Internet Explain: सौ बात की एक बात ये कि लाल सागर में समुद्र के नीचे इंटरनेट की तार कट गई. भारत तक में इंटरनेट की स्पीड स्लो हो गई कई जगह. लेकिन पब्लिक तो ये सुनकर ही हैरान हो गई कि इंटरनेट क्या केबल के ज़रिये आ रहा है? तार से आ रहा है? पब्लिक ये तो जानती है कि उसके फ़ोन पर या कंप्यूटर पर या टीवी में किस कंपनी का इंटरनेट कनेक्शन लगा है, लेकिन उस कंपनी में कहां से आ रहा है लोग ध्यान नहीं देते. ये समुद्र के अंदर तारें बिछा रखी हैं क्या? तो इसको समझने के लिए इंटरनेट के पूरे खेल को समझना पड़ेगा. मतलब जैसे आप अपने घर में बैठे हो, अपने फ़ोन पर स्क्रॉल कर रहे हो, कोई मज़ेदार वीडियो देख रहे हो, या दुनिया के किसी कोने में बैठे दोस्त से चैट कर रहे हो. तो ये जो इंटरनेट के ज़रिये हो रहा है ये आ कहां से रहा है? कोई जादू थोड़े ही है. आप अपने फ़ोन को टच करते हो और पलक झपकते ही आपका मैसेज किसी दूसरे देश में पहुंच जाता है, या कोई मूवी स्ट्रीम होने लगती है. ये सब डेटा ही तो है. लेकिन ये सारा डेटा इतनी तेज़ी से कैसे पहुंच जाता है? आपका वीडियो, मैसेज या ईमेल आपके फ़ोन से हज़ारों मील दूर किसी और के फ़ोन तक कैसे पहुंच जाता है?
आप सोच रहे हैं ये सब वाई-फ़ाई राउटर या सेल टावर से जा रहा है. वो तो ठीक है लेकिन उससे आगे कहां? वहां से दूसरे देश कैसे जा रहा है? तो ये जो सिस्टम है ये समुद्र के नीचे बिछा हुआ है. समुद्र के नीचे तारें बिछी हुई हैं. अंडर-सी. समुद्र के नीचे. अंडर-सी केबलें बिछी हुई हैं. इनके बिना इंटरनेट नहीं चल सकता. आप भारत में हो और आप अमेरिका में स्टोर किया हुआ कोई वीडियो देखना चाहते हो. वो वीडियो एक बड़े कंप्यूटर में स्टोर होता है, जिसको कहते हैं सर्वर. ये सर्वर समझ लो कि एक बहुत बड़ी लाइब्रेरी की तरह होता है, जिसमें अरबों वीडियो पड़े हुए हैं, फ़ोटो हैं और वेबसाइट हैं तरह-तरह कीं. जब आप प्ले का बटन दबाते हो, तो आपका फ़ोन सर्वर को बोलता है कि भाई वो विडियो भेजो यहां चलाना है. लेकिन ये संदेश दुनिया के उस पार तक कैसे पहुंचता है? हवा में तैरता हुआ जाता है क्या आपके फ़ोन का संदेश? या सैटेलाइट में जाता है? नहीं. ये जाता है समुद्र में बिछी हुई तारों के ज़रिये.
अंडर-सी केबल से सबकुछ संभव
अंडर-सी केबलों के ज़रिए बिजली की तेज़ी से ये सर्वर तक पहुंचता है. जब आप इंटरनेट चलाते हो, तो आपका फ़ोन या कंप्यूटर एक लोकल नेटवर्क से जुड़ा होता है. हो सकता है आपके घर में वाई-फ़ाई राउटर हो, या आप मोबाइल डेटा यूज़ कर रहे हों, जो सेल टावर से आता है. ये ऐसे है जैसे आपके घर के पास की छोटी सड़कें होती हैं. आपकी वो वीडियो की रिक्वेस्ट पहले इन छोटी सड़कों से आपने जिस कंपनी की इंटरनेट सेवा ली हुई है वहां जाती है. अब जैसे आपने बोला कि फ़लां विडियो देखना है. तो वो विडियो उस कंपनी के पास थोड़े ही पड़ा होता है जो आपको इंटरनेट सेवा दे रही है. उसको तो वो विडियो आपके फ़ोन तक लाने के लिए उस सर्वर तक पहुंचना होता है, जहां वो वीडियो स्टोर किया हुआ है, जो शायद किसी दूसरे देश में हो. इसके लिए वो आपकी रिक्वेस्ट को दुनिया भर में फ़ैली हुई केबलों के एक बड़े जाल के ज़रिए भेजता है.
पाइप…जिसमें पानी नहीं डेटा बहता है
इनमें ज़्यादातर तारें समुद्र के नीचे बिछी हैं. इन केबलों को आप डेटा ले जाने वाले विशाल पाइप की तरह समझ लो, बस इनमें पानी की जगह डेटा बहता है ये मान लो. ये तारें मोटी तारें नहीं होतीं. सर के बालों से भी महीन होती हैं. ऑप्टिकल फ़ाइबर. बिजली की तारों में तो करंट जाता है. इनमें करंट नहीं जाता. इनमें जाती है लाइट. रोशनी. रोशनी के ज़रिये डेटा जाता है. जैसे आप टॉर्च की रोशनी को एक लंबी ट्यूब के ज़रिए भेज रहे हों. तो जो भी संदेश होता है या आवाज़ होती है या विडियो होता उसको बदल देते हैं रोशनी के सिग्नल में. और रोशनी के सिग्नल को भेजते हैं इन तारों के ज़रिये. बिजली के तारों में करंट दौड़ता है. इन ऑप्टिकल फ़ाइबर में रोशनी के सिग्नल दौड़ते हैं. औऱ रोशनी की स्पीड से जाते हैं तभी तो इतना जल्दी पहुंच जाते हैं. आप बटन दबाते हो विडियो देखना है. तो उसका बन जाता है एक लाइट सिग्नल. रोशनी का सिग्नल. वो दौड़ता हुआ पहुंच जाता है सर्वर तक. और सर्वर में पड़ा हुआ विडियो भी बन जाता है एक लाइट सिग्नल और वो भी रोशनी बन कर तार से आ जाता है आपके पास तक. और यहां आ कर फिर से रोशनी को बदल देते हैं विडियो में. और आप देखते हो विडियो.
अब ये हाल है कि ये केबल भी किसी युद्ध में फंस सकती हैं कभी भी. क्योंकि इनके ज़रिये कई देशों की अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचाई जा सकती है. अफ़्रीका के आसपास भी केबल बिछी हैं, जैसे SEACOM और PEACE केबल, जो केन्या, तंज़ानिया, और दक्षिण अफ़्रीका को यूरोप और एशिया से जोड़ती हैं. 2025 में PEACE केबल भी लाल सागर में कट गई थी, और इसका असर एशिया से अफ़्रीका तक इंटरनेट पर पड़ा था.
समंदर में कैसे बिछाई जाती हैं केबल?
अब सवाल ये कि ये केबल समुद्र में कैसे बिछाई जाती हैं? कोई तार को पानी में फ़ेंक दो ऐसा तो होता नही. ख़ास जहाज़ होते हैं, इनको कहते हैं केबल-लेइंग शिप्स, वो ये काम करते हैं. जैसे पतंग की डोर की चरखियां होती हैं ना, तो ये जहाज़ बड़ी-बड़ी चरखियों में केबल ले कर जाते हैं. कभी-कभी तो 10,000 किलोमीटर तक लंबी केबल लेकर जाते हैं. समुद्र भी तो सोचिये ना कितना विशाल होता है. तो जहाज़ बढ़ता रहता है और चरखी खोल-खोल कर तार डालता रहता है. केबलों को बहुत मज़बूत बनाया जाता है. स्टील और प्लास्टिक की परतों में लपेटा जाता है, ताकि पत्थरों, मछलियों या जहाज़ों के लंगर से बच सकें. किनारे के पास जहां पानी गहरा नहीं होता वहां इनको दबाया जाता है, ताकि ये सुरक्षित रहें, लेकिन गहरे समुद्र में ये बस समुद्र के तल पर लेटी रहती हैं. एक बार जब केबल बिछ जाती हैं, तो वो ज़मीन पर ख़ास स्टेशनों से जोड़ी जाती हैं समुद्र के दोनों साइड पर. इनको लैंडिंग स्टेशन कहते हैं. ये स्टेशन ऐसे होते हैं जैसे शहर के मुख्य पोस्ट ऑफ़िस होते हैं, जहां सारा इंटरनेट ट्रैफ़िक इकट्ठा होता है. भारत में जैसे मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में लैंडिंग स्टेशन हैं. तो आपकी वीडियो की रिक्वेस्ट इस अंडर-सी केबल के ज़रिए किसी दूसरे देश, जैसे अमेरिका के लैंडिंग स्टेशन तक जाती है, जहां इसे दूसरे नेटवर्क को सौंप दिया जाता है, जो इसे सर्वर तक ले जाता है. फिर वीडियो उन्हीं तारों के ज़रिए वापस आपके फ़ोन तक आता है. और ये सब लाइट की स्पीड से होता है. सेकंडों में.
समझने की बात ये कि इंटरनेट को दुनिया भर में जोड़ने के लिए हज़ारों मील लंबी केबलें समुद्र के तल पर बिछी हुई हैं. ये केबल इतनी सारी हैं कि अगर इन्हें सीधा करके बिछाया जाए, तो ये धरती को कई बार लपेट सकती हैं.
क्या सैटेलाइट नहीं कर सकता है यह काम
अगला सवाल यह कि हम इन तारों पर इतना क्यों निर्भर हैं? क्या हम सैटेलाइट का इस्तेमाल नहीं कर सकते इस काम के लिए? तो वो ऐसा है कि सैटेलाइट कुछ चीज़ों के लिए तो अच्छी होती हैं, जैसे GPS या टीवी सिग्नल भेजने के लिए, लेकिन इंटरनेट डेटा के लिए वो तारों से स्लो होती हैं. सैटेलाइट तक डेटा भेजने और वापस लाने में टाइम ज़्यादा लगता है, और वो उतना डेटा हैंडल भी नहीं कर सकतीं जितना केबल कर सकती हैं. हालांकि, इलॉन मस्क की कंपनी और कुछ और कंपनियां सैटेलाइट इंटरनेट के काम में लगी हुई हैं लेकिन अभी की सिचुएशन ये हैं कि दुनिया भर में जो इंटरनेट चलता है उसका 99% सुमद्र के नीचे बिछे तारों के जाल से ही चलता है. तो अगर इंटरनेट एक हाईवे है, तो सैटेलाइट छोटी सड़कें हैं जिनमें स्पीड लिमिट है, जबकि अंडर-सी केबल एक्सप्रेसवे जैसी हैं बिना किसी लिमिट के.
केबल टूट जाएं तो क्या होगा
अब सवाल ये कि तब क्या जब ये केबल टूट जाएं? जैसा कि अब हुआ जब लाल सागर के नीचे केबल कट गईं. वैसे तो केबल बहुत मज़बूत होती हैं, लेकिन फ़िर भी कट सकती हैं. कभी-कभी किसी जहाज़ का लंगर गलती से केबल को ख़ींच लेता है या भूकंप समुद्र के तल को हिला देता है. कोई जानबूझकर भी इन्हें काट सकता है, हालांकि ये साबित करना मुश्किल है. जब कोई केबल कटती है, तो ये ऐसा है जैसे कोई बड़ा हाईवे ब्लॉक हो जाए. इंटरनेट पूरी तरह बंद नहीं होता, क्योंकि कंपनियां दूसरी केबलों के ज़रिए डेटा को ले जाती हैं. जैसे सड़क बंद होने पर साइड के रास्ते से निकल जाते हैं. लेकिन ये करने से इंटरनेट की स्पीड कम हो सकती है. भारत में इंटरनेट के साथ भी ऐसा ही हुआ. जो केबलें कटीं, जैसे SMW4 और IMEWE, वो डेटा के लिए बड़े एक्सप्रेसवे की तरह थीं. जब वो कटीं तो डेटा को दूसरी केबलों से भेजना पड़ा, जिससे देरी हुई. इन केबलों को ठीक करना भी बड़ा काम है. जब कोई केबल कटती है, तो ख़ास रिपेयर जहाज़ भेजे जाते हैं जो ढूंढते हैं कि कहां से केबल कटी है. वो रोबोट का इस्तेमाल करते हैं जो समुद्र के तल तक गोता लगाते हैं और ढूंढते हैं कहां टूटी है केबल. फ़िर वो केबल को ऊपर खींचते हैं, उसे ठीक करते हैं जैसे कोई टूटी रस्सी जोड़ते हैं और वापस नीचे डाल देते हैं. इसमें हफ़्तों लग सकते हैं, क्योंकि समुद्र बहुत गहरा है, और काम धीरे-धीरे, सावधानी से करना पड़ता है. तो इस बार जो हुआ है वो ये कि लाल सागर में कई अंडर-सी केबल कट गईं, जिससे भारत, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूएई, और पश्चिम एशिया के कई हिस्सों में इंटरनेट धीमा हो गया.
लाल सागर में कटीं केबलें
माइक्रोसॉफ़्ट ने अपनी वेबसाइट पर बताया कि रेड सी में फ़ाइबर केबलें कट गईं. नेटब्लॉक्स एक कंपनी है जो इंटरनेट की निगरानी करती हैं उसने बताया कि ये सऊदी अरब के जेद्दाह के पास हुआ, और इसमें SMW4 और IMEWE केबल सिस्टम्स प्रभावित हुए. SMW4 यानी साउथ ईस्ट एशिया–मिडिल ईस्ट–वेस्टर्न यूरोप 4 केबल को भारत की टाटा कम्युनिकेशन्स चलाती है, और IMEWE यानी इंडिया–मिडिल ईस्ट–वेस्टर्न यूरोप केबल को ऐल्काटेल-ल्यूसेंट नाम की यूरोपीय कंपनियों का एक ग्रुप चलाता है. लेकिन ये तारें कटीं कैसे, ये अभी साफ़ नहीं है. कुछ लोगों को शक है कि ये यमन के हूती विद्रोहियों का काम हो सकता है, जो लाल सागर में जहाज़ों पर हमले कर रहे हैं, ताकि इज़राइल पर गाज़ा में जंग खत्म करने का दबाव डाल सकें. हालांकि, हूती विद्रोहियों ने पहले भी ऐसी हरकतों से इनकार किया है, और इस बार भी उन्होंने कहा कि उन्होंने तारें नहीं काटीं. लेकिन 2024 में यमन की सरकार, जो हूतियों के ख़िलाफ़ है, ने चेतावनी दी थी कि हूती विद्रोही इन केबलों को निशाना बना सकते हैं. कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि शायद किसी जहाज़ का लंगर ग़लती से इन केबलों से टकरा गया, क्योंकि ऐसा पहले भी हो चुका है. फ़रवरी 2024 में लाल सागर में एक जहाज़, रूबीमार, डूब गया था, और उसका लंगर समुद्र के तल में जब गिरा था तो AAE-1 और EIG जैसी केबलों को नुकसान हुआ था. लेकिन इस बार का कारण अभी रहस्य है, और जांच चल रही है. तो समझने की बात ये कि इंटरनेट को दुनिया भर में जोड़ने के लिए हज़ारों मील लंबी केबलें समुद्र के तल पर बिछी हुई हैं. ये केबल इतनी सारी हैं कि अगर इन्हें सीधा करके बिछाया जाए, तो ये धरती को कई बार लपेट सकती हैं.
जब कोई केबल कटती है, तो ख़ास रिपेयर जहाज़ भेजे जाते हैं जो ढूंढते हैं कि कहां से केबल कटी है. वो रोबोट का इस्तेमाल करते हैं जो समुद्र के तल तक गोता लगाते हैं और ढूंढते हैं कहां टूटी है केबल. फ़िर वो केबल को ऊपर खींचते हैं, उसे ठीक करते हैं जैसे कोई टूटी रस्सी जोड़ते हैं और वापस नीचे डाल देते हैं.
14 लाख किलोमीटर अंडर-सी केबल
दुनिया में क़रीब 14 लाख किलोमीटर लंबी अंडरसी केबल बिछी हुई हैं. 14 लाख किलोमीटर. और लाल सागर जैसे तेल के जहाज़ों के निकलने का चोकपॉयंट है, वैसे ही लाल सागर में अंडरसी केबलों का भी जाल है. उनका भी ये चोकपॉयंट है. ये एक ऐसी जगह है जहाँ कई केबल एक साथ इकट्ठा होती हैं, जैसे एक बड़े चौक पर कई एक्सप्रेसवे मिलते हैं. लाल सागर में 16 से ज़्यादा बड़ी केबल गुज़रती हैं, जो एशिया और यूरोप को जोड़ती हैं. जैसे SMW4, IMEWE, AAE-1, और EIG जैसी केबलें यहाँ से होकर मिस्र की ज़मीन पर आती हैं, और फिर भमध्य सागर के ज़रिए यूरोप तक जाती हैं. लेकिन लाल सागर में ही इतनी तारें क्यों डाली गई हैं? क्योंकि रास्ता छोटा भी पड़ता है, और समुद्र यहां ज़्यादा गहरा नहीं है. जिससे केबल बिछाना आसान हो जाता है. लेकिन यही इसकी कमज़ोरी भी है. क्योंकि यहां जहाज़ों का आना-जाना बहुत है, और लंगर या किसी हमले से केबलो को नुकसान भी हो सकता है. इसके अलावा अटलांटिक महासागर में, जो अमेरिका और यूरोप को जोड़ता है, ढेर सारी केबलें बिछी हैं. ये केबल न्यूयॉर्क, लंदन, और पेरिस जैसे बड़े शहरों को जोड़ती हैं. एक MAREA केबल है, जो माइक्रोसॉफ़्ट और मेटा जैसी कंपनियों ने बिछाई हुई है, ये अमेरिका में वर्जिनिया से युरोप में स्पेन तक जाती है. ये इतनी तेज़ है कि ये बैंकों और बिज़नेस को एक सेकंड से भी कम टाइम में डेटा भेजने में मदद करती है. मतलब आप अगर न्यूयॉर्क शेयर बाज़ार में एक शेयर खरीद रहे हो, और वो ऑर्डर लंदन की स्टॉक एक्सचेंज तक पलक झपकते पहुंच जाता है, तो वो कैसे होता है? सब इन केबलों की वजह से होता है. पैसिफ़िक महासागर में भी बहुत सारी केबल हैं, जो अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और एशिया को जोड़ती हैं. एक यूनिटी केबल है जो कैलिफ़ोर्निया को जापान से जोड़ती है.
गूगल का ऐलान
उधर गूगल ने हाल ही में नई केबल बिछाने की घोषणा की है, जो सिंगापुर और इंडोनेशिया को अमेरिका से जोड़ेंगी. ये वाला इलाक़ा भी ख़ास है, क्योंकि यहां डेटा का बहुत बड़ा ट्रैफ़िक है. एशिया में, साउथ चाइना सी और मलक्का स्ट्रेट भी बड़े चोकपॉयंट हैं. मलक्का स्ट्रेट, जो सिंगापुर के पास है, एक तंग रास्ता है जहां कई केबल गुज़रती हैं, जो भारत, सिंगापुर, और यूरोप को जोड़ती हैं. 2022 में, AAE-1 केबल यहां कट गई थी, जिससे इथियोपिया और सोमालिया जैसे देशों में इंटरनेट लगभग ठप हो गया था. ये इलाके इसलिए ख़तरनाक हैं, क्योंकि यहां बहुत सारे जहाज़ आते-जाते हैं, और केबलों को लंगर या प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान हो सकता है. बाल्टिक सी में भी कई केबल हैं, जो फ़िनलैंड, स्वीडन, और जर्मनी जैसे देशों को जोड़ती हैं. हाल ही में, 2024 में, यहां दो केबल कट गईं थीं, और लोगों को शक था कि ये रूस या चीन की हरकत हो सकती है. एक चीनी जहाज़, Yi Peng 3, उस इलाके में देखा गया था.
इंटरनेट केबल युद्ध
यानी अब ये हाल है कि ये केबल भी किसी युद्ध में फंस सकती हैं कभी भी. क्योंकि इनके ज़रिये कई देशों की अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचाई जा सकती है. अफ़्रीका के आसपास भी केबल बिछी हैं, जैसे SEACOM और PEACE केबल, जो केन्या, तंज़ानिया, और दक्षिण अफ़्रीका को यूरोप और एशिया से जोड़ती हैं. 2025 में PEACE केबल भी लाल सागर में कट गई थी, और इसका असर एशिया से अफ़्रीका तक इंटरनेट पर पड़ा था. तो ये केबलों का महाजाल. तो अगली बार जब इंटरनेट धीमा हो, तो समझ जाना कि ये भी हो सकता है कहीं समुद्र के नीचे कोई केबल ख़राब हुई हो. आपकी सांस अटक जाती है ना अगर एक विडियो रुक जाता है तो? तो समुद्र के नीचे बिछी 14 लाख किलोमीटर की तारों में अटकी हैं दुनिया की सांसें. सौ बात की एक बात.
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1 month ago
