लैंडमाइन का सहारा लिया. नुकसान हो रहा था लेकिन भारतीय सैनिक तोप और आसमानी मदद से आगे बढ़ते गए. IPKF सैनिकों को जाफना शहर को अपने कब्जे में लेने में 26 अक्टूबर 1987 तक का समय लगा. LTTE जंगल में गायब हो चुका था. उसके लीडर प्रभाकरन को पकड़ा नहीं जा सका.
मेजर को लगी सीने में गोली
लड़ाई इतनी खतरनाक थी कि कई लोगों की लाशें नहीं मिलीं. 8 महार रेजिमेंट के मेजर परमेश्वरन को सीने में गोली लगी थी लेकिन उन्होंने पांच मिलिटेंट्स को मार गिराया. आमने सामने की फाइट में उन्होंने अपने हमलावर से राइफल छीनकर उसे ढेर कर दिया. कुछ सांसें बचीं थीं लेकिन उन्होंने जवानों को आगे बढ़ने को कहा. मरणोपरांत मेजर परमेश्वरन को परमीवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
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ऑपरेशन की सफलता के बावजूद श्रीलंका में राष्ट्रवादी भावना भारत के खिलाफ होने लगी. श्रीलंका में लोगों ने भारतीय सेना को वापस जाने की मांग शुरू कर दी. हालांकि राजीव ने मना कर दिया. 1989 के संसदीय चुनावों में राजीव की हार और श्रीलंका में प्रेसिडेंट रणसिंघे प्रेमदासा के सत्ता में आने के बाद आखिरकार 24 मार्च 1990 को भारत को अपनी सेना वापस बुलानी पड़ी. अब तक भारत ने 1,000 से ज्यादा सैनिक खो दिए थे. भारत में वीपी सिंह पीएम बने. एक साल ही बीता था कि एक रात लिट्टे की महिला सुसाइड बॉम्बर ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास जाकर खुद को उड़ा दिया. आखिर में 18 मई 2009 को श्रीलंकाई सरकार के सामने LTTE का सरेंडर हुआ.
पहली बार हुआ ऐसा
गौर करने वाली बात यह है कि भारत ने अब तक ऑपरेशन पवन को आधिकारिक तौर पर कार्यक्रम कर याद करना शुरू नहीं किया था. श्रीलंका के कोलंबो में IPKF का स्मारक जरूर बना है. 30 साल से ज्यादा समय बीतने के बाद पहली बार आधिकारिक रूप से सेना ने उन नायकों को श्रद्धांजलि देने का कार्यक्रम किया जो विदेशी धरती पर चलाए ऑपरेशन में शहीद हुए थे. कुल 1171 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे और 3500 से ज्यादा घायल थे. 25 नवंबर को आर्मी चीफ जनरल उपेंद्र द्विवेदी के साथ उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर उन वीरों को नमन किया. पुष्पेंद्र सिंह उस ऑपरेशन में एक युवा अधिकारी के तौर पर शामिल थे. आर्मी प्रमुख शहीदों के परिवारों से मिले.
लिट्टे से क्यों लड़ी भारतीय सेना?
7 अक्टूबर 1987 से 26 अक्टूबर 1987 तक श्रीलंका में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के खिलाफ भारतीय सेना ने ऑपरेशन को अंजाम दिया था. भारतीय सेना के प्रमुख ने मंगलवार को ऑपरेशन पवन के शहीदों को ही श्रद्धांजलि दी. अब तक परिवार के लोग ही प्राइवेट तौर पर इस दिन को मनाते थे. वो ऑपरेशन पवन यानी विंड क्या था. यह एक्शन 1987 में उस समय की राजीव गांधी सरकार ने शुरू किया था. सरकार ने इंडियन पीस कीपिंग फोर्स श्रीलंका भेजी थी. उस समय श्रीलंका में अल्पसंख्यक तमिल आबादी और सिंहली बहुसंख्यक के बीच चल रहे गृह युद्ध छिड़ा हुआ था. लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) मिलिटेंट फोर्स जन्म ले चुका था. इसके बागी श्रीलंका में तमिलों के लिए एक अलग होमलैंड (स्टेट) चाहते थे.
भारत के लिए तमिल अधिकारों का मुद्दा अहम था. बड़ी संख्या में शरणार्थी आ रहे थे जिससे भारत सरकार चिंतित थी. ऐसे में भारत ने इस संकट को कूटनीतिक और सैन्य दोनों तरह से सुलझाने की कोशिश की. राजीव गांधी ने 29 जुलाई 1987 को श्रीलंका के उस समय के प्रेसिडेंट जेआर जयवर्धने के साथ समझौते पर साइन किए. इस डील के तहत श्रीलंका को तमिल-बहुल इलाकों को ज्यादा आजादी या कहें कि स्वायत्तता और अधिकार देने थे दूसरी तरफ बागियों को हथियार डालना था. भारत की भूमिका शांति बनाए रखने में मदद की थी.
भारत ने IPKF श्रीलंका भेजा. एक समय इस शांति सेना में 100,000 सैनिक पहुंच गए थे. भारतीय फोर्स को बागियों से हथियार लेने का काम सौंपा गया. इसके बाद एक अंतरिम प्रशासनिक परिषद बनाई जानी थी. हालांकि इन सब बातचीत में लिट्टे और दूसरे तमिल ग्रुप शामिल नहीं थे तो उन्होंने एक तरह के सरेंडर से मना कर दिया. इससे IPKF और लिट्टे का टकराव आमने सामने का हो गया.

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