Last Updated:September 10, 2025, 18:13 IST
PK New Political Experiment in Bihar: प्रशांत किशोर बिहार में एक बिल्कुल नई सियासी थ्योरी पर काम कर रहे हैं. 13 साल पहले दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने जो किया, पीके अब उसी राह पर हैं. लेकिन उनका तरीका अलग है.

पटना. बिहार की सियासत में प्रशांत किशोर एक से बढ़कर एक प्रयोग कर रहे हैं. चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर, जिन्हें पीके के नाम से भी जानते हैं, बिहार चुनाव में जमी-जमाई पार्टियों की नींव हिलाकर रख रहे हैं. जनता से संवाद करने का अंदाज ऐसा कि जनता अबाक रह जाती है. पीके की तरह अरविंद केजरीवाल भी 13 साल पहले दिल्ली में जनता से कुछ इसी अंदाज में संवाद करते थे. लेकिन पीके अरविंद केजरीवाल से एक मामले में बीस साबित हुए. अरविंद केजरीवाल आईआरएस अधिकारी से नेता बने थे तो वह पैसों का हिसाब-किताब ठीक से रख रहे थे. जनता से बोलते थे कि अगर कोई नेता 500, 1000 या 2000 का नोट दे तो उसे वापस नहीं करना बल्कि जेब में रख लेना. लेकिन पीके की थ्योरी अरविंद केजरीवाल की थ्योरी से बिल्कुल अलग है.
दिल्ली में 13 साल पहले अरविंद केजरीवाल जब आईआरएस अधिकारी से नेता बने थे, तो उनका पूरा आंदोलन भ्रष्टाचार और पैसों के हिसाब-किताब पर टिका था. वह जनता से कहते थे कि अगर कोई नेता नोट दे तो ले लेना, लेकिन वोट आम आदमी पार्टी को ही देना. यह एक ऐसी थ्योरी थी जिसने जनता के बीच सीधे तौर पर भ्रष्टाचार पर चोट की और उन्हें एक नई राजनीतिक सोच दी. लेकिन, बिहार में पीके की थ्योरी बिल्कुल अलग है. वह पैसों की बात से आगे निकलकर जनता की असली समस्याओं पर बात कर रहे हैं. पीके कहते हैं पैसा कोई भी दे चाहे वह आपके जाति का ही क्यों न हो लेना नहीं. 500, 1000 और 2000 रुपये लेने से पहले अपने बच्चों का भविष्य देख लेना. क्या तुम अपने बच्चों का भविष्य 1000, 2000 या 3000 रुपये में बेच दोगे?
पीके की नई थ्योरी में कितना दम?
प्रशांत किशोर की राजनीतिक थ्योरी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन से कहीं ज्यादा है. वह बिहार के लोगों से सीधे पलायन, रोजगार और शिक्षा के मुद्दों पर बात कर रहे हैं. पीके गांव-गांव में लोगों से पूछ रहे हैं कि उनके बच्चे क्यों दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी कर रहे हैं. वह सीधे तौर पर यह सवाल उठा रहे हैं कि आखिर बिहार में ऐसा माहौल क्यों नहीं है कि यहां के युवाओं को बाहर न जाना पड़े. वह युवाओं से उनकी बेरोजगारी पर बात कर रहे हैं और पूछ रहे हैं कि चुनाव के समय नेता जो रोजगार के वादे करते हैं, वे पूरे क्यों नहीं होते? पीके स्कूलों में जाकर शिक्षा की बदहाली पर सवाल उठा रहे हैं और जनता को यह समझा रहे हैं कि जब तक शिक्षा नहीं सुधरेगी, तब तक बिहार का भविष्य नहीं सुधर सकता.
बिहार में ‘दिल्ली वाला खेल’ होने की संभावना
अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से एक छोटे से आंदोलन को एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल में बदला और दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी जैसी बड़ी पार्टियों को धूल चटाई, उसे ‘दिल्ली वाला खेल’ कहा जाता है. अब यही ‘खेल’ बिहार में होने की संभावना बढ़ गई है. अगर पीके की मुद्दों पर आधारित राजनीति सफल होती है, तो इसके कई बड़े असर हो सकते हैं. बिहार में दशकों से जातिगत राजनीति हावी रही है. अगर जनता जाति को छोड़कर रोजगार और शिक्षा के मुद्दों पर वोट देना शुरू कर देती है तो आरजेडी और जेडीयू जैसी पार्टियों के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी.
पीके की पार्टी जन सुराज कुछ सीटें भी जीतती है तो वह बिहार में किंगमेकर की भूमिका में आ सकती है. इससे न केवल एनडीए और महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ेंगी, बल्कि पीके अपने एजेंडे को लागू करने के लिए भी दबाव बना सकते हैं. पीके की यह रणनीति सभी राजनीतिक दलों को मजबूर कर रही है कि वे अपने एजेंडे में बदलाव करें. कांग्रेस, आरजेडी, बीजेपी और जेडीयू अब सभी अपने भाषणों में रोजगार और शिक्षा पर बात करने लगे हैं.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
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First Published :
September 10, 2025, 18:13 IST