इथोपियाई राख ने ढका दिल्ली का आसमान,क्या है वो अदृश्य हाईवे जिस पर तय किया सफर

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Last Updated:November 25, 2025, 13:13 IST

Ethiopian Volcanic Ash: इथोपिया के हेली गुब्बी ज्वालामुखी विस्फोट से निकली राख ने जेट स्ट्रीम के जरिये 7000 किलोमीटर का सफर तय कर दिल्ली का आसमान ढक दिया. इससे विमान सेवाएं बाधित हुईं.

इथोपियाई राख ने ढका दिल्ली का आसमान,क्या है वो अदृश्य हाईवे जिस पर तय किया सफरउपग्रह से ली गई एक तस्वीर में इथियोपिया के हेली गुब्बी ज्वालामुखी के विस्फोट से उठती राख लाल सागर के ऊपर तैरती दिखाई दे रही है. नासा/रॉयटर्स

Ethiopian Volcanic Ash: इथियोपिया के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में 12,000 वर्षों के बाद एक सुप्त ज्वालामुखी फटा है, जिससे लाल सागर के पार यमन, ओमान, भारत और उत्तरी पाकिस्तान के कुछ हिस्सों की ओर धुएं और राख का घना गुबार उठा इथियोपिया से ज्वालामुखीय राख का एक ऊंचाई वाला बादल सोमवार दोपहर को भारतीय क्षेत्र में प्रवेश कर गया था. मंगलवार शाम तक पूरी तरह से चीन की ओर पहुंचने की उम्मीद है. यह ज्वालामुखीय राख रविवार को लाल सागर तट के पास इथियोपिया के उत्तरपूर्वी भाग में हेली गुब्बी ज्वालामुखी के एक दुर्लभ विस्फोट से निकली थी.

ज्वालामुखी के धुएं और राख की 7000 किलोमीटर से अधिक की इस यात्रा ने वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों को हैरान कर दिया है. यह ग्लोबल ‘एटमॉस्फेरिक डायनामिक्स’ (वायुमंडलीय गतिशीलता) के एक दुर्लभ कारनामे को उजागर करता है. आमतौर पर ये राख स्थानीय वातावरण में घुलमिल जाती है. लेकिन इस मामले में इन कणों को एक शक्तिशाली और तेज गति वाली हवा की धारा ने पकड़ लिया जिसे जेट स्ट्रीम या विशेष रूप से सब-ट्रॉपिकल वेस्टर्ली जेट स्ट्रीम के रूप में जाना जाता है. इससे ज्वालामुखी की राख उस ऊंचाई पर पहुंच गयी जहां ज्यादातर लंबी दूरी के हवाई जहाज उड़ान भरते हैं. इससे दृश्यता में कमी और SO2 जैसी जहरीली गैसों के सांस के जरिए अंदर जाने का खतरा पैदा हो सकता है. इनसे बचने के लिए विमान सेवाओं को स्थगित करना पड़ा. भारतीय मौसम विभाग ने कहा कि मंगलवार शाम से स्थिति सामान्य हो जाएगी.

राख कैसे पहुंची दिल्ली
हेली गुब्बी ज्वालामुखी के फटने पर लावा या मैग्मा का कोई प्रवाह नहीं हुआ, लेकिन भारी मात्रा में गैस और धुआं, जिनमें संभवतः चट्टानों, कांच और कुछ अन्य पदार्थों के छोटे-छोटे टुकड़े शामिल थे. यह एक विस्फोटक के साथ बाहर निकले. इनमें से भारी कण आस-पास के इलाकों में गिरे होंगे. लेकिन बहुत महीन कण और सल्फर डाइऑक्साइड या कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें वायुमंडल में बहुत ऊपर सतह से लगभग 15-40 किमी ऊपर उठ सकती हैं. ऐसा मुख्यतः इसलिए होता है क्योंकि ज्वालामुखी के चारों ओर की हवा अत्यधिक गर्म हो जाती है, हल्की हो जाती है और ऊपर उठती है. अपने साथ सूक्ष्म कण और गैसें भी ले जाती है.

ऐसे तय की 7000 किलोमीटर की दूरी
उस ऊंचाई पर हवा का प्रवाह बहुत तेज होता है और ज्वालामुखी का धुआं आमतौर पर हवा के प्रवाह की दिशा में ही बहता है. इथियोपियाई विस्फोटों से निकले धुएं के मामले में भी यही हुआ. वायु धाराओं के साथ ज्वालामुखी की राख और गैसें पश्चिम की ओर भारतीय क्षेत्र की ओर बढ़ीं गुजरात और राजस्थान से प्रवेश किया. फिर दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व दिशा में दिल्ली और उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ीं.  इस साइक्लोनिक (चक्रवाती) प्रवाह ने कणों को लगभग 7000 किलोमीटर की दूरी तय करने में मदद की जिससे वे रिकॉर्ड समय में उत्तर भारत के वातावरण तक पहुंच गए. इसी ट्रेजेक्टरी पर चलते हुए इनके मंगलवार शाम तक पूरी तरह से चीन में प्रवेश करने की उम्मीद है.

ये धुआं और गैस कितने खतरनाक
ज्वालामुखी विस्फोटों से निकलने वाले पदार्थ स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा हैं. लेकिन यह धुआं बहुत ऊंचाई पर घूम रहा था, इसलिए इंसानों के लिए कोई खतरा नहीं था. लेकिन इससे हवाई जहाजों को खतरा जरूर था, जो ज्यादातर इन्हीं ऊंचाइयों पर उड़ान भरते हैं. कॉर्मशियल एयरलाइनें खासकर लंबी दूरी के अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर आमतौर पर पृथ्वी से 10-14 किलोमीटर ऊपर उड़ान भरती हैं. मोटे तौर पर उसी क्षेत्र में जहां ज्वालामुखी का धुआं घूम रहा था. ज्वालामुखी के धुएं से दृश्यता बाधित हो सकती थी और उड़ान संचालन में बाधा उत्पन्न हो सकती थी. ये अति सूक्ष्म कण इंजनों में प्रवेश कर सकते थे और अंदर ही पिघल सकते थे, जिससे परिचालन में व्यवधान उत्पन्न हो सकता था. चूंकि हवाई जहाजों में मजबूत फिल्टरेशन सिस्टम होते हैं, इसलिए यात्रियों के बाहरी हवा में सांस लेने का जोखिम बहुत ज्यादा नहीं होता. लेकिन फिल्टर और सेंसर सूक्ष्म कणों से अवरुद्ध भी हो सकते थे, जिससे उनकी प्रभावशीलता कम हो सक थी. इसके अलावा कुछ हानिकारक गैसों के फिल्टर न हो पाने की आशंका हमेशा बनी रहती है. खतरा मुख्यतः हवाई जहाज के इंजन और अन्य मशीनरी को होता है, जिसकी वजह से एयरलाइंस ज्वालामुखी विस्फोट वाले क्षेत्रों से यात्रा करने से बचती हैं.

यह कैसे खत्म होगा
ज्वालामुखीय प्लूम (धुएं या राख का गुबार) की गति एक अल्पकालिक घटना है. अगले कुछ दिनों में इनका प्रभाव पूरी तरह से समाप्त हो जाने की संभावना है. समय के साथ प्लूम के सूक्ष्म कण बिखर जाते हैं और इतनी सघनता में फैल जाते हैं कि अब कोई चिंता का विषय नहीं रह जाता. बादल और बारिश इनमें से बहुत से कणों को बहा ले जाते हैं, जिससे इनका प्रभाव काफी हद तक कम हो जाता है. प्लम में सल्फर डाइऑक्साइड या कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें बहुत लंबे समय तक रह सकती हैं, लेकिन ये गैसें पहले से ही वायुमंडल में मौजूद होती हैं. प्लूम में इन गैसों की मात्रा इतनी अधिक नहीं होती कि वायुमंडल में उनकी मौजूदा कंस्ट्रेशन में कोई खास अंतर आ सके.

ग्लोबल क्लाइमेट कनेक्शन
यह घटना एक स्पष्ट संकेत है कि जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाएं अब केवल स्थानीय समस्याएं नहीं रही हैंॉ. इथियोपिया में ज्वालामुखी फटने के बाद धुएं या राख का दिल्ली तक पहुंचना यह दर्शाता है कि हमारा वायुमंडल एक अविभाज्य और इंटरकनेक्टेड सिस्टम है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह घटना वायुमंडलीय परिवहन (Atmospheric Transport) का एक दुर्लभ, लेकिन महत्वपूर्ण उदाहरण है. जो भविष्य में लंबी दूरी के पॉल्यूटेंट (प्रदूषक) परिवहन की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल देता है. दिल्ली का आसमान अब केवल भारत के मौसम विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र नहीं, बल्कि दुनिया के दूर-दराज के क्लाइमेट चेंज इवेंट्स का भी रिसीवर बन चुका है.

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

November 25, 2025, 13:13 IST

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