पटना. निर्दलीय सांसद रहते हुए पप्पू यादव ने इस चुनाव को अपने प्रभाव का इम्तिहान बना दिया था. उन्होंने एग्जिट पोल्स को झूठा बताया, महागठबंधन की ऐतिहासिक जीत का दावा किया और सीमांचल में अपनी पकड़ को निर्णायक बताया. लेकिन नतीजे जब सामने आए तो पता चला कि उनका पूरा राजनीतिक नैरेटिव धराशायी हो चुका था. पूर्णिया की छह सीटों से लेकर सीमांचल की 24 सीटों तक, कहीं भी उनके दावे जमीन पर उतरते नहीं दिखे. बिहार चुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव का दावा, वास्तविकता से मेल नहीं खाता है. महागठबंधन के पक्ष में ‘भीषण लहर’ का दावा करने वाले पप्पू अपने ही संसदीय क्षेत्र पर प्रभाव नहीं छोड़ सके. पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों- कसबा, बनमनखी, रुपौली, धमदाहा, पूर्णिया और कोढ़ा पर एनडीए ने क्लीन स्वीप कर दिया और महागठबंधन को एक भी सीट नहीं मिली.
जनता का आईना, दावा बनाम हकीकत
पप्पू लगातार कहते रहे कि महिलाएं और युवा NDA को साफ कर देंगे, मुसलमान एकजुट होकर महागठबंधन का साथ देंगे, पिछड़े और वंचित वर्ग उनके कहने पर ही वोट करेंगे… लेकिन पूर्णिया जिले की सात सीटों में एनडीए की पांच सीटों पर जीत और दो सीटें AIMIM के खाते में जाना, यह बताता है कि चुनावी मैदान के मुकाबले में पप्पू यादव का नाम कहीं था ही नहीं. स्थानीय नेताओं का प्रभाव, बूथ प्रबंधन और जमीनी संगठन ने चुनाव को पूरी तरह एनडीए के पक्ष में मोड़ दिया. धमदाहा से लेसी सिंह की छठी जीत और रूपौली से कलाधर मंडल की भारी जीत यह भी दिखाती है कि पप्पू यादव का प्रभाव सिर्फ सोशल मीडिया और बयानबाजी तक सीमित रहा.
पूर्णिया जिले में एनडीए का दबदबा
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया है. पप्पू यादव ने चुनाव पूर्व एग्जिट पोल्स को झूठा बताते हुए महागठबंधन की जीत का दावा किया था, लेकिन परिणाम उलट आए. एनडीए ने पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों पर क्लीन स्वीप किया, जबकि महागठबंधन को एक भी सीट नहीं मिली. एनडीए ने पूर्णिया जिले की 7 सीटों में से 5 सीटें जीतीं, जिनमें पूर्णिया सदर, रूपौली, धमदाहा, बनमनखी और कसबा शामिल हैं. धमदाहा से जदयू प्रत्याशी लेसी सिंह ने 55159 वोट से जीत दर्ज की जो उनकी लगातार छठी जीत है.
एनडीए और AIMIM ने मजबूत पकड़ दिखाई, असदुद्दीन ओवैसी चर्चा में.
पप्पू को झटका, AIMIM की बढ़ती ताकत
सीमांचल क्षेत्र में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इसे मुस्लिमों की एकजुटता बताया और महागठबंधन की अहंकार के खिलाफ विद्रोह कहा. पप्पू यादव के दावे कि वे सीमांचल के ‘सिरमौर’ हैं, दावे ही रह गए. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने अमौर, बहादुरगंज, कोचाधमान, जोकीहाट और बैसी-कुल पांच सीटें जीत लीं. दो सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही. AIMIM ने 29 में से 24 सीटों पर फोकस किया और 2020 की पांच सीटें वापस छीनीं. पप्पू यादव का यह दावा कि वे सीमांचल में वह ‘क्षेत्रीय नेता और मुस्लिम-यादव के स्वाभाविक प्रतिनिधि’हैं, उस मिथक को भी AIMIM ने पूरी तरह तोड़ दिया.
सीमांचल का सबक…ओवैसी ने चुराया ठाठ!
राजनीति के जानकारों का मानना है कि पप्पू यादव की सबसे बड़ी कमजोरी यह रही कि उन्होंने खुद को एक बड़े क्षेत्रीय नेतृत्वकर्ता के रूप में प्रोजेक्ट किया, लेकिन उनका संगठन और राजनीतिक नेटवर्क इतनी बड़ी दावेदारी के अनुरूप नहीं था. दूसरी ओर असदुद्दीन ओवैसी ने लगातार जमीनी उपस्थिति, स्थानीय मुद्दों और समुदाय-आधारित नेटवर्क से अपनी पकड़ मजबूत की. यह अंतर नतीजों में साफ दिखा. यह साफ इशारा है कि सीमांचल के मुस्लिम वोटरों ने महागठबंधन के खिलाफ AIMIM को विकल्प माना न कि पप्पू यादव के इलाकायी नेता होने के दावे को.
बिहार चुनाव 2025 में पूर्णिया और सीमांचल में पप्पू यादव के दावे फेल, धुर विरोधी संतोष कुशवाहा के साथ हुए पर जीत दिलाने में सफल नहीं हो पाए.
पप्पू यादव की चुनाव बाद की प्रतिक्रिया
जनता ने जिस तरह महिला मतदान, विकास और NDA की स्थिरता को प्राथमिकता दी, उससे स्पष्ट है कि सिर्फ भाषणों और दावों से नेतृत्व स्वीकार नहीं होता. यह चुनाव पप्पू यादव के लिए एक चेतावनी है कि प्रभाव का दावा और वास्तविक प्रभाव, दोनों अक्सर अलग दिशा में चलते हैं. इस चुनाव ने पप्पू यादव को एक सख्त संदेश दिया है-राजनीति न तो शोर से चलती है, न कल्पना से… हकीकत की जमीन पर संगठन, भरोसा, स्थानीय नेतृत्व और मतदाताओं की धड़कन को समझना ही सफलता की कुंजी है. बिहार की जनता ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि जनता दावों पर नहीं, काम और भरोसे पर वोट देती है.

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