Last Updated:September 12, 2025, 18:20 IST
Radha Soami History: राधा स्वामी संप्रदाय की स्थापना शिव दयाल सिंह ने 1861 में आगरा में की. बाद में यह दयालबाग और ब्यास दो शाखाओं में बंट गया. जानें इसका पूरा इतिहास.

Radha Soami History: राधा स्वामी एक धार्मिक संप्रदाय या आध्यात्मिक परंपरा है. जिसकी स्थापना आगरा के ही शिव दयाल सिंह ने 1861 में बसंत पंचमी के दिन आगरा में की थी. उसके बाद ये संप्रदाय बढ़ता चला गया. मोटे तौर पर इसके जरिए ऐसे समाज की कल्पना की गई जो आध्यात्मिक तौर पर उन्नत हो, सेवा और सहअस्तित्व में भरोसा रखता हो. ये संप्रदाय वास्तव में आध्यात्म, नैतिक जीवन, शाकाहारी आहार विचार और सेवा का एक मेल थी. इस दर्शन में ध्यान का तरीका सूरत शब्द योग कहलाता है, जिसका अर्थ है ‘आत्मा का शब्द के साथ मिलन’. इसमें आंखें बंद करके गुरु द्वारा दिए गए पवित्र नामों का ध्यान किया जाता है और भीतर की ध्वनि (शब्द) को सुनने का प्रयास किया जाता है. इस अभ्यास के माध्यम से आत्मा को शरीर से ऊपर उठाकर भीतर के आध्यात्मिक लोकों की यात्रा करने का लक्ष्य होता है, ताकि वह अंततः परमात्मा से मिल सके.
इसकी स्थापना सेठ शिव दयाल सिंह ने की. उन्हें राधास्वामी संप्रदाय के अनुयायी हुजूर साहब के तौर पर संबोधित करते हैं. वह मूल रूप से आगरा के हिंदू बैंकर थे. उनका जन्म एक वैष्णव परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता नानकपंथी थे, जो सिख धर्म के गुरु नानक के अनुयायी थे. साथ ही वह तुलसी साहिब नामक हाथरस के एक आध्यात्मिक गुरु के भी अनुयायी थे. शिव दयाल सिंह तुलसी साहिब की शिक्षाओं से काफी प्रभावित थे. वह अक्सर उनके पास जाते थे, लेकिन उन्होंने उनसे दीक्षा नहीं ली. इसके बाद उन्होंने राधास्वामी मत बनाया और सार्वजनिक रूप से प्रवचन देना शुरू किया.
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क्यों रखा गया राधा स्वामी नाम?
बकौल राधा स्वामी अनुयायियों के राधा स्वामी का अर्थ होता है आत्मा का स्वामी. राधा स्वामी शब्द का शाब्दिक अर्थ राधा को आत्मा और स्वामी (भगवान) के रूप में संदर्भित करता है. ‘राधा स्वामी’ का प्रयोग शिव दयाल सिंह की ओर संकेत करने के लिए किया जाता है. शिव दयाल सिंह के अनुयायी उन्हें जीवित गुरु और राधास्वामी दयाल का अवतार मानते थे. हालांकि कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार यह नाम शिव दयाल सिंह की पत्नी के नाम पर पड़ा. उनकी पत्नी नारायणी देवी को उनके अनुयायियों द्वारा राधा जी उपनाम दिया गया था. इसलिए राधा जी (नारायणी देवी) के पति होने के कारण शिव दयाल सिंह का नाम राधा स्वामी रखा गया.
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2 शाखाओं में क्यों बंटा संप्रदाय
शिव दयाल साहब की मृत्यु के बाद राधा स्वामी संप्रदाय दो हिस्सों में बंट गया. मुख्य दल आगरा में ही रहा. जबकि दूसरी शाखा शिव दयाल साहब के एक सिख शिष्य जयमल सिंह द्वारा शुरू की गयी. इसके सदस्यों को राधा स्वामी ब्यास (RSSB) के रूप में जाना जाता है. उनका मुख्यालय अमृतसर के पास ब्यास नदी के तट पर गांव डेरा में है. इसीलिए इस बाद वाले समूह के सदस्यों को ब्यास के राधा स्वामी के रूप में जाना जाता है. मुख्य तौर पर दो ही बड़े राधास्वामी सत्संग संप्रदाय हैं. ये हैं राधास्वामी दयालबाग और राधास्वामी डेरा ब्यास.
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कौन सी है सबसे बड़ी शाखा?
सबसे बड़ी शाखा राधा स्वामी सत्संग ब्यास (आरएसएसबी) है. जिसका मुख्यालय अमृतसर के पास गांव डेरा में है. इसकी स्थापना 1891 में पंजाब में हुई थी. उन्होंने ‘सूरत शब्द योग’ का अभ्यास किया था. कुछ दशकों में इसके प्रत्येक उत्तराधिकारी (सावन सिंह से लेकर सरदार बहादुर महाराज जगत सिंह और महाराज चरण सिंह से लेकर वर्तमान स्वामी गुरिंदर सिंह ढिल्लों) के मार्गदर्शन में राधास्वामी ब्यास का काफी विकास हुआ है. गुरिंदर सिंह ने 1990 में अपने मामा महाराज चरण सिंह का स्थान लिया था. अनुमान है कि दुनियाभर में 20 लाख से अधिक लोग इस ब्यास में दीक्षा ले चुके हैं. हालांकि बाद में राधास्वामी ब्यास में भी विभाजन हुआ. सवान कृपाल मिशन और सच्चा सौदा जैसे पंथ या संप्रदाय इसी से निकले.
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क्या है दयालबाग का दर्शन?
दयालबाग की स्थापना राधास्वामी सत्संग के पांचवें संत सर आनंद स्वरूप साहब ने की थी. दयालबाग की स्थापना भी बसंत पंचमी के दिन 20 जनवरी 1915 को शहतूत का पौधा लगा कर की गयी. दयालबाग राधास्वामी सत्संग के पंथ का हेडक्वार्टर है. राधास्वामी सत्संग के मौजूदा गुरु आठवें संत डा. प्रेम सरन सत्संगी भी यहीं रहते हैं. मुख्य तौर पर इसे कम्युन के तौर पर विकसित किया गया है. जहां लोग साथ रहते हैं, मेहनत करते हैं, सत्संग करते हैं और सात्विक जीवन बिताते हैं. वे अपनी जरूरत का सभी सामान आमतौर पर खुद ही उत्पादित करते हैं. यहां कुछ कारखाने हैं, जिसमें सत्संगी मेहनत करते हैं. दयालबाग की अपनी शिक्षण संस्थाएं और इंजीनियरिंग कॉलेज भी है. इसके कुछ अनुयायी काफी बडे़ पदों पर भी रहे हैं.
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राधा स्वामी ब्यास के दर्शन का मूल सिद्धांत
राधा स्वामी ब्यास के दर्शन का मूल सिद्धांत है कि परमात्मा प्रत्येक प्राणी के भीतर निवास करता है. जीवन का मुख्य उद्देश्य सूरत शब्द योग के अभ्यास के माध्यम से भीतर के परमात्मा से जुड़ना और उनसे मिलना है. यह दर्शन एक ही ईश्वर में विश्वास रखता है, जिसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. परमात्मा को ही सृष्टि का आधार माना जाता है.गुरु को परमात्मा तक पहुंचने का एकमात्र मार्गदर्शक माना जाता है. गुरु के बिना आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ना संभव नहीं है. इस दर्शन के अनुसार नाम (आंतरिक ध्वनि या ‘शब्द’) ही परमात्मा तक पहुंचने का जरिया है. इसका नियमित जाप और ध्यान करना आवश्यक है. अनुयायियों को पूरी तरह से शाकाहारी होना चाहिए. मांस, मछली, अंडे आदि का सेवन वर्जित है. शराब और किसी भी तरह के नशीले पदार्थों का सेवन सख्त मना है. अनुयायियों को एक ईमानदार, नैतिक और सादा जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. दूसरों की सेवा और प्रेम इस दर्शन का एक अभिन्न अंग है.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
September 12, 2025, 18:20 IST