Last Updated:July 26, 2025, 12:08 IST
China on India Maldives Relations: कभी इंडिया आउट का नारा देकर मालदीव के राष्ट्रपति बने मोहम्मद मुइज्जू अब नई दिल्ली को माले को सबसे भरोसेमंद दोस्त बताया है. मुइज्जू के इस रुख में आखिर क्यों बदलाव आया और चीन की...और पढ़ें

हाइलाइट्स
मोहम्मद मुइज्जू ने अब भारत को मालदीव का सबसे भरोसेमंद दोस्त बताया.प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान 8 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.भारत ने मालदीव को 4,850 करोड़ रुपये की क्रेडिट लाइन दी.कभी ‘इंडिया आउट’ का नारा देने वाले मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने अब अपने रुख में बड़ा बदलाव किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा के दौरान जिस गर्मजोशी और सहयोग की झलक देखने को मिली, उसने साफ कर दिया है कि मालदीव अब बाहे फैलाकर ‘इंडिया इन’ की नीति पर ही चलने को तैयार है. मुइज्जू का यह बदलाव केवल भारत-मालदीव संबंधों की दिशा को ही नहीं दर्शाता, बल्कि इस क्षेत्र में बदलती भू-राजनीतिक चालों और वैश्विक कूटनीति के नए समीकरणों की भी झलक देता है.
लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर जिस मुइज्जू ने मालदीव की सत्ता संभालने के पहले से ही भारत-विरोधी रुख अपनाया था और चीन की ओर झुकाव दिखाया था, वह अब क्यों भारत के साथ सहयोग की राह पर लौट आए? मुइज्जू के इस रुख पर चीन की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है?
भारत-मालदीव रिश्तों की नई गर्माहट
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान भारत और मालदीव के बीच 8 बड़े समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें रक्षा, व्यापार, डिजिटल सहयोग और जलवायु परिवर्तन जैसे अहम मुद्दे शामिल हैं. भारत ने मालदीव को 4,850 करोड़ रुपये की लाइन ऑफ क्रेडिट दी है, जिससे मालदीव की आर्थिक और अधोसंरचना विकास परियोजनाओं को गति मिलेगी. मुइज्जू ने खुद फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर बातचीत की घोषणा की और कहा कि भारत के साथ साझेदारी से उनका देश आगे बढ़ेगा.
मुइज्जू को एक वक्त चीन का पिट्ठू माना जाता है. एक वक्त तो उन्होंने भारत के खिलाफ जाते हुए चीन के पास अपने देश को ही गिरवी रख दिया था. ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि मुइज्जू को अब जब भारत की दोस्ती का मोल समझ आने लगा है, तो इस पर चीन की क्या प्रतिक्रिया होगी. एक्सपर्ट्स की मानें चीन को भी अब दिल्ली-माले की दोस्ती से कोई एतजार नहीं होने वाला. इसके पीछे वह कुछ वजहें भी गिनाते हैं.
दरअसल चीन हाल में दिनों में भारत के साथ रिश्तों को वापस से सुधारने में जुटा है. गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में जमी बर्फ अब पिघलने लगी है. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद जियो पॉलिटिक्स में भी बड़े बदलाव देखने को मिले हैं. ट्रंप ने चीन पर जैसे ही नकेल कसी तो शी जिनपिंग को भारत की याद आने लगी.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग रूस-भारत और चीन के त्रिपक्षीय गठजोड़ यानी RIC को पुनर्जीवित करने की कोशिश में जुटे हैं और यही वजह है कि वह हाल के महीनों में भारत के साथ संबंधों में कुछ नरमी लाने की कोशिश कर रहे हैं.
RIC पहल के तहत भारत, चीन और रूस एक त्रिपक्षीय सामरिक मंच पर काम करते हैं, जिसका उद्देश्य वैश्विक मंचों पर बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देना है. शी जिनपिंग अच्छी तरह समझते हैं कि भारत को पूरी तरह नजरअंदाज करना न तो संभव है और न ही व्यावहारिक. ऐसे में यदि भारत दक्षिण एशिया में अपनी रणनीतिक मौजूदगी को मजबूत करता है, जैसे मालदीव में कर रहा है, तो यह चीन के लिए सीधी चुनौती नहीं, बल्कि संतुलन साधने का अवसर बन सकता है.
क्यों चीन को नहीं होगा ऐतराज?
मालदीव में भारत की मौजूदगी से स्थायित्व आता है, जो पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए जरूरी है. यदि भारत और मालदीव के रिश्ते मजबूत होते हैं और भारत अपने पड़ोस में स्थायित्व लाता है, तो यह RIC की धारणा को भी मजबूती देता है- जहां तीनों महाशक्तियां मिलकर वैश्विक मुद्दों पर काम कर सकती हैं. चीन को यह भी भली-भांति पता है कि भारत अगर दक्षिण एशिया में प्रमुख रणनीतिक भूमिका निभाता है, तो वह अमेरिका के पूरी तरह प्रभाव में नहीं जाएगा. इससे चीन-भारत संबंधों में संवाद की संभावना बनी रहती है.
भारत की ओर से दी गई क्रेडिट लाइन (LoC) को चीन BRI के किसी विरोधी प्रोजेक्ट की तरह नहीं देखता, क्योंकि यह कोई सैन्य गठबंधन नहीं, बल्कि विकास साझेदारी है. इससे चीन की प्राथमिकताएं सीधे प्रभावित नहीं होतीं.
मुइज्जू को समझ आ गई भारत की बात
मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू को भी यह बात जल्दी समझ में आ गई कि भारत को किनारे कर चीन से लाभ लेना न तो स्थायी समाधान है और न ही व्यावहारिक रणनीति. चीन से किए वादे जमीनी स्तर पर परिणाम नहीं दे पाए, वहीं भारत ने सॉफ्ट लोन, सामाजिक आवास, हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और डिजिटलीकरण में मदद दी. यही नहीं, कोविड के दौरान भारत ने ‘फर्स्ट रिस्पॉन्डर’ की भूमिका निभाकर मालदीव की अर्थव्यवस्था को संकट से उबारा.
भारत, रूस और चीन की त्रिपक्षीय पहल (RIC) के बदलते स्वरूप के बीच मुइज्जू का ‘इंडिया इन’ कहना और प्रधानमंत्री मोदी का मालदीव में सम्मानित रूप से स्वागत पाया जाना केवल एक कूटनीतिक घटना नहीं, बल्कि आने वाले समय में दक्षिण एशिया की भू-राजनीति की दिशा तय करने वाला संकेत है. यह चीन के लिए भी चेतावनी नहीं, बल्कि एक अवसर है कि वह भारत को टकराव नहीं, सहयोग के नजरिए से देखे. और मुइज्जू ने यह रास्ता दिखा दिया है कि ‘इंडिया इन’ कहने से न सिर्फ द्विपक्षीय रिश्ते सुधरते हैं, बल्कि संतुलित वैश्विक कूटनीति को भी गति मिलती है.
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
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