Last Updated:November 11, 2025, 21:29 IST
ISRO Gaganyaan Mission: इसरो ने गगनयान मिशन की दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है. झांसी के बाबीना फील्ड फायरिंग रेंज में क्रू मॉड्यूल के मेन पैराशूट सिस्टम का सफल परीक्षण किया गया. भारतीय वायुसेना के IL-76 विमान से 2.5 किलोमीटर ऊंचाई से गगनयान के समान वजन वाला मॉडल छोड़ा गया, जो तय अनुक्रम में पैराशूट खुलने के बाद सुरक्षित लैंडिंग के साथ नीचे आया। इसरो ने बताया कि पैराशूट सिस्टम ने कठिन डिसरीफिंग डिले स्थिति में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया.
ISRO ने सफल टेस्ट किया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO ने गगनयान मिशन की दिशा में एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है. उत्तर प्रदेश के झांसी के बाबीना फील्ड फायरिंग रेंज (BFFR) में 3 नवंबर 2025 को गगनयान क्रू मॉड्यूल के मेन पैराशूट सिस्टम का अहम परीक्षण सफलतापूर्वक किया गया. यह परीक्षण “इंटीग्रेटेड मेन पैराशूट एयरड्रॉप टेस्ट (IMAT)” सीरीज का हिस्सा था, जिसका मकसद पैराशूट सिस्टम की गुणवत्ता और मजबूती को परखना है.
इसरो ने बताया कि गगनयान क्रू मॉड्यूल के पैराशूट सिस्टम में कुल 10 पैराशूट होते हैं, जिन्हें चार श्रेणियों में बांटा गया है. सबसे पहले दो “एपेक्स कवर सेपरेशन पैराशूट” खुलते हैं, जो पैराशूट कम्पार्टमेंट के सुरक्षा कवर को हटाते हैं. इसके बाद दो ड्रोग पैराशूट खुलते हैं, जो मॉड्यूल को स्थिर करते हुए उसकी रफ्तार कम करते हैं. ड्रोग्स के अलग होने के बाद तीन पायलट पैराशूट तैनात होते हैं, जो तीन मेन पैराशूट को खींचकर बाहर निकालते हैं. ये मेन पैराशूट मॉड्यूल की गति को काफी हद तक घटाकर सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करते हैं. दिलचस्प बात यह है कि सिस्टम इस तरह से डिजाइन किया गया है कि तीन में से सिर्फ दो मेन पैराशूट भी सुरक्षित लैंडिंग के लिए पर्याप्त हैं.
इसरो ने बताया कि यह पैराशूट रीफ्ड इन्फ्लेशन नामक तकनीक से खुलता है. इसमें पैराशूट पहले आंशिक रूप से खुलता है (रीफिंग) और कुछ समय बाद पूरी तरह फैलता है (डिसरीफिंग). यह प्रक्रिया पायरो डिवाइस की मदद से नियंत्रित होती है. इस बार के परीक्षण में सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थिति को परखा गया, जब दो मेन पैराशूट के बीच डिसरीफिंग में देरी होती है. इस स्थिति में असमान लोड और दबाव पड़ता है, जिसे पैराशूट सिस्टम ने बखूबी संभाला.
परीक्षण के दौरान भारतीय वायुसेना के IL-76 विमान से गगनयान मॉड्यूल के समान वजन वाला एक सिम्युलेटेड मॉडल करीब 2.5 किलोमीटर की ऊंचाई से छोड़ा गया. तय अनुक्रम में पैराशूट एक-एक कर खुले और मॉडल ने स्थिर गति से नीचे उतरते हुए जमीन पर सुरक्षित लैंडिंग की. यह नतीजा पैराशूट सिस्टम की मजबूती और भरोसेमंद डिजाइन को साबित करता है. इस ऐतिहासिक सफलता में इसरो के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC), डीआरडीओ की एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (ADRDE), भारतीय वायुसेना और भारतीय सेना की टीमें शामिल थीं. यह परीक्षण न केवल गगनयान मिशन की तैयारी में एक और अहम कदम है, बल्कि भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता को साकार करने की दिशा में मील का पत्थर भी है.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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First Published :
November 11, 2025, 21:29 IST

1 hour ago
