H1-B वीजा पर ट्रंप का हमला ट्रेड वार्ता में भारत पर दबाव डालने की रणनीति

3 weeks ago

Last Updated:September 22, 2025, 12:46 IST

H1 B Visa and Donald Trump: डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के H1-B वीजा पर 100,000 डॉलर शुल्क से भारतीय आईटी पेशेवरों पर असर पड़ेगा लेकिन, इसका अमेरिका पर भी नकारात्मक असर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है.

H1-B वीजा पर ट्रंप का हमला ट्रेड वार्ता में भारत पर दबाव डालने की रणनीतिडोनाल्ड ट्रंप का यह कदम अमेरिका के लिए ही खतरनाक हो सकता है.

H1 B Visa and Donald Trump: एलन मस्क, सुंदर पिचाई, सत्य नडेला, इंद्रा नूयी… ऐसे सैकड़ों नाम हैं जिन्होंने H1-B वीजा पर अमेरिका जाकर अमेरिकी सपने को जिया. लेकिन आज अगर कोई पहली बार नौकरी के लिए अमेरिका जाना चाहें तो उन्हें 100,000 डॉलर चुकाना पड़ेगा. यह डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के ताजा चौंकाने वाले फैसले का विनाशकारी प्रभाव है. इससे भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा. लेकिन क्या राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H1-B वीजा की लगा घोंट दी है? क्या भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए अमेरिकी सपने खत्म हो गए हैं? क्या यह ट्रंप का वह हथकंडा है जो आज हो रही भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार वार्ता में अपर हैंड हासिल करने के लिए है?

आइए, इन परतों को खोलते हैं. सबसे पहले व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया है कि 100,000 डॉलर वार्षिक शुल्क नहीं, बल्कि एकमुश्त शुल्क है जो केवल H1-B वीजा याचिका पर लागू होगा. यह केवल नई वीजाओं के लिए है नवीनीकरण या मौजूदा वीजा धारकों के लिए नहीं है. जो पहले से H1-B वीजा धारक हैं और फिलहाल अमेरिका से बाहर हैं, उन्हें देश में दोबारा प्रवेश के लिए 100,000 डॉलर नहीं चुकाना पड़ेगा. इससे भारतीय आईटी पेशेवरों और उनके अमेरिकी नियोक्ताओं की चिंता काफी हद तक शांत हो गई. अफरातफरी शांत हो गई है.

दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप ने इस फैसले के जरिए भारत और भारतीयों पर निशाना साधा है. वे नए भारतीयों को H1-B वीजा पर अमेरिका आने से रोकना चाहते हैं. हर साल H1-B वीजाओं का लगभग 72 प्रतिशत भारतीयों को जाता है. यह 2015 से ऐसी ही है. 2024 में 2.83 लाख भारतीयों को H1-B वीजा मिला और 2023 में भी लगभग यही संख्या थी. ताजा आवेदनों में भारतीयों का वर्चस्व कम हो सकता है क्योंकि उन्हें हायर करने वाली कंपनी को 100,000 डॉलर का एकमुश्त शुल्क देना पड़ेगा. इसलिए, कंपनी को तय करना होगा कि कोई व्यक्ति इतना मूल्यवान है या नहीं. इसे और जटिल बनाने वाली बात यह है कि अमेरिका में भारतीय H1-B वीजा धारक की औसत वार्षिक सैलरी लगभग 65,000 डॉलर है. तो क्या कंपनियां किसी H1-B वीजा धारक को शामिल करने के लिए अग्रिम 100,000 डॉलर का शुल्क चुकाना चाहेंगी? यह एक बड़ा सवाल है.

डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसा क्यों किया

अब समझते हैं कि अमेरिका ने ऐसा क्यों किया. डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यह निर्णय अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए है. उन्होंने कहा कि H1-B गैर-आप्रवासी वीजा कार्यक्रम अमेरिका में उच्च-कुशल कार्यों के लिए अस्थायी श्रमिकों को लाने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसका दुरुपयोग अमेरिकी श्रमिकों की जगह लेने के लिए हो रहा है. H1-B कार्यक्रम में आईटी श्रमिकों का हिस्सा 2003 के 32 प्रतिशत से बढ़कर पिछले पांच वर्षों में 65 प्रतिशत से अधिक हो गया है. यह भारतीय अमेरिकी सफलता की कहानी का बड़ा हिस्सा है. ये H1-B वीजाओं पर सेवा देकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं और पूंजी का निर्माण कर रहे हैं. वास्तव में, अमेरिका भारत के सर्वश्रेष्ठ दिमागों का चुंबक रहा है, जो अमेरिकी ड्रीम जीने और अमेरिका के प्रतिभा बैंक को मजबूत करने के लिए आते हैं.

चाहे माइक्रोसॉफ्ट हो, मेटा, एपल, अमेजन, जेपी मॉर्गन, टीसीएस, गूगल, कॉग्निजेंट, डेलॉइट या वॉलमार्ट – इन सभी को भारतीयों का बड़ा आभार मानना चाहिए कि वे आज जो हैं उसमें उनका बहुत बड़ा योगदान है. भविष्य में भारतीयों को प्रवेश से रोकना इन अमेरिकी कंपनियों के हितों को नुकसान पहुंचाएगा, क्योंकि वे समकक्ष कुशल अमेरिकी प्रतिभा ढूंढने में संघर्ष करेंगी. भविष्य में यह एक विनाशकारी कदम साबित हो सकता है.

बड़ा सवाल- क्या भारत पर दबाव बनाने के लिए किया गया

ट्रंप प्रशासन ने भारत के खिलाफ कई कदम उठाए हैं जैसे 50 प्रतिशत टैरिफ और चाबहार पोर्ट पर प्रतिबंध छूट वापस लेने का निर्णय. वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल फिलहाल अमेरिका में है. वह भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए वहां गया है. पिछले सप्ताह भारत में दोनों पक्षों के वार्ताकारों के बीच हुई बातचीत में इस दिशा में प्रयास तेज करने का निर्णय लिया गया था.

इसलिए H1-B वीजा पर कार्रवाई की घोषणा का समय महत्वपूर्ण है. व्यापार समझौते की वार्ता में राष्ट्रीय हितों पर अडिग रहते हुए भारत को ट्रंप के H1-B निर्णय में मौके के तौर पर देखना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आत्मनिर्भरता की बात करते हैं. वह कहते हैं कि भारत को विश्व के सामने एक आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में मजबूत खड़ा होना चाहिए. यदि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना है तो आत्मनिर्भरता ही एकमात्र रास्ता है. लेकिन यह बड़ा बदलाव कैसे होगा? शीर्ष भारतीय दिमाग अमेरिकी तटों के बजाय देश में रहकर राष्ट्र के लिए काम करेंगे, यही वह पंप है जिसकी हमें जरूरत है. इसलिए, यह अंततः एक अवसर साबित हो सकता है.

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First Published :

September 22, 2025, 12:40 IST

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