Last Updated:June 20, 2025, 14:17 IST
DRDO Dhvani Hypersonic Glide Vehicle Project: भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) लगातार एक के बाद एक खतरनाक मिसाइल डेवलप कर रहा है, जिससे चीन-पाकिस्तान जैसे देशों की नींद उड़ी हुई. इस सीरीज में अब भ...और पढ़ें

हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल से फायर मिसाइल को ट्रैक कर पाना एयर डिफेंस सिस्टम के लिए काफी मुश्किल होगा. (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
DRDO हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल सिस्टम डेवलप करने में जुटा है6000 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा की होगी मिसाइल की रफ्तार S-500 जैसे एयर डिफेंस सिस्टम को भी चकमा देने में होगी सक्षमDRDO Dhvani Hypersonic Glide Vehicle Project: पड़ोसियों के मामले में भारत का भाग्य यूरोपीय देशों जितना अच्छा नहीं है. पश्चिम में देश की सीमा आतंकवादियों को पनाह देने वाले पाकिस्तान से लगती है तो पूरब और उत्तर में हमेशा हड़प नीति को फॉलो करने वाला चीन है. हाल में ही बांग्लादेश में जिस तरह से लोकतांत्रिक सरकार का गला घोंट कर मोहम्मद यूनुस ने सत्ता हथियाई है, उससे यह देश भी अब कट्टरपंथियों की गिरफ्त में जा रहा है. यूनुस की अगुआई वाला ढाका लगातार भारत के खिलाफ साजिशें रच रहा है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर ने कुछ दिनों पहले बीजिंग की यात्रा कर चीन को भारत की सीमा के करीब एयरपोर्ट डेवलप करने का न्यौता दिया है. चिकन नेक पर चीन की सालों पहले से नजर है और अब यूनुस ने ड्रैगन को यहां पैर जमाने का मौका दे दिया है. इन सब हालात को देखते हुए भारत के लिए एयर, लैंड और मैरीटाइम डिफेंस सिस्टम को मजबूत करना जरूरी हो गया है. पहलगाम अटैक दुश्मनों की चाल का ताजा उदाहरण है. ऐसे में भारत अब लगातार अपने डिफेंस सिस्टम को मजबूत करते हुए बॉर्डर को अभेद्य किला बनाने में जुटा है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी DRDO इसमें अहम भूमिका निभा रहा है. DRDO अब ऐसा हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम डेवलप कर रहा है, जिसे S-500, S-400 या फिर आयरन डोम जैसी एयर डिफेंस सिस्टम भी ट्रैक नहीं कर पाएगी.
DRDO ऐसा हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल विकसित कर रहा है, जिसकी मदद से 60 किलोमीटर की ऊंचाई (वायुमंडल का ऊपरी हिस्सा) से अत्यधिक रफ्तार वाली मिसाइलों को छोड़ा जा सकता है. डीआरडीओ की तरफ से हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन यह मिसाइल प्रणाली पारंपरिक के साथ ही न्यूक्लियर वॉरहेड ले जाने में सक्षम होगी. इसे ध्वनि हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल (Dhvani Hypersonic Glide Vehicle) का नाम दिया गया है. बता दें कि यह अल्ट्रा एज मॉडर्न टेक्नोलॉजी पर आधारित है, ऐसे में इसमें कई ऐसी खूबियां हैं, जो अन्य मिसाइलों में सामान्य तौर पर नहीं पाई जाती है. भारत के पास ब्रह्मोस के साथ ही अग्नि सीरीज की कई मिसाइलें हैं, जिनका रेंज अलग-अलग है. इनमें अग्नि-5 इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल है. इसकी रेंज 5800 किलोमीटर से भी ज्यादा है. सिक्योरिटी एक्सपर्ट की मानें तो इसकी अधिकतम रेंज 8000 से 12000 किलोमीटर तक हो सकती है. अब एचजीवी प्रोजेक्ट के तहत भारत विध्वंसक मिसाइलों की जखीरे में एक और मील का पत्थर शामिल करने की तैयारी में है.
हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल मिसाइल सिस्टम चार से पांच साल में इंडियन आर्म्ड फोर्सेज को सौंपने की योजना है. (फाइल फोटो)
खतरनाक स्पीड
DRDO जिस हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल को डेवलप कर रहा है, उसकी रफ्तार आवाज की गति से कई गुना ज्यादा होगी. गौर करने वाली बात यह है कि 5 मैक या उससे ज्यादा (यानी ध्वनि की गति से पांच गुना या उससे ज्यादा) की रफ्तार से ट्रैवल करने वाली मिसाइल, फाइटर जेट या फिर रॉकेट को हाइपरसोनिक कहा जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि DRDO की ओर से विकसित किए जा रहे हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल से फायर की जाने वाली मिसाइलें कम से कम 6000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ज्यादा तेज गति से दुश्मन पर प्रहार करेगी. इतनी तेज रफ्तार से अटैक करने की स्थिति में दुश्मनों को संभलने का भी मौका नहीं मिलेगा.
DRDO हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल मिसाइल सिस्टम डेवलप किया है. (फाइल फोटो)
3000 डिग्री सेल्सियस तापमान सहने की क्षमता
जानकारी के अनुसार, DRDO ने हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल को इस तरह से डिजाइन किया है कि वह अत्यधिक तापमान सहने में सक्षम है. बताया जा रहा है कि हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल 2000 से 3000 डिग्री सेल्सियस तक तापमान सहने में कैपेबल है. इसका मतलब यह हुआ कि अत्यधिक तापमान पर भी यह व्हिकल नहीं पिघलेगा. इससे इसकी क्षमता और भी बढ़ जाती है. 60 किलोमीटर की ऊंचाई से इसके माध्यम से हाइपरसोनिक मिसाइल को फायर किया जा सकता है. इस सिस्टम से दुश्मनों पर सटीक निशाना साधते हुए उसे पलभर में तबाह किया जा सकता है.
एयर डिफेंस सिस्टम को चकमा
सिक्योरिटी एक्सपर्ट की मानें तो ध्वनि हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल एयर डिफेंस सिस्टम को भी चकमा देने में सक्षम है. बताया जाता है कि इस सिस्टम के जरिये फायर की गई मिसाइल बीच रास्ते में अपनी दिशा बदल सकती है. हाइपरसोनिक स्पीड और बीच रास्ते दिशा बदलने की वजह से इस मिसाइल को S-400, S-500 या फिर आयरन डोम जैसी वायु रक्षा प्रणाली भी ट्रैक नहीं कर सकती है. ऐसे में यह और घातक हो जाता है. डीआरडीओ इस सिस्टम को साल 2029-2030 तक आर्म्ड फोर्सेज को ऑपरेशनल यूज के लिए सौंप सकता है. बताया जाता है कि इस मिसाइल की रेंज ICBM की तर्ज पर हो सकती है. हालांकि, डीआरडीओ की तरफ से इसको लेकर कुछ स्पष्ट नहीं किया है.
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
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