चीन की 'रेयर अर्थ बादशाहत' को ट्रंप की चुनौती! 5 देशों संग हाथ मिलाकर डिनर पर तय हुई डिप्लोमेसी

3 hours ago

China Vs US over Rare Earth Metals: रेयर अर्थ को लेकर चीन के साथ चल रहे तनाव के बीच डोनाल्ड ट्रंप ने ड्रैगन की काट निकाल ली है. उन्होंने व्हाइट हाउस में पांच मध्य एशियाई देशों कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों की मेजबानी की. इस बैठक का मकसद था उन रेयर अर्थ मेटल्स के नए सोर्सेज की तलाश है जो स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहनों और फाइटर जेट जैसे हाई-टेक उपकरणों को बनाने में बेहद जरूरी हैं.

हालांकि सेंट्रल एशियाई देशों के साथ यह मीटिंग ऐसे समय में हुई जब अमेरिका और चीन के बीच रेयर अर्थ एलिमेंट्स को लेकर तनाव कुछ कम हुआ है. दक्षिण कोरिया में ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बातचीत के बाद चीन ने अपने नए निर्यात प्रतिबंधों को एक साल के लिए टालने का फैसला किया था. इसके बावजूद वाशिंगटन अब चीन पर निर्भरता कम करने और वैकल्पिक खनिज की तलाश में लगा हुआ है. जिसमें मध्य एशिया अहम किरदार अदा कर सकता है.

अमेरिका करेगा निवेश

इन देशों में रेयर अर्थ मेटल्स के बड़े भंडार हैं लेकिन इनवेस्ट और टेक्निकल ग्रोथ की कमी के वजह से उनका पूरा उपयोग नहीं हो पाया है. इसलिए अमेरिका इन देशों के साथ साझेदारी करके खनन और प्रोसेसिंग के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने पर गौर कर रहा है. डिनर के दौरान ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमामोली रहमान ने कहा कि उनके देश में बहुत से खनिज संसाधन हैं. उन्होंने अमेरिका के साथ सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को मजबूत करने की ख्वाहिश जाहिर की है.

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अमेरिका-कजाखिस्तान रणनीतिक साझेदार

कजाखिस्तान, जो पहले से अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है, इस मीटिंग में सबसे प्रमुख भूमिका में रहा. राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकाएव ने कहा कि उनका देश निवेश और तकनीकी सहयोग के लिए तैयार है. ट्रंप प्रशासन का मानना है कि अगर इन देशों के खनिज संसाधनों का इस्तेमाल अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्र में किया जाए, तो न सिर्फ चीन पर निर्भरता घटेगी, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी.

नई खनिज कूटनीति

इस मीटिंग को विश्लेषक 'नई खनिज कूटनीति' की दिशा में एक बड़ा कदम मान रहे हैं, जिसका मकसद है तकनीकी प्रतिस्पर्धा में चीन को चुनौती देना और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर बनाना. कुल मिलाकर ट्रंप का यह कदम मध्य एशिया के साथ अमेरिका के आर्थिक रिश्तों को नई दिशा देने के साथ-साथ वैश्विक खनिज राजनीति में भी अहम मोड़ साबित हो सकता है. साथ ही इसे चीन का तोड़ भी कहा जा रहा है. 

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