Last Updated:September 06, 2025, 17:52 IST
महागठबंधन में सीटों का बंटवारा, सीएम चेहरा और संख्या पर विवाद जारी है. कांग्रेस, आरजेडी, सीपीआई-एमएल, वीआईपी समेत दलों में सहमति नहीं बन पाई है, NDA से मुकाबला चुनौतीपूर्ण है.

बिहार की सियासत में विपक्षी महागठबंधन ने वोटर अधिकार यात्रा के जरिए माहौल बनाने की कोशिश तो पूरी कर ली, लेकिन अभी भी असली इम्तिहान सामने है. यात्रा के समापन के बाद सभी दल लगातार बैठकें कर रहे हैं, फिर भी तीन अहम मुद्दों पर पेंच बरकरार है. यह मुद्दे हैं सीएम का चेहरा, सीटों की संख्या और किसे कौन सी सीट मिले. यही तीन सवाल तय करेंगे कि महागठबंधन NDA को कितनी टक्कर देगा.
डेड सीट नहीं चाहिए
बड़ा झगड़ा सीटों को लेकर है. कांग्रेस का मानना है कि पिछली बार उनके खाते में ज्यादातर वैसी सीटें आई जिन्हें पिछले कई चुनावों से न तो कांग्रेस और न ही आरजेडी जीत पाई. ऐसे में कांग्रेस की रणनीति है कि इस बार उन्हें केवल “जिताऊ सीटें” मिलनी चाहिए. यानी उन इलाकों में टिकट जहां उनकी पकड़ और संभावनाएं मजबूत हों.
क्या हो सकता है सीटों का समीकरण?
वहीं सीटों की कुल संख्या का समीकरण भी मुश्किल पैदा कर रहा है. सीपीआई-एमएल ने 40 सीटों की मांग कर दी है. दूसरी तरफ मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी की एंट्री से तालमेल और पेचीदा हो गया है. फिलहाल अनुमानित फार्मूले के हिसाब से आरजेडी को 135-140, कांग्रेस को 50-60, सीपीआईएमएल को 20-25, वीआईपी को 18-20, जबकि सीपीएम और सीपीआई को 2-2 सीटें मिल सकती हैं. लेकिन अभी तक अंतिम सहमति नहीं बन पाई है.पिछली बार 2020 विधानसभा चुनाव में आरजेडी 144 सीटों पर, कांग्रेस 70 पर, सीपीआईएमएल 19 पर, सीपीएम 4 पर और सीपीआई 6 सीटों पर लड़ी थी. इस बार के समीकरण बदलने तय हैं और कांग्रेस इसे लेकर खुलकर दबाव बना रही है.
सीएम चेहरे पर राहुल-तेजस्वी में अनकही दूरी
महागठबंधन के भीतर यह बात मान ली गई है कि सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी है और ऐसे में चेहरा तेजस्वी यादव ही होंगे. लेकिन वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी का सीएम चेहरे पर सवाल टाल जाना और तेजस्वी का राहुल की मौजूदगी में खुद को मुख्यमंत्री बताना, दोनों पार्टियों की सोच में फर्क दिखाता है. कांग्रेस यह दोहराती रही है कि “चेहरे का सवाल मीडिया का है”, लेकिन असलियत यह है कि पार्टी चाहती है कि राहुल की मौजूदगी में तेजस्वी का प्रोजेक्शन हल्का रखा जाए. यह बारीक खींचतान आगे चलकर बड़ा विवाद भी बन सकती है.
छोटे दल मांग रहे ज्यादा सीट
सीटों का बंटवारा और सीएम चेहरा ही नहीं, संख्या का गणित भी महागठबंधन को मुश्किल में डाल रहा है. जितनी पार्टियां बढ़ेंगी, उतना तालमेल मुश्किल होगा. वीआईपी की एंट्री के बाद अन्य छोटे दल भी अपने-अपने हिस्से की दावेदारी बढ़ा रहे हैं. आरजेडी हालांकि इस स्थिति में है कि बड़े हिस्से पर दावा करे, लेकिन उसे सहयोगियों को साधना भी जरूरी है.
NDA से मुकाबले के लिए जरूरी ‘एकता’
महागठबंधन वोटर अधिकार यात्रा के बाद जरूर उत्साहित है. लेकिन दबी जुबान में सभी मान रहे हैं कि अगर सीटों का बंटवारा, संख्या का तालमेल और सीएम चेहरे पर समय रहते सहमति नहीं बनी, तो NDA से टक्कर मुश्किल हो जाएगी. वहीं अगर तीनों मुद्दों पर स्पष्ट सहमति बन गई, तो महागठबंधन सत्ता की राह काफी आसान कर सकता है. यानी बिहार में महागठबंधन की अगली लड़ाई अब जनता के बीच नहीं, बल्कि आपस में बैठकों और समीकरणों की टेबल पर तय होगी.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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First Published :
September 06, 2025, 17:52 IST