भारत की विशाल और विविध भौगोलिक सीमाएं देश की सुरक्षा के लिए अनूठी चुनौती प्रस्तुत करती हैं. भारत की सीमाएं रेगिस्तानी मैदानों, हिमालय की बर्फीली चोटियों से लेकर बांग्लादेश की हरी-भरी सीमाओं तक फैली हुई हैं. भारत की इन सीमाओं की सुरक्षा का जिम्मा मुख्य रूप से अर्धसैनिक बलों के कंधों पर है. सीमा पर सीमा सुरक्षा बल (BSF), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) और सशस्त्र सीमा बल (SSB) को तैनात किया जाता है.
लेकिन सवाल उठता है कि सीमा सुरक्षा के लिए अर्धसैनिक बलों को क्यों चुना जाता है? अर्धसैनिक बल विशेष रूप से सीमा सुरक्षा के लिए प्रशिक्षित होते हैं. इनका मुख्य काम सीमा पर घुसपैठ, तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों को रोकना है. जो युद्धकालीन सैन्य अभियानों से अलग है. सेना का पहला काम राष्ट्रीय सुरक्षा और युद्ध की स्थिति में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियानों को संचालित करना है. क्या यह प्रथा वैश्विक स्तर पर भी प्रचलन में है? हां, अमेरिका और रूस समेत ज्यादातर देश अपनी सीमाओं पर सेना नहीं बल्कि अर्धसैन्य बल ही तैनात रखते हैं.
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ज्यादातर देश करते हैं ऐसा
दुनिया के कई देश सीमा सुरक्षा के लिए अर्धसैनिक बलों या समान बलों का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि इसका ढांचा और नाम हर देश में भिन्न हो सकता है. जैसे अमेरिका में यूएस बार्डर पेट्रोल मेक्सिको और कनाडा की सीमाओं पर तैनात है. रूसी सीमा सेवा रूस में सीमा सुरक्षा की जिम्मेदारी लेती है. यह रूसी सेना से अलग एक अर्धसैनिक बल है. चीन में पीपुल्स आर्म्ड पुलिस, सीमा सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए तैनात होती है. पाकिस्तान में पाकिस्तान रेंजर्स और फ्रंटियर काेर जैसे अर्धसैनिक बल भारत और अफगानिस्तान सीमा पर तैनात हैं. हालांकि, कुछ छोटे देशों में सेना ही सीमा सुरक्षा का काम संभालती है. क्योंकि उनके पास अलग से अर्धसैनिक बल नहीं होते.
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अर्धसैनिक बलों की भूमिका और महत्व
बीएसएफ भारत-पाकिस्तान और भारत-बांग्लादेश सीमाओं की रक्षा करती है. यह दुनिया के सबसे बड़े अर्धसैनिक बलों में से एक है. इसके पास लगभग 2.65 लाख जवान हैं जो 6,385 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा की निगरानी करते हैं. आईटीबीपी भारत-चीन सीमा (वास्तविक नियंत्रण रेखा, LAC) की रक्षा करती है. इसे विशेष रूप से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है. एसएसबी नेपाल और भूटान सीमाओं की देखभाल करती है. ये स्थानीय समुदायों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
लागत और रिसोर्स मैनेजमेंट
सेना की तैनाती और रखरखाव महंगा होता है. इसे सीमाओं पर लंबे समय तक तैनात करने का मतलब रिसोर्सेज का ज्यादा इस्तेमाल करना होता है. अर्धसैनिक बलों को कम लागत में सीमा सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.अर्धसैनिक बल हल्के हथियारों और ऐसे उपकरणों के साथ काम करते हैं जो लागत को कम करता है. जबकि सेना के टैंक, तोपखाने और अन्य भारी हथियारों के उपयोग से संसाधनों का ज्यादा उपयोग होता है. सेना को रणनीतिक और युद्धक तैयारियों के लिए रिजर्व रखा जाता है. ताकि वो जरूरत पड़ने पर तुरंत बड़े अभियानों में लग सके.
कानूनी और प्रशासनिक ढांचा
भारत में अर्धसैनिक बल गृह मंत्रालय के अधीन होते हैं. यह मंत्रालय सीमा और आंतरिक सुरक्षा से संबंधित मामलों को देखता है. सेना रक्षा मंत्रालय के अधीन होती है और मुख्य रूप से बाहरी युद्धों के लिए जिम्मेदार है. यह प्रशासनिक विभाजन सुनिश्चित करता है कि सीमा पर शांतिकाल में सिविल प्रशासन और सुरक्षा बलों के बीच समन्वय बना रहे.
स्थानीय और क्षेत्रीय विशेषज्ञता
प्रत्येक अर्धसैनिक बल को विशिष्ट सीमाओं के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. उदाहरण के लिए आईटीबीपी के जवान हिमालय के कठिन इलाकों में ऑक्सीजन की कमी और अत्यधिक ठंड में कार्य करने के लिए प्रशिक्षित हैं. इसी तरह बीएसएफ के जवान रेगिस्तानी और दलदली क्षेत्रों में निगरानी के लिए विशेषज्ञता रखते हैं. यह स्थानीय विशेषज्ञता उन्हें सेना से अलग बनाती है, जो सामान्य रूप से व्यापक सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करती है. इसके अलावा अर्धसैनिक बलों को सांस्कृतिक और सामरिक पहलुओं के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है.
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युद्ध की स्थिति में कोऑर्डिनेशन
युद्ध या आपातकाल की स्थिति में अर्धसैनिक बल सेना के साथ कोऑर्डिनेशन में काम करते हैं. सेना तब सीधे नियंत्रण ले सकती है. लेकिन शांतिकाल में अर्धसैनिक बल पहली रक्षा पंक्ति के रूप में काम करते हैं.
अपवाद और विशेष परिस्थितियां
भारत-चीन सीमा (एलएसी) जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में आईटीबीपी के साथ-साथ भारतीय सेना की टुकड़ियां भी तैनात होती हैं. क्योंकि यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और विवादित है. आतंकवाद या युद्ध की स्थिति में सेना की तैनाती बढ़ जाती है. गलवान घाटी जैसे क्षेत्रों में 2020 के संघर्ष के बाद सेना की तैनाती बढ़ाई गई है. जैसा कि भारत-पाकिस्तान सीमा यानी एलओसी (नियंत्रण रेखा) के मामले में देखा जाता है. यहां बीएसएफ और दोनों सेना मिलकर काम करते हैं. क्योंकि यह क्षेत्र आतंकवादी घुसपैठ और युद्ध की स्थिति के लिए संवेदनशील है.
क्या हैं चुनौतियां
अर्धसैनिक बलों के सामने कई चुनौतियां हैं. जैसे अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, कठिन भौगोलिक परिस्थितियां और सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों के साथ तनाव. हाल के वर्षों में सरकार ने इन बलों के आधुनिकीकरण के लिए कदम उठाए हैं, जिसमें ड्रोन, निगरानी उपकरण और बेहतर हथियार शामिल हैं. जैसे-जैसे भू-राजनीतिक परिस्थितियां बदल रही हैं. भारत को अपने अर्धसैनिक बलों को और सशक्त करने की जरूरत है. ताकि सीमाए़ं सुरक्षित और देश की संप्रभुता कायम रहे.