Waqf: केंद्र की वो दलील जो SC में साबित हो सकती है मास्टरस्ट्रोक,10 बड़ी बातें

7 hours ago

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. इन याचिकाओं को चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच सुन रही है. बुधवार को केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश कीं. मेहता की दलीलें न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं. एक दलील ऐसी है, जो पूरी सुनवाई के दौरान तुरुप का पत्ता साबित हो सकती है. सॉलिसिटर जनरल ने बुधवार को वक्फ कानून की तुलना 1956 में आए हिंदू कोड बिल से की. उन्होंने कहा, ‘जब हिंदू कोड बिल आया तो हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई समुदायों के पर्सनल लॉ राइट्स प्रभावित हुए थे, तब किसी ने ये सवाल नहीं उठाया कि मुस्लिमों को इससे क्यों अलग रखा गया.’ यह दलील दर्शाती है कि सरकार वक्फ कानून को धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) से जोड़कर नहीं देख रही, बल्कि इसे धर्मनिरपेक्ष कानून मान रही है, जिसमें ‘चैरिटी’ को केंद्र बिंदु बनाया गया है.

वक्फ इस्लाम का ‘जरूरी’ हिस्सा नहीं: केंद्र की प्रमुख दलील

मेहता ने कहा कि वक्फ इस्लामी विचारधारा का हिस्सा भले हो, लेकिन यह इस्लाम का ‘आवश्यक धार्मिक अभ्यास’ (Essential Religious Practice) नहीं है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा, ‘वक्फ केवल दान है, और दान हर धर्म में होता है. इसलिए इसे किसी धर्म की अपरिहार्य परंपरा नहीं कहा जा सकता.’

यह दलील संविधान के अनुच्छेद 25-26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की व्याख्या के लिए बेहद अहम है, क्योंकि यदि कोई प्रथा ‘Essential Religious Practice’ नहीं मानी जाती, तो उसे विशेष संवैधानिक सुरक्षा नहीं मिलती.

‘वक्फ बाय यूजर’ पर सरकार का कड़ा रुख

केंद्र सरकार ने ‘वक्फ बाय यूजर’ के सिद्धांत को कानूनी तौर पर खत्म करने की पैरवी की. यह वह व्यवस्था है जिसके तहत किसी भी संपत्ति को केवल लंबे समय तक धार्मिक या सामाजिक उपयोग के आधार पर वक्फ घोषित किया जा सकता है, भले ही उसके पास कानूनी दस्तावेज़ न हों.

मेहता ने कहा, ‘वक्फ बाय यूजर कोई मौलिक अधिकार नहीं है, यह केवल एक वैधानिक व्यवस्था है जिसे संसद कभी भी समाप्त कर सकती है.’ उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार सार्वजनिक भूमि की संरक्षक है और कोई भी सरकारी जमीन पर वक्फ का दावा नहीं कर सकता.

गलत जानकारी पर भी तीखा हमला

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की उस आशंका पर कि अब अधिकारी मनमाने ढंग से वक्फ संपत्तियों को सरकार की घोषित कर लेंगे, मेहता ने कहा, ‘यह न केवल भ्रामक है, बल्कि पूरी तरह से झूठ है.’ उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल कोई वरिष्ठ अधिकारी (जिला कलेक्टर से ऊपर) ही किसी संपत्ति की समीक्षा कर सकता है और वह भी वक्फ ट्रिब्यूनल के निर्णय तक कब्जा नहीं ले सकता. उन्होंने बताया कि जब तक ट्रिब्यूनल और अपील प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक कब्जा वक्फ के पास ही रहेगा.

संशोधन अधिनियम पर व्यापक विमर्श का दावा

मेहता ने यह भी कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 किसी जल्दबाज़ी में नहीं लाया गया, बल्कि इसके लिए 96 बार संयुक्त संसदीय समिति की बैठकें हुईं, 97 लाख सुझाव मिले और 25 वक्फ बोर्ड तथा कई राज्य सरकारों से राय ली गई.

उनके अनुसार, ‘यह कानून बंद कमरों में नहीं बना बल्कि अभूतपूर्व स्तर पर संवाद और सुझावों को लेकर तैयार हुआ है. कई सुझावों को संशोधन में शामिल किया गया या तर्कसंगत तरीके से अस्वीकार किया गया.’

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— News18 India (@News18India) May 21, 2025

‘वक्फ रजिस्टर में नाम’ से नहीं मिलती मालिकाना हक की गारंटी

सरकार ने कोर्ट में स्पष्ट किया कि केवल किसी संपत्ति का वक्फ रजिस्टर में दर्ज होना उसे स्वाभाविक रूप से वक्फ संपत्ति नहीं बना देता. कोर्ट में पहले दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए मेहता ने कहा, ‘अगर कोई सरकारी जमीन गलती से वक्फ के नाम पर दर्ज हो गई है, तब भी सरकार उसे बचा सकती है.’

‘संपत्ति का अधिकार नहीं छीना जा रहा’

केंद्र सरकार ने यह भी साफ किया कि संशोधन अधिनियम का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को जबरन छीनना नहीं है. उन्होंने कहा, ‘किसी अधिकारी को कब्जा लेने का अधिकार नहीं है. केवल राजस्व रिकॉर्ड बदलेगा और वह भी चुनौती के अधीन रहेगा.’ उन्होंने कहा कि वक्फ ट्रिब्यूनल और कोर्ट ही मालिकाना हक का अंतिम फ़ैसला देंगे.

गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति पर जवाब

केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ परिषद (CWC) और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को लेकर विवाद का कोई आधार नहीं है. उन्होंने कहा कि कुल 22 में से 4 सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं, जबकि राज्य स्तर पर 11 में से 3 गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है. मेहता ने कहा, ‘कई बार गैर-मुस्लिम भी वक्फ संपत्तियों से प्रभावित होते हैं या लाभार्थी होते हैं. इसलिए यह व्यवस्था पूरी तरह उचित है.’

ऐतिहासिक ‘वक्फ बाय यूजर’ का दुरुपयोग

सरकार ने यह भी बताया कि वक्फ बाय यूजर का गलत इस्तेमाल 1923 से होता आ रहा है. पहली बार उस समय इसके लिए कानून बनाया गया था ताकि सार्वजनिक और निजी संपत्तियों पर अवैध रूप से वक्फ का दावा रोका जा सके.

क्या वक्फ अधिनियम साबित होगा मास्टरस्ट्रोक?

अगर सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार की इन दलीलों को स्वीकार कर लेता है, तो यह वक्फ कानून और उसकी प्रासंगिकता पर एक ऐतिहासिक मोड़ होगा. यह कदम न केवल सरकारी संपत्तियों की रक्षा करेगा, बल्कि देश के भीतर लंबे समय से चल रहे वक्फ विवादों पर स्पष्टता भी लाएगा.

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गुरुवार (22 मई) को भी जारी रहेगी.

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