Last Updated:November 01, 2025, 10:38 IST
71 साल पहले आज ही के दिन पुडुचेरी का भारत में विलय हो गया था. फ्रांस का उस पर करीब 300 सालों तक कब्जा रहा. कैसे बहुत शांतिपूर्ण तरीके से इसे भारत में मिलाया गया. इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू की क्या भूमिका थी.

आज पुडुचेरी की भारत में विलय की वर्षगांठ है. 71 साल पहले पांडिचेरी को फ्रांस ने शांतिपूर्ण तरीके से भारत को लौटा दिया. लेकिन करीब 300 सालों तक वो यहां बने रहे. यहां से पूरी दुनिया में मसालों के व्यापार करते रहे. पूरे भारत पर ब्रिटेन का राज था लेकिन पुडुचेरी और गोवा जैसे इलाकों पर फ्रांस और पुर्तगाल लंबे समय से काबिज थे. आखिरकार वो दिन 1 नंवबर 1954 को आया जबकि फ्रांस ने ये इलाका वापस लौटा दिया. ये काफी शांतिपूर्ण तरीके से हुआ. इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू की भी अपनी भूमिका थी. (news18)

फ्रांसीसी व्यापारी 17वीं सदी की शुरुआत में भारत पहुंचे थे. इंग्लैंड और पुर्तगाल की तरह फ्रांस ने भी 1664 में अपनी ईस्ट इंडिया कंपनी बनाई. इसका उद्देश्य एशिया, विशेष रूप से भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापार करना था. 1668 में उन्होंने भारत के पश्चिमी तट (सूरत) में व्यापार की कोशिश की पर ब्रिटिशों का दबदबा बहुत था. 1674 में फ्रांसीसी गवर्नर फ्रांकोइस मार्टिन ने शिवाजी महाराज के अधीनस्थ स्थानीय नायक से पांडिचेरी के एक छोटे से गांव को पट्टे पर लिया. यहीं से पांडिचेरी में फ्रांसीसी शासन की नींव पड़ी.(wiki commons)

फ्रांकोइस मार्टिन और बाद में गवर्नर जोसेफ फ्रांकोइस डुपलीक्स ने पांडिचेरी को एक व्यापारिक और प्रशासनिक केंद्र बना दिया. डुपलीक्स ने स्थानीय राजनीति में भी हस्तक्षेप शुरू किया. दक्षिण भारत में ब्रिटिश प्रभाव को चुनौती दी. पांडिचेरी में यूरोपीय शैली की इमारतें, सड़कें और चर्च बने. यहां से फ्रांसीसी सेनाएं ब्रिटिशों से कई बार भिड़ीं. 1748-1761 के बीच तीन बार पांडिचेरी पर कब्जे बदले - ब्रिटिशों ने इसे जीता, फिर पेरिस संधि के तहत लौटाया गया. (wiki commons)

1763 की पेरिस संधि ने तय कर दिया कि भारत में ब्रिटिश ही प्रमुख औपनिवेशिक शक्ति रहेंगे लेकिन फ्रांस को केवल कुछ व्यापारिक इलाके रखने की अनुमित होगी, जैसे पांडिचेरी, चंदननगर, माहे, करैकल और यानम. ब्रिटिश शासन के दौरान भी पांडिचेरी एक “फ्रेंच एनक्लेव” बना रहा.यहां फ्रांसीसी प्रशासन, स्कूल, चर्च और नागरिक कानून व्यवस्था बनी रही. सांस्कृतिक रूप से फ्रेंच पहचान बरकरार रही. यहां फ्रेंच भाषा बोली जाती थी. आज भी उस शैली के आर्किटैक्ट का यहां असर है. खानपान पर भी ये प्रभाव दिखता है.

1947 में जब भारत आजाद हुआ, तो पांडिचेरी और अन्य फ्रांसीसी क्षेत्र फ्रांस के ही अधीन थे. भारत के नेताओं का मानना था कि औपनिवेशिक युग का पूरा अंत तभी होगा जब ये छोटे-छोटे विदेशी ठिकाने भी भारतीय संघ में शामिल होंगे. फ्रांस ने शुरुआत में यह तर्क दिया कि पांडिचेरी के लोग खुद निर्णय लें कि वे भारत के साथ जुड़ना चाहते हैं या नहीं. इस बीच भारत और फ्रांस के बीच राजनयिक बातचीत शुरू हुई.

जवाहरलाल नेहरू तब भारत के प्रधानमंत्री थे. वह जानते थे कि ब्रिटिश चले गए हैं, लेकिन अब भारत को बाकी औपनिवेशिक ताकतों से संबंध बगैर बिगाड़े अपने क्षेत्रीय एकीकरण को पूरा करना है. नेहरू ने बल प्रयोग से बचने का निर्णय लिया. उन्होंने कहा, “भारत ने स्वतंत्रता अहिंसक तरीकों से प्राप्त की है, इसलिए हम किसी पर भी जबरदस्ती नहीं करेंगे.” (फाइल फोटो)

उन्होंने फ्रांसीसी सरकार से बातचीत का रास्ता अपनाया. 1948 और 1949 में दोनों देशों के बीच वार्ता हुई कि फ्रेंच एन्क्लेव्स में जनमत-संग्रह कराया जाना चाहिए. चंदननगर (बंगाल में) के लोगों ने पहले ही भारत के साथ जुड़ने का मन बना लिया था. वहां 1949 में जनमत-संग्रह हुआ. 97% लोगों ने भारत के पक्ष में वोट दिया. फ्रांस ने चंदननगर को 1950 में भारत को सौंप दिया. पांडिचेरी, करैकल, माहे और यानम में स्थिति थोड़ी जटिल थी. यहां फ्रांसीसी भाषा और संस्कृति का प्रभाव गहरा था. कई लोग दोहरी नागरिकता चाहते थे. (wiki commons)

पांडिचेरी में धीरे-धीरे “फ्रेंच शासन के खिलाफ” आंदोलन शुरू हुआ. 1948 से 1954 तक हजारों लोग सड़कों पर उतरे. भारत जिंदाबाद के नारे लगे. भारतीय ध्वज फहराने पर फ्रेंच प्रशासन ने कई बार बल प्रयोग किया, जिससे तनाव बढ़ा. नेहरू ने इस आंदोलन को नैतिक समर्थन दिया, लेकिन सरकारी स्तर पर धैर्य रखा ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि एक शांतिपूर्ण राष्ट्र की बनी रहे. 1954 में भारत और फ्रांस के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ. 21 अक्टूबर 1954 को पांडिचेरी, करैकल, माहे और यानम में स्थानीय प्रतिनिधियों ने भारत के पक्ष में मतदान किया. 1 नवंबर 1954 के दिन इसका भारत में विलय हो गया.

नेहरू ने इस दिन को भारत के “राष्ट्रीय एकीकरण” की बड़ी उपलब्धि बताया.उन्होंने कहा, “आज भारत का एक और टुकड़ा मातृभूमि में लौट आया है, बिना संघर्ष, बिना खून-खराबे के.” हालांकि 1954 में प्रशासन भारत को मिल गया था लेकिन कानूनी रूप से फ्रांस ने इसे अपने दस्तावेजों में 1962 तक रखा. 1962 में दोनों देशों के बीच अधिग्रहण संधि पर हस्ताक्षर हुए. फ्रांसीसी संसद ने मंजूरी दी. इस तरह पांडिचेरी औपचारिक रूप से भारत का हिस्सा बन गया.

अब पुडुचेरी में चार जिले हैं. पांडिचेरी, करैकल, माहे और यानम. नेहरू की भूमिका के चलते भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक जिम्मेदार और शांतिप्रिय लोकतंत्र की पहचान मिली. फ्रांस के साथ संबंध भी बिगड़े नहीं, बल्कि आगे चलकर दोनों देशों के बीच defense cooperation और cultural exchange मजबूत हुए.

यहाँ का मुख्य केंद्र अरविंद आश्रम है. ये यहां का आकर्षण है. समुद्र के किनारे उसके अलग अलग कई भवनों में आश्रम हैं. इन्हीं में एक भवन में श्रीअरविंद की समाधि है. इसी भवन में श्रीअरविंद ने 25 वर्ष साधनामय जीवन गुजारा. यहां आकर लोग इस भवन में उन्हें महसूस करने की कोशिश करते हैं. इसमें एक अलग सी शांति महसूस होती है. महान् संत, कवि तथा भारतीय आध्यात्मिकता के महान प्रवर्तक श्री अरविंद एक जमाने में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारी थे लेकिन बाद में उनका जीवन एकदम बदल गया. (courtesy aurovindo ashram)

यहां 70 से ज्यादा दर्शनीय मंदिर हैं तो कई सुंदर चर्च. पांडिचेरी को फ्रांसीसी पेरिस ऑफ साउथ कहते थे. इसे भारत का लिटिल फ्रांस या यूरोप ऑफ इंडिया भी कहते हैं. पांडिचेरी का सबसे खूबसूरत समुद्र तट प्रोमेनेड बीच है, इसे सी-रॉक बीच भी कहा जाता है. ये काफी चौड़ा और साफ सुथरा खूबसूरत है. सुबह और शाम के समय लोग यहां वॉक करते हैं. इस बीच पर कई स्टेच्यू हैं, जिसमें गांधीजी की भी 13 मीटर ऊंची प्रतिमा है. (wiki commons)

पांडिचेरी दो इंडिपेंडेंस डे मानता है. यहां नेशनल इंडिपेंडेंस डे 15 अगस्त की बजाए 16 अगस्त को मनाया जाता है जबकि 01 नवंबर को लिब्रेशन डे मनाया जाता है. 01 नवंबर को पांडिचेरी का भारत में विलय हो गया था. वैसे यहां फ्रांस का राष्ट्रीय दिवस यानि बेसिल डे भी मनाया जाता है, जो 14 जुलाई को होता है. तब यहां की सड़कों पर भारतीय और फ्रांसीसी राष्ट्रगान के साथ सैनिक मार्च करते हैं.<br />(wiki commons)

पांडिचेरी में मानसून सबसे आखिर में अक्टूबर में आता है और नवंबर तक रहता है जबकि देश के दूसरे हिस्सों में ये जून से लेकर सितंबर तक सक्रिय रहता है. इस लिहाज यहां मानसून तब हाजिरी देता है जबकि पूरे देश में उसका काम खत्म हो चुका होता है. (wiki commons)

पांडिचेरी के करीब ओरोविल (Auroville) एक कम्युनिटी कम्यून है. इसकी स्थापना 1968 में मीरा रिचर्ड (मां) ने की. इसकी रूपरेखा वास्तुकार रोजर ऐंगर ने तैयार की थी. ओरोविल की कल्पना ऐसी वैश्विक नगरी और कम्यून के तौर पर की गई, जहां सभी देशों के स्त्री-पुरुष सभी जातियों, राजनीति तथा सभी राष्ट्रीयता से ऊपर उठकर शांति एवं प्रगतिशील सद्भावना की छांव में रह सकें. ये जगह काफी हद तक उस परिकल्पना को पूरी भी करती है. (wiki commons)
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