Last Updated:September 26, 2025, 14:16 IST
Retirement of MiG 21 of Indian Air Force: अमेरिका को भारत की हर बात पर नाक सिकोड़ना भारी पड़ गया. भारत ने दो टूक जवाब देकर दिखा दिया कि अब वो किसी की नहीं सुनता. आखिर क्या है ये पूरा मसला? जानने के लिए पढ़ें आगे...

Retirement of MiG 21 of Indian Air Force: 1962 का भारत-चीन युद्ध खत्म होते ही दुनिया की सुपरपावर अमेरिका को ऐसा झटका लगा कि व्हाइट हाउस से लेकर पेंटागन तक हड़कंप मच गया. बात थी भारत के एक ऐसे फैसले की, जिसकी अमेरिका ने सपने में भी उम्मीद नहीं की थी. भारत ने न सिर्फ अमेरिका की डील को ठुकराया, बल्कि सोवियत संघ (आज का रूस) के साथ मिलकर मिग-21 फाइटर जेट की डील पक्की कर दी. ये वो दौर था जब भारत अपनी हवाई ताकत को बढ़ाने की कोशिश में था और अमेरिका अपने पाकिस्तान प्रेम में डूबा हुआ था.
1962 के युद्ध के बाद भारत को अपनी वायुसेना को और मजबूत करने की जरूरत थी. उस वक्त पाकिस्तान को अमेरिका ने F-104 स्टारफाइटर जेट दिए थे, जिसके बाद पाकिस्तान आसमान में इतराने लगा था. भारत ने भी सोचा कि क्यों न हम भी अमेरिका से F-104 डील करें? लेकिन अमेरिका ने इस डील में टालमटोल शुरू कर दी. उनके लिए पाकिस्तान था दिल का टुकड़ा और भारत को वो बस हल्के में ले रहे थे. भारत ने अमेरिका का ये रवैया भांप लिया और फटाफट सोवियत संघ की ओर रुख कर लिया. बस यहीं से कहानी में ट्विस्ट शुरू हुआ.
मिग-21 की डील और अमेरिका की बेचैनी
जैसे ही भारत ने सोवियत संघ के साथ मिग-21 की डील पर बातचीत शुरू की, अमेरिका के कान खड़े हो गए. व्हाइट हाउस से लेकर पेंटागन तक बेचैनी छा गई. अमेरिका को डर था कि अगर भारत ने सोवियत जेट खरीदे, तो सोवियत तकनीशियन और सलाहकार भारतीय सेना में घुस जाएंगे. ये बात अमेरिका को बिल्कुल पसंद नहीं थी, क्योंकि उस वक्त कोल्ड वॉर का दौर था और अमेरिका-रूस की रेस अपने पीक पर थी.
अमेरिकी राजदूत जॉन केनेथ गैलब्रेथ ने तो साफ-साफ कह दिया कि अगर भारत ने मिग-21 लिया, तो सोवियत लोग भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे. अमेरिकी विदेश विभाग की फाइलों में भी लिखा गया कि अगर भारत को सही सपोर्ट नहीं मिला, तो वो सोवियत कैंप में चला जाएगा. गैलब्रेथ ने व्हाइट हाउस को सुझाव दिया कि भारत को F-104 बेच दो, ताकि वो सोवियत हथियारों पर निर्भर न हो.
अमेरिका की कोशिशों पर भारत का मास्टरस्ट्रोक
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस डील को लेकर थोड़े अनमने थे, लेकिन लंदन में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने खुलासा किया कि मिग-21 डील काफी आगे बढ़ चुकी है. दूसरी तरफ, सोवियत संघ को भी भारत को मिग-21 देने में कुछ टेंशन थी. उन्हें लगता था कि भारत के पास सुपरसोनिक जेट बनाने की टेक्नोलॉजी सीमित है. साथ ही, कम्युनिस्ट चीन ने भी इस डील का विरोध किया था. लेकिन भारत ने अपनी जिद नहीं छोड़ी. अमेरिका ने भारत को मनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने भारत को 9 सी-130 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट रुपये में बेचने की मंजूरी तक दे दी. लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि हमारा मन अब मिग-21 पर अटक गया है.
भारत में आया मिग-21 और अमेरिका का लटका मुंह
आखिरकार, सारी कोशिशों के बावजूद अमेरिका फेल हो गया. भारत ने न सिर्फ मिग-21 को अपनी वायुसेना में शामिल किया, बल्कि महाराष्ट्र के नासिक और ओडिशा के कोरापुट में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की फैसिलिटीज में इसका प्रोडक्शन भी शुरू कर दिया. मिग-21 ने भारतीय वायुसेना को एक नई ताकत दी और दशकों तक ये जेट हमारी वायुसेना की रीढ़ बना रहा. इस डील ने भारत और सोवियत संघ के रिश्तों को और मजबूत किया. अमेरिका की सारी चिंताएं सही साबित हुईं, क्योंकि भारत ने न सिर्फ सोवियत जेट खरीदे, बल्कि उनके साथ सैन्य सहयोग को भी बढ़ाया. उस वक्त भारत एक ऐसा स्ट्रैटेजिक पार्टनर था, जिसे अमेरिका और सोवियत संघ, दोनों अपने पाले में लाना चाहते थे.
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क्या थी इस डील की अहमियत?
मिग-21 की डील सिर्फ एक जेट की खरीदारी नहीं थी, बल्कि ये भारत की कूटनीतिक ताकत का प्रतीक थी. जहां अमेरिका ने डिप्लोमैटिक प्रेशर और लुभावने ऑफर्स के जरिए भारत को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की, वहीं सोवियत संघ ने मिग-21 जैसे एडवांस फाइटर जेट देकर भारत का भरोसा जीत लिया. इस डील ने भारतीय वायुसेना को तो मजबूत किया ही, साथ ही भारत-सोवियत रिश्तों को भी नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया.
Anoop Kumar MishraAssistant Editor
Anoop Kumar Mishra is associated with News18 Digital for the last 6 years and is working on the post of Assistant Editor. He writes on Health, aviation and Defence sector. He also covers development related to ...और पढ़ें
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First Published :
September 26, 2025, 14:16 IST