इस दिवाली लें ये प्रतिज्ञा

13 hours ago

दिवाली का त्योहार आने वाला है, वैसे एक साधक के जीवन में हर दिन त्योहार होता है. प्रकृति हर क्षण उत्सव मनाती है – चिड़ियाँ गा रही हैं, फूल खिल रहे हैं, नदियाँ बह रही हैं. जब हम साधक बनते हैं, तब जीवन भी प्रकृति की तरह निरंतर उत्सवमय हो जाता है और जब सिद्ध हो जाते हैं, तो त्योहार खुद हमारे पीछे आते हैं. जहाँ जाओगे, वहाँ उत्सव है; जहाँ बैठोगे, वहीं आनंद है.

त्योहारों को मनाने की परंपरा कोई नई नहीं है. यह अनादिकाल से हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है. हर त्योहार में रस भी है, इसमें सार है और तत्व भी. त्योहार हमें दो स्तरों पर समृद्ध करते हैं – बौद्धिक स्तर पर तत्त्व ज्ञान, और ह्रदय के स्तर पर रस. जब जीवन में रस भी हो, ज्ञान भी हो और सेवा भी हो — तब जीवन पूर्ण होता है.

हमारी परंपराएँ अद्भुत हैं जब उन्हें समझदारी से निभाया जाए. त्योहार के दिन भी यदि कोई मुँह लटकाकर घूमे, छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ हो जाए, तो वह उत्सव नहीं रह जाता. त्योहार का अर्थ है — जीवन में समता और उत्साह .

धनतेरस, काली चौदस, दीपावली और प्रतिपदा — इन दिनों में यह संकल्प लें कि न स्वयं दुखी होंगे, न किसी और को करेंगे. जो भी परिस्थिति आए, उसे स्वीकार कर आगे बढ़ेंगे. यह संकल्प लेकर चलिए, तो मनोकामनाओं की पूर्ति का मार्ग खुलता है. यदि कभी मन विचलित हो भी जाए, तो पछतावे में न फँसें. क्षणभर की गलती को वहीं छोड़ दें और अगले क्षण में लौट आएँ. बार-बार अपने स्वभाव में लौट आना ही उत्सव है और हमारा स्वभाव क्या है? सच्चिदानंद , नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्त चेतना के स्वभाव को याद करके अपने स्वभाव में आ जाते हैं .

दीया जलाओ, जितना अधिक दीया जला सकते हो उतना अधिक दिया जलाओ, इसका मतलब क्या है? हर एक व्यक्ति दीप है, मगर अभी जली नही. जीवन शुरू ही नही हुआ. जलता हुआ दिया यानि जीवन शुरू हो गया. जीवन का लक्षण है ज्ञान, उत्साह, उत्सव, प्रेम, ये सब जीवन में जग जाए तो जीवन भी जगमगा जाएगा, दुनिया भी जगमगा जाएगी. अंधेरे को मिटाने के लिए एक दिया जले, तो काफी नही है. घर में एक ही व्यक्ति अपने आप में खुश रहे, संतुष्ट रहे, प्रसन्न रहे, ये संभव नही है. घर में हर व्यक्ति में ज्ञान हो तब जाकर दीपावली बनती है.

दीपावली केवल दीप जलाने का ही पर्व नहीं है, यह अपने भीतर की ज्योति प्रज्वलित करने का प्रतीक है. हर व्यक्ति एक दीप है, पर जब तक उसमें ज्ञान, प्रेम और उत्साह की लौ नहीं जलती, तब तक जीवन अधूरा है. भगवान बुद्ध ने कहा — “अप्प दीपो भव” – स्वयं दीप बनो. वेदों में भी कहा गया है — “ज्योतोर्वा” —“तुम ज्योति-स्वरूप हो.”

ज्योति जगमगाती रहे. यह ज्योति जब भीतर जलती है, तब बाहर की दीपावली भी अर्थपूर्ण बनती है. त्योहार मनाइए पूरी खुशी से, पर साथ में रखें – बुद्धि और ह्रदय में सद्विचार और आचरण में सद्कर्म. यही सच्ची दीपावली है.

समुद्र-मंथन से धन्वंतरि जी अमृतकलश लेकर प्रकट हुए. विचार-मंथन हुआ, तो उनमें से औषधि निकली – यह संकेत है कि स्वास्थ्य और अमृत, दोनों ज्ञान और आयुर्वेद से मिलते हैं. भगवान नारायण ने धन्वंतरि के रूप में अवतार लिया था. आयुर्वेद केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि संतुलित जीवन की कला है. जो लोग योग और आयुर्वेद को अपनाते हैं, वे रोग से भी शीघ्र मुक्त हो जाते हैं इसलिए आयुर्वेद का सम्मान करना चाहिए.

धनतेरस के दिन यह भावना जगाएँ – “मैं संपन्न हूँ.” पहले चेतना में संपन्नता लाओ, फिर भौतिक रूप में वह स्वतः आएगी. नकारात्मक सोच हमेशा नकारात्मक परिणाम लाती है. हमारे पूर्वज अपने घर के धन को देखकर कहते थे, “यह सब मेरा है, यह बढ़ेगा, जितना चाहिए उतना मिलेगा.” यह तृप्ति का भाव ही समृद्धि को आकर्षित करता था.

वे कुबेर भगवान से प्रार्थना करते थे, “हे कुबेर, हमारे खजाने को भरा रखना, हमें कोई कमी न हो.” और फिर कर्मठ होकर कार्य करते थे. आज भी यही जरूरी है — हिम्मत बनाए रखना, सकारात्मक सोचना और विश्वास रखना कि कुबेर सबको देंगे.

जितना हम धन्यभाव से भरेंगे, उतनी समृद्धि हमारे जीवन में आएगी.

विचार ही बीज हैं, और समय आने पर वही वृक्ष बनते हैं इसलिए धनतेरस पर संकल्प लें — सकारात्मक विचारों के बीज बोएँ. वेद भी यही कहते हैं — “विचार ही सृष्टि का मूल है.” जो विचार चेतना में बोएँगे, वही जीवन का फल बनकर लौटेंगे.

इस दीपावली अपने घर में ही नहीं, अपने मन में भी दीप जलाएँ. मिठाई खाएँ, गाएँ, नाचें, पर ध्यान भी करें —त्योहार से पहले, बीच में और बाद में कुछ क्षण मौन में बैठें. यह भाव करें कि ईश्वर चाशनी है और मैं रसगुल्ला हूँ. मैं मधुर हूँ, मेरा तन, मन सब मधुर है. मधुरता में पूरी तरह से ओतप्रोत है. यहीं समझ कर बैठोगे तो ध्यान लगने लगता है.

यही भीतर की दीपावली है. बहुत ज्यादा मिठाई खाने से ही दीपावली मनेगी, ऐसा नहीं है. मिठाई बांटने से नही, मधुर बोलने से अधिक स्नेह फैलता है, मधुरता फैलती है. हमारा भाव मधुर हो,हमारी बुद्धि प्रखर हो. हमारा कृत्य नेकी का हो और जीवन में सुख संपदा बढ़े. हम सब मिलकर इस शुभकामना के साथ खुले दिल से इस त्योहार को मनाएँ. जीवन को एक उत्सव के रूप में देखें. याद रखें प्रदूषण न करें. पर्यावरण के प्रति सजग रहें. स्वास्थ्य के प्रति हम सजग रहें. दूसरों की जरूरत के प्रति हम सजगता पूर्वक व्यवहार करें.

हम सब इस बार केवल दीये ही नहीं, अपने भीतर की ज्योति भी जलाएँ.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

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