Last Updated:September 11, 2025, 08:46 IST
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट में राज्यपालों की शक्तियों और विधेयकों पर सहमति को लेकर तुषार मेहता ने संविधान की व्याख्या, संसद के अधिकार और सहयोगात्मक शासन पर जोर दिया है.

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट में राज्यों और राज्यपालों के बीच विधेयकों पर सहमति को लेकर चल रहे संवैधानिक विवाद ने एक बार फिर संविधान की व्याख्या और राज्यपालों की शक्तियों पर गहन बहस को जन्म दिया है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से तर्क देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान की व्याख्या तक सीमित रहना चाहिए और यह राजनीतिक क्षेत्र के हर मुद्दे का समाधान करने वाला ‘हेडमास्टर’ नहीं है. उन्होंने यह बात नौ दिनों तक चली एक रोमांचक संवैधानिक बहस के दौरान कही, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई के लिए समय-सीमा तय करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आठ अप्रैल के फैसले और इसके बाद राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए संदर्भ पर चर्चा हुई.
मेहता ने चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्याकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की पांच जजों वाली संविधान पीठ के समक्ष कहा कि संसद को संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार ‘मूल ढांचे’ के अधीन है. उन्होंने तर्क दिया कि यदि अदालतें किसी प्रावधान का अर्थ उसके पाठ्य या संरचनात्मक सीमाओं से परे विस्तार करती हैं, तो यह न्यायपालिका को संसद के समकक्ष शक्ति प्रदान करेगा, जो संविधान निर्माताओं के इरादे के विपरीत होगा. मेहता ने जोर देकर कहा कि ऐसी कार्रवाई संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ होगी.
बिल पर बैठे नहीं रह सकते राज्यपाल
हालांकि, मेहता ने केंद्र की ओर से यह स्वीकार किया कि राज्यपाल किसी विधेयक पर अनिश्चितकाल तक बैठे नहीं रह सकते. उन्होंने यह भी कहा कि संविधान ने राज्यपालों को विधेयकों पर सहमति देने, असहमति जताने, उसे पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस करने या राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करने का विवेकाधीन अधिकार दिया है. उन्होंने विपक्ष शासित राज्यों के इस तर्क का खंडन किया कि राज्यपाल केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करने वाला एक औपचारिक प्रमुख है. मेहता ने कहा कि इस तरह का तर्क एक गलत राजनीतिक कैनवास प्रस्तुत करता है, जो अदालत को संसद के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने और राज्यपालों की शक्तियों को सीमित करने के लिए प्रेरित करता है.
मेहता ने संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता की सराहना करते हुए कहा कि राज्यपालों को विधेयक पर सहमति रोकने का अधिकार इसलिए दिया गया ताकि वे संवैधानिक व्यवस्था और अर्ध-संघीय शासन की रक्षा कर सकें. उन्होंने 2004 में पंजाब विधानसभा द्वारा पारित उस विधेयक का उदाहरण दिया, जिसमें पंजाब ने हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के साथ जल-बंटवारे के समझौते को एकतरफा रद्द करने का प्रयास किया था. मेहता ने सवाल उठाया कि क्या राज्यपाल को, जिसे कुछ राज्य केवल मंत्रिपरिषद के हाथों में रबर स्टैंप मानते हैं, ऐसे विधेयक को मंजूरी दे देनी चाहिए थी, जो अंतर-राज्यीय, संघीय और भारत-पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित करता? इस मामले में राज्यपाल ने विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया, जिसने बाद में सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी.
94 फीसदी विधेयकों को मंजूरी
उन्होंने आंकड़े पेश करते हुए बताया कि 1970 के बाद से राज्यों के राज्यपालों को 17,150 विधेयक प्रस्तुत किए गए, जिनमें से केवल 20 पर सहमति रोकी गई. इसके अलावा 933 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया गया और 16,122 (94%) विधेयकों को सहमति दी गई, जिनमें से 14,402 को एक महीने के भीतर, 623 को तीन महीने में और 126 को छह महीने में मंजूरी मिली. मेहता ने तर्क दिया कि यह आंकड़ा भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और संवैधानिक प्रावधानों के पालन को दर्शाता है.
मेहता ने केरल सरकार के इस विचार से सहमति जताई कि राज्यपाल और राज्य सरकार को सहयोगात्मक रूप से काम करना चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद के लिए मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए. उन्होंने जोर दिया कि राज्यों द्वारा उठाए गए अधिकांश मुद्दों का समाधान प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रियों और राज्यपाल या राष्ट्रपति के बीच परामर्श से हो सकता है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है.
न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें
न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...
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First Published :
September 11, 2025, 08:31 IST