क्या है गगनयान का एयरड्रॉप, जिसके सफल टेस्ट के बाद अब स्पेस में जाएंगे इंडियन

7 hours ago

इसरो ने 24 अगस्त को गगनयान एयरड्रॉप का सफल परीक्षण किया. इसे इंटीग्रेटेड एयर ड्रॉप टेस्ट कहा गया. ये टेस्ट आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पास किया गया. हवा में करीब 3.5 से 4 किलोमीटर की ऊंचाई से उड़ते हुए भारतीय वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर ने इसे बंगाल की खाड़ी में गिराया, जहां ये पैराशूट सिस्टम की मदद से समुद्र में सुरक्षित रूप से उतरा. ताकि भारत जब अंतरिक्ष में अपना यान भेजे तो समुद्र में सॉफ्ट लैंडिंग संभव हो सके. इसके बाद भारत के अंतरिक्ष में अपने लोगों को भेजने, वहां रखने और फिर उन्हें उसी यान से वापस पृथ्वी पर लाने का रास्ता खुल गया है.

इस टेस्ट में क्रू मॉड्यूल के पैराशूट आधारित डिसेलेरेशन सिस्टम की कार्यक्षमता को परखा गया, जिसमें दो ड्रॉग पैराशूट और तीन मुख्य पैराशूट शामिल थे. ये पैराशूट मॉड्यूल की गति को कम करके समुद्र में सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करते हैं. यह परीक्षण इसरो, भारतीय वायु सेना, डीआरडीओ, भारतीय नौसेना, और तटरक्षक बल के संयुक्त प्रयासों से किया गया.

सवाल – गगनयान कैसा मिशन है, जिसके लिए एयरड्रॉप का सफल परीक्षण किया गया?

– गगनयान मिशन भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित किया जा रहा है. इस मिशन का उद्देश्य तीन अंतरिक्ष यात्रियों को 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा में तीन दिनों के लिए भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है.

सवाल – गगनयान का एयर ड्रॉप टेस्ट क्या है?

– एयर ड्रॉप टेस्ट गगनयान मिशन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें क्रू मॉड्यूल (जिसमें अंतरिक्ष यात्री यात्रा करेंगे) की सुरक्षित वापसी और लैंडिंग की प्रक्रिया का परीक्षण किया गया है. इस टेस्ट में क्रू मॉड्यूल को एक निश्चित ऊंचाई (लगभग 3.5 से 4 किलोमीटर) से हेलीकॉप्टर के माध्यम से गिराया गया ताकि पैराशूट प्रणाली की कार्यक्षमता और मॉड्यूल की सुरक्षा का आकलन किया जा सके. यह टेस्ट विशेष रूप से समुद्र में क्रू मॉड्यूल की सॉफ्ट लैंडिंग (स्प्लैशडाउन) सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है, जो अंतरिक्ष से वापसी के दौरान महत्वपूर्ण है.

24 अगस्त 2025 को इसरो ने गगनयान मिशन के लिए पहला एकीकृत एयर ड्रॉप टेस्ट (IADT-01) सफलतापूर्वक पूरा किया. यह परीक्षण क्रू कैप्सूल के पैराशूट आधारित डिसेलेरेशन सिस्टम के प्रदर्शन पर केंद्रित था. इस सफलता को गगनयान मिशन की मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है.

सवाल – गगनयान में कितने पैराशूट होंगे, जिसके जरिए इसकी गति धीमी करके इसको अंतरिक्ष से धरती पर लाया जाएगा?

– गगनयान क्रू मॉड्यूल में 10 पैराशूट्स की एक श्रृंखला होती है, जो पृथ्वी पर वापसी के दौरान अंतरिक्ष यान की गति को कम करके समुद्र में सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करती है. टेस्ट के जरिए इन पैराशूट के काम करने और माड्यूल सिस्टम को भी परखा गया.

एयर ड्रॉप टेस्ट का संबंध क्रू मॉड्यूल की सुरक्षित वापसी और समुद्र में सॉफ्ट लैंडिंग से है, जो अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लौटते समय पैराशूट सिस्टम की कार्यक्षमता को देखता है.

सवाल – क्या होगी गगनयान के अंतरिक्ष में जाने, वहां रुकने और फिर वापसी की प्रक्रिया, क्या इसमें कोई रॉकेट गगनयान को अंतरिक्ष में लेकर जाएगा?

– गगनयान खुद अंतरिक्ष में नहीं जाएगा; इसे अंतरिक्ष में ले जाने के लिए एक रॉकेट की जरूरत होगी. गगनयान के दो मुख्य हिस्से होंगे. एक क्रू मॉड्यूल और दूसरा सर्विस मॉड्यूल.

क्रू मॉड्यूल – यह वह हिस्सा है जिसमें तीन अंतरिक्ष यात्री रहेंगे. यह पूरी तरह से दबावयुक्त और पर्यावरण नियंत्रित है, ताकि अंतरिक्ष यात्रियों को जीवित रहने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन, तापमान और अन्य सुविधाएं मिलें.
सर्विस मॉड्यूल – यह क्रू मॉड्यूल को सपोर्ट करता है, जिसमें प्रोपल्सन सिस्टम, बिजली आपूर्ति और अन्य तकनीकी उपकरण शामिल हैं.

गगनयान को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए इसरो के GSLV Mk III रॉकेट उपयोग किया जाएगा. यह भारत का सबसे शक्तिशाली लॉन्च व्हीकल है, जो भारी पेलोड को पृथ्वी की कक्षा में ले जा सकता है. इसे श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया जाएगा. रॉकेट के टॉप पर गगनयान (क्रू मॉड्यूल + सर्विस मॉड्यूल) को जोड़ा जाएगा.
लांच के समय GSLV Mk III रॉकेट गगनयान को पृथ्वी की निचली कक्षा (लगभग 400 किमी ऊंचाई) तक ले जाएगा. एक बार कक्षा में पहुंचने के बाद, रॉकेट का काम पूरा हो जाएगा. फिर गगनयान स्वतंत्र रूप से कक्षा में चक्कर लगाएगा.

सवाल – क्या GSLV Mk III रॉकेट फिर पृथ्वी पर लौट आएगा?

– नहीं, GSLV Mk III वापस लौटने वाला रॉकेट नहीं है. ये एक एक्सपेंडेबल लॉन्च व्हीकल है, जिसका मतलब है कि ये एक बार उपयोग के बाद फिर इस्तेमाल लायक नहीं रह जाता. इसके सभी हिस्से उपयोग के बाद नष्ट हो जाते हैं या समुद्र में गिर जाते हैं. सॉलिड बूस्टर्स लांच के कुछ मिनट बाद ये अलग होकर समुद्र (आमतौर पर बंगाल की खाड़ी) में गिर जाते हैं. लिक्विड कोर स्टेज में उसके बाद उपयोग हो जाने के बाद समुद्र में गिरता है. क्रायोजेनिक स्टेज पेलोड को कक्षा में पहुंचाने के बाद अंतरिक्ष में रह जाता है या वायुमंडल में जल जाता है. एक GSLV Mk III रॉकेट के निर्माण और लंच की औसत लागत लगभग ₹400 करोड़ (लगभग US$54-62 मिलियन) बताई जाती है.

सवाल – फिर अंतरिक्ष में गगनयान क्या करेगा?

– .ये पृथ्वी की कक्षा में करीब तीन दिनों तक रहेगा. अंतरिक्ष यात्री क्रू मॉड्यूल के अंदर रहेंगे, जहां उनके लिए आवश्यक जीवन-रक्षक प्रणालियां ऑक्सीजन, खाना, तापमान नियंत्रण और वेस्ट मैनेजमेंट उपलब्ध रहेगा. अंतरिक्ष यात्री कई तरह के वैज्ञानिक प्रयोग कर सकते हैं, जैसे माइक्रोग्रैविटी में सामग्री का अध्ययन, जैविक प्रयोग, या पृथ्वी का अवलोकन.

सवाल – इसकी वापसी कैसे होती है?

– मिशन के अंत में, गगनयान को पृथ्वी की ओर वापस लाने के लिए सर्विस मॉड्यूल के प्रोपल्सन सिस्टम का उपयोग किया जाएगा, जिससे क्रू मॉड्यूल को कक्षा से बाहर निकाला जाएगा. क्रू मॉड्यूल सर्विस मॉड्यूल से अलग हो जाएगा. पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करेगा. वायुमंडल में प्रवेश के दौरान क्रू मॉड्यूल को अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए एक हीट शील्ड होगी. जैसे ही मॉड्यूल पृथ्वी के करीब पहुंचेगा, इसकी गति को कम करने के लिए पैराशूट सिस्टम सक्रिय होगा. गगनयान में 10 पैराशूट्स की एक सीरीज है, जो मॉड्यूल को धीमा करके समुद्र में सॉफ्ट लैंडिंग सुनिश्चित करेगी.

गगनयान का क्रू मॉड्यूल समुद्र में उतरेगा, शायद अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में. भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल अंतरिक्ष यात्रियों और मॉड्यूल को सुरक्षित निकालने के लिए तैयार रहेंगे.

सवाल – इसमें क्रू एस्केप सिस्टम क्या है?

– गगनयान में एक आपातकालीन बचाव प्रणाली है, जो लॉन्च के दौरान किसी भी असफलता की स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रूप से बाहर निकाल सकती है.

सवाल – क्या अब गगनयान से सीधे मानवों को अंतरिक्ष भेज दिया जाएगा?

– नहीं. इससे पहले गगनयान मिशन से दो मानवरहित परीक्षण उड़ानों और एक रोबोट के साथ टेस्ट उड़ान की योजना है. परीक्षण उड़ानें इसी साल होंगी.

सवाल – मानव के साथ ये मिशन कब अंतरिक्ष जाएगा?

– इसरो ने गगनयान के लिए पहली मानवयुक्त उड़ान को 2026 के अंत तक तय किया है. इससे पहले सारे परीक्षण कर लिए जाएंगे.

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