Last Updated:November 15, 2025, 19:13 IST
Bihar Congress MLAs News: कांग्रेस बिहार में मिली करारी हार के बाद अपने 6 जीते हुए विधायकों के टूटने की आशंका से घिरी है. ज्यादातर विधायक नए या टर्नकोट होने के कारण सबसे कमजोर कड़ी माने जा रहे हैं. पार्टी अंदरूनी कलह, टिकट वितरण की गलतियों और महागठबंधन की खराब कोऑर्डिनेशन से भी टूट रही है.
कांग्रेस नेतृत्व ने बिहार में शर्मनाक प्रदर्शन का ठीकरा चुनाव आयोग के सिर फोड़ा है. (File Photo : PTI)नई दिल्ली/पटना: बिहार चुनाव 2025 में कांग्रेस जिस तरह ध्वस्त हुई, उसने पार्टी को अंदर से हिला दिया है. 61 सीटों पर दांव लगाने के बाद सिर्फ 6 सीटें मिलना किसी बड़े झटके से कम नहीं. हालात इतने खराब हैं कि कांग्रेस को अब डर सता रहा है कि जो 6 विधायक जीतकर आए हैं, कहीं वही हाथ से न निकल जाएं. वजह साफ है. इनमें ज्यादातर या तो हाल में आए ‘टर्नकोट’ हैं या पार्टी से गहरी आइडियोलॉजिकल केमिस्ट्री नहीं रखते. दूसरी तरफ NDA बेहद आक्रामक मोड में है और ‘कांग्रेस मुक्त’ बिहार का प्लान खुलेआम चल रहा है. भाजपा और जदयू का पुराना रिकॉर्ड भी यही कहता है कि मौका मिला तो विपक्षी विधायकों को तोड़कर अपनी स्ट्रेंथ बढ़ाना उनका पसंदीदा रास्ता रहा है. ऐसे में कांग्रेस अपनी सबसे छोटी टीम को बचाने की चिंता में डूबी है.
चुनाव हारने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल उठा दिए. ECI की पारदर्शिता पर उंगलियां उठाईं और इसे ‘अविश्वसनीय’ रिजल्ट बताया. इससे भी यह साफ है कि पार्टी अंदरूनी टूटन और बाहरी दबाव दोनों से जूझ रही है. चौतरफा मार के इस दौर में कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी, विपक्षी हमले और अपने ही जीते हुए विधायकों पर कमिटमेंट का शक, ये सब मिलकर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. सवाल यही है कि कांग्रेस आखिर कैसे खुद को टूटने से बचाएगी और विधानसभा में अपनी छोटी मौजूदगी को कैसे मजबूत करेगी.
बिहार चुनाव 2025 का फाइनल रिजल्ट.
कौन-कौन विधायक खतरे में?
कांग्रेस की चिंता सबसे ज्यादा उन विधायकों को लेकर है जो हाल में पार्टी के टिकट पर आए. किशनगंज से जीते कमरुल होदा पहले AIMIM में थे. अक्टूबर में कांग्रेस जॉइन की और टिकट मिल गया. ऐसे नए चेहरे NDA के टारगेट पर सबसे आसान माने जाते हैं. फोर्ब्सगंज से जीते मनोज बिस्वास भी इसी कैटेगरी में हैं. वे चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में आए थे. जीत के बाद इन पर निगाहें और ज्यादा गहरी हो गई हैं.
चानपटिया से जीते अभिषेक रंजन यूथ कांग्रेस चेहरा हैं, लेकिन उनकी नजदीकियां भाजपा की रेनू देवी से पुरानी हैं. पार्टी में चर्चा है कि कोई बड़ी पोजिशन या ऑफर उन्हें प्रभावित कर सकती है. वहीं मनिहारी के विधायक मनोहर प्रसाद की पार्टी मीटिंग्स से दूरी भी कांग्रेस को परेशान करती रही है. छह में एक नाम राहत देता है- ओबीदुर रहमान. वह पुराने कांग्रेसी हैं. पार्टी मानती है कि वे पाला बदलने वालों में नहीं.
कांग्रेस क्यों बार-बार टूटी? पुराना इतिहास है
बिहार कांग्रेस का टूटना नई बात नहीं. पहले भी कई बड़े चेहरे JD(U) की तरफ जा चुके हैं. अशोक चौधरी, दिलीप चौधरी से लेकर कई विधायक पार्टी का साथ छोड़ चुके. यह इतिहास नए विधायकों में भी असुरक्षा बढ़ाता है. हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में किशोर कुमार झा जैसे सीनियर नेता कहते हैं कि कांग्रेस ‘टर्नकोट पॉलिटिक्स’ में फंसती जा रही है. बाहरी नेताओं को टिकट, स्थानीय वर्कर्स की अनदेखी और जातीय गणित में ओवरफोकस, यह सब नुकसान का कारण बना. उनका कहना है कि लोग कांग्रेस के सिंबल पर जीतकर भी पार्टी की ग्रोथ के लिए काम नहीं करते.
कांग्रेस को गंभीरता से आत्ममंथन की जरूरत (File Photo : PTI)
महागठबंधन का मिसमैनेजमेंट
राहुल गांधी और कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनाव के बाद कहा कि लोकतंत्र पर हमला हुआ है और चुनाव निष्पक्ष नहीं थे. लेकिन कांग्रेस के भीतर मान लिया गया है कि गठबंधन में कोऑर्डिनेशन की कमी भी हार की वजह बनी. कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट से वोट कटे. तेनीसी का सवाल भी उठा कि पूरी कैंपेनिंग का कंट्रोल तेजस्वी के पास था और कांग्रेस साइडलाइन हो गई. अखिलेश प्रसाद सिंह जैसे नेता बोले कि कांग्रेस को बिहार में फिर से संगठन खड़ा करना होगा. जनता से कनेक्शन कम हुआ है. हार इसका नतीजा है.
एनडीए की जीत के बाद फडणवीस, नकवी जैसे कई भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर सीधे तंज कसा. किसी ने कहा कि राहुल आत्मचिंतन करें वरना ऐसी हार बार-बार मिलेगी. किसी ने कहा कि महागठबंधन के साथी भी अब कांग्रेस से धोखा खाया महसूस करते हैं. ये हमले कांग्रेस की मनोवैज्ञानिक स्थिति को और कमजोर करते हैं.
पिछले तीन विधानसभा चुनाव में बिहार का इलेक्टोरल मैप.
ECI पर सवाल से क्या बदला
कांग्रेस ने ECI पर पारदर्शिता को लेकर हमला बोला. वेणुगोपाल ने कहा कि कुछ हफ्तों में सबूत सामने रखेंगे. पर बिहार की पॉलिटिक्स में लोग इस लाइन को संदेह से देख रहे हैं. फिलहाल इसका असर विधायकों की सुरक्षा या पार्टी की मजबूती पर दिख नहीं रहा.
अब कांग्रेस के सामने दो चुनौतियां हैं:
अपने 6 विधायकों को बचाना. हार के बाद बनी ‘कमजोर पार्टी’ की इमेज ठीक करना.संगठन की मजबूती, स्थानीय वर्कर्स को प्राथमिकता और भरोसेमंद चेहरों को आगे लाना ही पार्टी को बचा सकता है. NDA के ‘कांग्रेस मुक्त’ प्लान के बीच कांग्रेस को पहले अपने ही घर को संभालना होगा. अगर ये छह सीटें भी हाथ से गईं, तो बिहार में कांग्रेस का अस्तित्व लगभग खत्म माना जाएगा. यही वजह है कि पार्टी का डर लगातार बढ़ रहा है.
दीपक वर्मा न्यूज18 हिंदी (डिजिटल) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में काम कर रहे हैं. लखनऊ में जन्मे और पले-बढ़े दीपक की जर्नलिज्म जर्नी की शुरुआत प्रिंट मीडिया से हुई थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म...और पढ़ें
दीपक वर्मा न्यूज18 हिंदी (डिजिटल) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में काम कर रहे हैं. लखनऊ में जन्मे और पले-बढ़े दीपक की जर्नलिज्म जर्नी की शुरुआत प्रिंट मीडिया से हुई थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म...
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First Published :
November 15, 2025, 19:13 IST

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