Donald Trump: मुस्लिम देश को ट्रंप देंगे अपना सबसे घातक जेट, इजरायल का 'दुश्मन'; आखिर क्या है US का प्लान?

1 hour ago

Middle East Politics: मिडिल ईस्ट के पावर बैलेंस में एक नया चैप्टर खुलने वाला है. अब तक सिर्फ इजरायल ही मिडिल ईस्ट में इकलौता ऐसा देश था, जिसके पास अमेरिका में बना एफ-35 फाइटर जेट था. लेकिन अब उसको मिडिल ईस्ट में कड़ी चुनौती मिलने वाली है. दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फैसला किया है कि वह एफ-35 फाइटर जेट सऊदी अरब को बेचेंगे. दिलचस्प बात है कि इजरायल ने इस कदम का विरोध नहीं किया है. माना जा रहा है कि इसके पीछे कोई रणनीतिक अवसर है, जिसके आगे खतरा भी छोटा पड़ गया.

करीब 7 साल के बाद सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अमेरिका की धरती पर कदम रखा. लेकिन उनके आने से पहले ही ट्रंप ने ऐलान कर दिया कि वह एफ-35 जेट सऊदी अरब को बेचेंगे.  एफ-35 दुनिया के सबसे एडवांस फाइटर जेट में से एक माना जाता है. इसमें स्टील्थ टेक्नोलॉजी लगी है, जिससे यह दुश्मन की रडार की पकड़ में नहीं आता.

ट्रंप सऊदी को क्यों बेच रहे एफ-35?

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दरअसल ट्रंप जैसे माहिर सेल्समैन को देखते हुए, यह कदम यूं ही नहीं लिया गया है.अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस साल ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी मिसाइल हमलों में सऊदी अरब की मदद का श्रेय भी दिया. शायद ट्रंप यह जानते हैं कि वह क्या कर रहे हैं. अमेरिका का सबसे एडवांस जहाज सऊदी अरब को बेचने का फैसला बहुत बड़ा है. क्योंकि अतीत में उसका इजरायल के साथ युद्ध हो चुका है. दोनों के संबंध बेहद खराब हैं इसलिए सऊदी अरब और इजरायल के बीच कूटनीतिक रिश्ते भी नहीं हैं. 

लेकिन ट्रंप के कदम से लगता है कि उनका प्लान काफी बड़ा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रंप एफ-35 की बिक्री को एक जरिया बनाकर सऊदी अरब से इजरायल के साथ रिश्ते सामान्य करने को कह सकते हैं. 

अब्राहम समझौते में शामिल कराना मकसद

सबसे बड़ा इनाम सऊदी अरब को अब्राहम समझौते में शामिल कराना है, जिसने इजराइल और कुछ अरब देशों (यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान) के बीच राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाया. सऊदी अरब इस समझौते का हिस्सा नहीं है, जिस पर 2020 में ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान दस्तखत किए गए थे.

ट्रंप के सत्ता में वापस आने के बाद उन्होंने अब्राहम समझौते के विस्तार को अपने अहम लक्ष्यों में से एक बना लिया है और शायद अपने मंत्रिमंडल में एक और स्वघोषित शांति पुरस्कार जोड़ेंगे. 2025 में मिली अनदेखी के बाद, उनकी नजर 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार पर टिकी है.

यह फैक्ट कि इजराइल ने ट्रम्प के F-35 सौदे पर कोई आपत्ति नहीं जताई है, यह दिखाता है कि वह कूटनीतिक कोशिशों और दो साल से चल रहे गाजा युद्ध के बाद अरब देशों को अपने पक्ष में करने के लिए तैयार है. अमेरिका के अलावा, इजराइल को फलस्तीनी क्षेत्र में मानवाधिकार हनन के आरोपों के बीच दोस्त और सहयोगी बनाने में मुश्किल हो रही है.

क्या अब्राहम समझौते में शामिल होगा सऊदी?

हालांकि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि सऊदी अरब अब्राहम समझौते में शामिल होगा या नहीं. सऊदी अरब ने हमेशा सख्ती से कहा है कि वह इसमें शामिल तभी होगा, जब फलस्तीन राज्य की गारंटी का रास्ता साफ होगा. हालांकि इजराइल ने इस तरह के कदम का लगातार विरोध किया है.

चीन को लेकर क्या है ट्रंप का प्लान?

सऊदी अरब को लेकर ट्रंप के इस कदम के पीछे एक और भी कहानी है. अमेरिका का सऊदी अरब को पहले F-35 जेट विमान न देने के पीछे एक प्रमुख कारण यह आशंका थी कि इसकी संवेदनशील तकनीक चीन तक पहुंच सकती है.सऊदी अरब उन चंद देशों में है, जिसके चीन से अच्छे रिश्ते हैं. अब अपना बेस्ट जेट सऊदी अरब को देकर ट्रंप को उम्मीद है कि वह सऊदी को चीन के जाल से दूर कर पाएंगे.

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