Last Updated:December 01, 2025, 19:49 IST
चुनाव आयोग ने एसआईआर पर सीजेआई सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने हलफनामा दिया है. इसमें वोट चोरी, जानबूझकर वोट काटने, बीएलओ की मौत समेत कई सवालों का जवाब दिया गया है. चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि याचिका में लगाए गए आरोप हवा हवाई हैं और उनका तत्थ्यों से कोई लेना देना नहीं है.
बंगाल एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने दाखिल किया हलफनामा.वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर संसद से सड़क तक संग्राम मचा हुआ है. विपक्ष दावा कर रहा कि जानबूझकर लोगों के नाम काटे जा रहे हैं. कुछ समुदायों को टारगेट किया जा रहा है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो. सीजेआई सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ इस पर सुनवाई कर रही है. अब चुनाव आयोग ने उनके सामने कच्चा चिट्ठा खोल दिया है. इलेक्शन कमीशन ने विस्तृत हलफनामा देकर बताया कि एसआईआर में किसके नाम काटे जा रहे हैं? साफ कहा कि जो दावे किए जा रहे हैं, वो न सिर्फ हवा हवाई हैं, बल्कि पूरी तरह राजनीति से प्रेरित हैं. आयोग ने तथ्यों के साथ ऐसा आईना रखा है, जिससे विपक्ष के दावों की पोल खुल गई है.
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में उन तमाम दावों की धज्जियां उड़ा दीं, जिनमें कहा गया था कि बंगाल में बड़े पैमाने पर लोगों के नाम काटे जा रहे हैं. आरोप लग रहा था कि एक विशेष समुदाय, अल्पसंख्यकों, मुसलमानों और मतुआ समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. इस आयोग ने जवाब दिया कि यह आरोप पूरी तरह निराधार और सबूतों से परे है. हमारे पास ऐसा कोई डेटा नहीं है जो साबित करे कि किसी खास धर्म या जाति के लोगों पर इसका बुरा असर पड़ रहा है. आयोग ने ‘काला चिट्ठा’ खोलते हुए साफ कर दिया कि संविधान का अनुच्छेद 325 ढाल बनकर खड़ा है, जो धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी मतदाता को बाहर करने की इजाजत नहीं देता. जांच सबके लिए बराबर है, चाहे वो कोई भी हो.
चुनाव आयोग ने डाटा देकर बताया कि देशभर में कितने फार्म अब तक भरे जा चुके हैं.
विपक्ष का ‘एनआरसी’ वाला डर और आयोग का पलटवार
कांग्रेस, टीएमसी और सीपीएम जैसे विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी कि SIR के नाम पर गरीबों और अनपढ़ लोगों से ऐसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं जो नागरिकता साबित करने के लिए होते हैं. उनका कहना था कि यह मतदाता सूची संशोधन नहीं, बल्कि पिछले दरवाजे से ‘एनआरसी’ लागू करने की कोशिश है.
इस पर आयोग ने अदालत को बताया कि यह केवल चुनावी रोल को शुद्ध करने की एक मानक प्रक्रिया है. इसे पुलिस नहीं, बल्कि बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) अंजाम दे रहे हैं. आयोग ने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि बंगाल में 99.77% मतदाताओं को फॉर्म दिए जा चुके हैं और 70% से ज्यादा लोगों ने उन्हें भरकर जमा भी कर दिया है. अगर डर का माहौल होता, तो इतनी बड़ी भागीदारी कैसे संभव थी?
मतुआ और शरणार्थियों की ‘गर्दन’ पर तलवार?
सबसे संवेदनशील पहलू बंगाल के मतुआ समुदाय और सीएए (CAA) के तहत आने वाले शरणार्थियों से जुड़ा है. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि हिंदू, सिख और अन्य शरणार्थी, जिनके नागरिकता के आवेदन अभी पेंडिंग हैं, उनके नाम काटे जाने का खतरा है. इस पर चनाव आयोग ने साफ कर दिया कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है.
क्या ऑनलाइन आवेदन भी रसीद माने जाएंगे ?
आयोग के सामने यह मुद्दा भी उठा कि क्या ऑनलाइन आवेदनों की रसीद को सबूत माना जाएगा? हालांकि आयोग ने तकनीकी पहलुओं पर अपनी सफाई दी, लेकिन विपक्ष का दावा है कि 1987 या 2004 के बाद जन्मे लोगों से माता-पिता के कागजात मांगना लाखों लोगों को ‘स्टेटलेस’ बना सकता है.
BLO की आत्महत्या और सिस्टम का सच क्या ?
सुप्रीम कोर्ट के सामने रखे गए दस्तावेजों में उन आरोपों का भी जिक्र आया जिनमें कहा गया था कि काम के भारी दबाव के चलते बंगाल में 23 बीएलओ ने आत्महत्या कर ली है. विपक्ष ने इसे खूनी प्रक्रिया करार दिया था. आयोग ने माना कि चुनौतियां हैं, लेकिन प्रक्रिया को पारदर्शी बताया. बाकी मौतों की जांच की जा रही है.
डेडलाइन बढ़ी, लेकिन सवाल बरकरार
चुनाव आयोग ने ‘काला चिट्ठा’ रखकर अपनी स्थिति तो साफ कर दी है, लेकिन लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. आयोग ने फॉर्म जमा करने की तारीख बढ़ाकर 11 दिसंबर कर दी है और फाइनल लिस्ट अब फरवरी में आएगी. अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है. क्या अदालत आयोग के इस ‘चिट्ठे’ पर भरोसा करेगी, या फिर 2026 के चुनाव से पहले बंगाल में लाखों नामों पर चली कैंची को लेकर कोई बड़ा आदेश देगी? फिलहाल, आयोग ने साफ कर दिया है कि हम नियम से चल रहे हैं, राजनीति से नहीं.
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First Published :
December 01, 2025, 19:49 IST

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