Last Updated:October 22, 2025, 10:43 IST
Bihar Chunav 2025 : इस बार बिहार का चुनावी मैदान पहले से अलग है. नारे वही हैं, मुद्दे मिलते-जुलते हैं, लेकिन चेहरों की अदला-बदली ने पूरी सियासत का स्वरूप बदल दिया है. एनडीए और महागठबंधन-दोनों ही बड़े गठबंधनों ने इस बार 'बदलाव के गणित' पर भरोसा जताया है. मौजूदा विधायकों में से करीब 27 प्रतिशत का टिकट काट दिया गया है, वहीं नए उम्मीदवारों को मौका देकर यह संकेत दिया गया है कि जनता की नाराजगी और एंटी-इंकम्बेंसी को गंभीरता से लिया गया है.

पटना. इस बार बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. एनडीए और महागठबंधन दोनों गठबंधनों ने पुराने चेहरों पर कैंची चलाते हुए नए उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है. जनता की नाराजगी और पिछली बार के एंटी-इंकम्बेंसी माहौल को देखते हुए, दोनों ने लगभग 27 फीसदी मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए हैं. भाजपा-जदयू ने 31 और राजद-कांग्रेस ने 36 विधायकों को दोबारा मौका नहीं दिया है. इसका मतलब साफ है कि इस बार का चुनाव सिर्फ दलों के बीच मुकाबला नहीं, बल्कि नए चेहरों और नई उम्मीदों का चुनाव बन गया है.
एनडीए में सहयोगियों को बड़ा हिस्सा
एनडीए ने सीट बंटवारे में इस बार पहले से ज्यादा लचीलापन दिखाया है और कुल 22 सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ी गई हैं. इनमें भाजपा और जदयू ने 10-10 सीटें और हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) ने 2 सीटें दी हैं. भाजपा ने जिन सीटों पर अपने सहयोगियों को मौका दिया है, उनमें बख्तियारपुर, मनेर, दरौली, बरौली, फतुहा और कहलगांव जैसी अहम सीटें शामिल हैं. वहीं जदयू ने बाजपट्टी, बेलसंड, कोचाधामन, महुआ, मढ़ौरा, तेघड़ा और नाथनगर जैसी पारंपरिक सीटें सहयोगियों को सौंपकर गठबंधन की एकजुटता का संदेश दिया है.
भाजपा-जदयू में टिकट कटौती की लहर
एनडीए के भीतर टिकट कटौती की सबसे बड़ी लहर भाजपा में देखने को मिली है. पार्टी ने इस बार 17 मौजूदा विधायकों को दोबारा मौका नहीं दिया, जिनमें रामसूरत राय, जयप्रकाश यादव, निक्की हेम्ब्रम, नंदकिशोर यादव, अमरेंद्र प्रताप सिंह और रश्मि वर्मा जैसे वरिष्ठ नाम शामिल हैं. जदयू ने भी इस बार आठ मौजूदा विधायकों को हटाया है. पार्टी ने जनता के मूड को भांपते हुए गोपाल मंडल, वीना भारती, दिलीप राय जैसे पुराने चेहरों को किनारे कर दिया और युवाओं पर भरोसा जताया.
महागठबंधन में भी बड़ा फेरबदल
उधर, विपक्षी महागठबंधन में भी बदलाव की बयार चली है. राजद ने अपने 31 मौजूदा विधायकों को टिकट से वंचित कर दिया, जबकि कांग्रेस ने 5 विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया. राजद ने इस बार भरत बिंद, मो. कामरान, भीम यादव और किरण देवी जैसे पुराने चेहरों को हटा दिया है. पार्टी ने यह संकेत दिया है कि अब युवाओं और साफ़ छवि वाले प्रत्याशियों पर दांव लगाया जाएगा. कांग्रेस ने भी इस बार बांकीपुर, लालगंज, राजगीर और बाढ़ जैसी सीटें अपने सहयोगियों के लिए छोड़ी हैं ताकि गठबंधन में तालमेल बना रहे.
महागठबंधन के नए चेहरे, युवाओं पर भरोसा
राजद ने 31 नए उम्मीदवारों को टिकट देकर ‘नई पीढ़ी का प्रयोग’ शुरू किया है. इनमें माला पुष्पम, रितु प्रिया चौधरी, पृथ्वी राय, शिवानी शुक्ला, डॉ. करिश्मा राय और फैसल रहमान जैसे युवा और शिक्षित चेहरे शामिल हैं. कांग्रेस ने भी अपने हिस्से की सीटों में से 10 नए उम्मीदवार उतारे हैं जिनमें शशांत शेखर, उमेर खान, ओम प्रकाश गर्ग और नलिनी रंजन झा प्रमुख हैं.
एनडीए में भी नई पीढ़ी का प्रवेश
एनडीए भी बदलाव की लहर से अछूता नहीं है. भाजपा ने 10 नए उम्मीदवारों को मौका दिया है, जिनमें गायिका मैथिली ठाकुर, रत्नेश कुशवाहा, सुजीत कुमार सिंह और रमा निषाद शामिल हैं, यानी पार्टी इस बार युवा और जनप्रिय चेहरों से जनता तक सीधा कनेक्शन बनाने की कोशिश में है. जदयू ने भी 24 नए प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, जिनमें कविता साह, अतिरेक कुमार, अभिषेक कुमार और सोनम रानी सरदार के नाम खास तौर पर चर्चा में हैं. लोजपा (रामविलास) ने अपने हिस्से की 29 सीटों में से 10 पर नए उम्मीदवारों को मौका दिया है, जबकि वीआईपी पार्टी ने 8 नए चेहरों पर भरोसा जताया है जिनमें नवीन कुमार, अपर्णा मंडल और गणेश भारती सदा शामिल हैं.
जनता की नब्ज पर ध्यान, बदलाव का संकेत
2025 का यह चुनाव सिर्फ सत्ता बदलने का नहीं, बल्कि सियासी सोच बदलने का भी संकेत है. दोनों गठबंधनों ने यह समझ लिया है कि जनता अब चेहरों के साथ-साथ छवि भी देखती है. जहां एक ओर पुराने विवादित चेहरों को टिकट से दूर रखा गया है, वहीं युवा, शिक्षित और नए उम्मीदवारों को आगे लाकर यह संदेश दिया गया है कि बदलाव ही अब जीत का मंत्र है.
बिहार चुनाव में ‘नया प्रयोग’ क्या रंग लाएगा?
बिहार की सियासत में प्रयोगों की कमी नहीं रही, लेकिन इस बार का ‘नया प्रयोग’ सबसे बड़ा है -जब दोनों प्रमुख गठबंधनों ने लगभग एक-तिहाई विधायकों को बदल डाला. अब सवाल यह है कि क्या यह बदलाव जनता को पसंद आएगा या फिर पुराने चेहरों की अनुपस्थिति में संगठनात्मक पकड़ कमजोर पड़ेगी? 6 और 11 नवंबर को होने वाले मतदान के बाद ही यह तय होगा कि बदलाव की बयार बिहार की राजनीति में नई दिशा लाएगी या पुराने समीकरण ही हावी रहेंगे. इंतजार 14 नवंबर का कीजिए जब बिहार चुनाव के परिणाम आएंगे.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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First Published :
October 22, 2025, 10:43 IST