सचिन पायलट की 'संतुलन वाली राजनीति', जानें भविष्य के क्या नए संकेत दे रही है?

14 hours ago

Last Updated:June 06, 2025, 14:28 IST

Sachin Pilot Politics : राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट विपक्ष की नई परिभाषा बनते जा रहे हैं. वे तीखे मुद्दों को भी शालीन भाषा में रखते हैं और जनभावना के साथ जुड़ते हैं. पायलट की ‘संतुलन की राजनीति’ उन्हें ख...और पढ़ें

सचिन पायलट की 'संतुलन वाली राजनीति', जानें भविष्य के क्या नए संकेत दे रही है?

सचिन पायलट आजकल जिस तरह से ‘पॉइंटेड लेकिन पॉजिटिव’ आलोचना करते हैं वो उनकी छवि को 'प्रो-कंस्ट्रक्टिव' विपक्षी नेता के रूप में मजबूत करता है.

हाइलाइट्स

सचिन पायलट की संतुलित राजनीति उन्हें खास बनाती है.पायलट बिना व्यक्तिगत हमले के मुद्दों पर बात रखते हैं.पायलट की शैली युवाओं को आकर्षित कर रही है.

Sachin Pilot Balanced Politics. राजस्थान की राजनीति में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट एक ऐसे नेता बनकर उभर रहे हैं जो विपक्ष के तौर पर सधी हुई आवाज से सत्ता को घेर रहे हैं. वे ऐसा करते हुए ना तो उग्र हो रहे हैं और ना ही निजी हमला कर रहे हैं. यही बात उन्हें भीड़ से अलग करती है. मौजूदा राजनीति में तीखा बोलना, सोशल मीडिया पर ट्रेंड होना और सनसनीखेज बयान देना ‘नॉर्म’ बन चुका है. लेकिन सचिन पायलट की वर्तमान रणनीति ‘संतुलन की राजनीति’ के रूप में सामने आ रही है. वे वही बातें कह रहे हैं जो आमजन सुनना चाहता है. वे जिस भाषा और अंदाज में अपनी बात कहते हैं वह बेहद संतुलित नजर आती है.

मामला चाहे भारत की ओर से पाकिस्तान की खिलाफ किए गए ऑपरेशन सिंदूर का हो या फिर कश्मीर का मुद्दा. मामला चाहे केन्द्र या राज्य की सरकार से जुड़े मसलों का हो या फिर पार्टी की अंदरुनी राजनीति का. पायलट सभी मुद्दों पर बेहद संयमित तरीके से अपनी बात रख रहे हैं. उनका यह अंदाजा लोगों को खास भा रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के मसले पर चाहे संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग हो या फिर सीज फायर पर ट्रैंप का बयान. वे हर मसले पर सेना के साहस और शौर्य को सलाम करते हुए सैन्य कार्रवाई की भरपूर प्रशंसा करते हैं. लेकिन साथ ही केन्द्र सरकार को घेरने और सीज फायर पर जवाब मांगने से भी नहीं चूकते हैं.

बिना किसी पर व्यक्तिगत लांछन लगाए पूरी बात कह देना है उनकी रणनीति का नया हिस्सा है.

संतुलन की राजनीति का संकेत
सचिन पायलट की राजनीति का यह संतुलन दर्शाता है कि वे न केवल विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि भविष्य के बड़े नेता की तरह भाषा पर पूरी तरह नियंत्रण भी दिखा रहे हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में यह भी कहा था कि राजनीति में संयम और संवाद दोनों जरूरी हैं. लोकतंत्र में विरोध का मतलब दुश्मनी नहीं होता. शायद यही विचार उन्हें खास बनाता है. पायलट ने हाल ही में राजस्थान सरकार के कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा की ओर से खाद-बीज की छापेमारी पर सवाल उठाए और कहा था कि मंत्री छापे मार रहे है लेकिन पता नहीं किसे बेनकाब कर रहे हैं. राजनीति के जानकारों का मानना है कि पायलट अब कम शब्दों में गहरी बात कहते हैं. बिना किसी पर व्यक्तिगत लांछन लगाए पूरी बात कह देना है उनकी रणनीति का नया हिस्सा है. उनके राजनीतिक हमले किसी को नीचा नहीं दिखाते लेकिन घाव गहरा कर जाते हैं. उनकी बातें राजनीति में रुचि रखने वाले जनमानस के दिमाग में सटीक प्रभाव डाल रही है.

‘पॉइंटेड लेकिन पॉजिटिव’ आलोचना
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो पायलट जिस तरह से ‘पॉइंटेड लेकिन पॉजिटिव’ आलोचना करते हैं वो उनकी छवि को ‘प्रो-कंस्ट्रक्टिव’ विपक्षी नेता के रूप में मजबूत करता है. राजस्थान जैसे राज्य में जहां जातीय राजनीति, गुटबाजी और तीखे भाषण आम हैं. वहां सचिन का यह संतुलन उन्हें बाकी नेताओं से अलग करता है. सचिन पायलट का यह तरीका शायद राज्य और देश में एक नई राजनीति की नींव है, जहां मुद्दों पर बात होगी, लेकिन बिना कटुता के. विरोध तो होगा लेकिन गरिमा के साथ.

सचिन पायलट की भाषा में राजनीतिक विरोध भी सम्मानजनक हो सकता है.

राजनीतिक विरोध भी सम्मानजनक हो सकता है
पायलट की यह सोच और शैली आने वाले वक्त में युवाओं को और आकर्षित कर सकती है. पब्लिक भी अब नेताओं में संवाद, समझ और संयम की उम्मीद रखती हैं. शायद इसीलिए पायलट अपने समर्थकों में सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि भरोसे की आवाज बनकर उभर रहे हैं. सचिन पायलट की राजनीति से साफ जाहिर हो रहा है कि राजनीतिक विरोध भी सम्मानजनक हो सकता है. असहमति का मतलब उग्रता नहीं होता है. भारत की युवा पीढ़ी को अब ऐसे ही नेतृत्व की तलाश है जो साफ बोले लेकिन शालीनता से. विरोध करे लेकिन बिना शत्रुता के.

पायलट की ये टिप्पणियां महज निजी विचार नहीं मानी जा रही
राजनीति के विश्लेषकों का कहना है कि पायलट के ये बयान कांग्रेस को ‘हर बात का विरोध’ करने वाली छवि से बाहर निकालने की कोशिश भी हो सकता है. खासकर जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा की हो तो जनता अब सिर्फ आलोचना नहीं समाधान चाहती है. पायलट के शब्दों में यह झलक स्पष्ट दिखती है. ऐसे में सचिन पायलट की ये टिप्पणियां महज निजी विचार नहीं मानी जा रही, बल्कि इसे कांग्रेस के भीतर से एक नए वैचारिक स्वर के रूप में देखा जा रहा है. एक ऐसा स्वर जो भारत की वैश्विक छवि, सैन्य ताकत और जनता के मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए सामने आ रहा है.

पालयट का गहलोत से तनाव अभी भी चर्चा में है
यह दीगर बात है कि राजस्थान कांग्रेस में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच लंबे समय से चली आ रही खींचतान अब भी चर्चा का विषय बनी हुई है. 2020 में पायलट के बगावत के बाद कांग्रेस हाईकमान ने दोनों नेताओं के बीच सुलह कराई थी. लेकिन तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ. हाल के महीनों में पायलट की सक्रियता और हाईकमान के साथ उनकी नजदीकी ने संकेत दिए हैं कि आने वाले समय में वे कांग्रेस के तुरुप के पत्ते बनने की ओर अग्रसर हैं.

कांग्रेस की जीत ने उनकी नेतृत्व क्षमता को साबित किया था
पायलट ने टोंक से विधायक के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत किया है. युवाओं, किसानों, और गुर्जर समुदाय के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है. उनके समर्थक दावा करते हैं कि 2018 में उनकी अगुवाई में कांग्रेस की जीत ने उनकी नेतृत्व क्षमता को साबित किया था. लेकिन अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाए जाने से उनकी महत्वाकांक्षाओं को झटका लगा. फिर भी हालिया दौरों और बयानों से संकेत मिलता है कि पायलट अब संगठन को मजबूत करने और जनता से सीधा जुड़ाव बनाने पर ध्यान दे रहे हैं.

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Sandeep Rathore

संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.

संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.

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