नई दिल्ली (Boarding School vs Day School). ज्यादातर पेरेंट्स बच्चे के शैतानी करने पर उसे हॉस्टल भेजने की धमकी देते हैं, जिसे बच्चा सजा समझने लगता है. कई बच्चे सिर्फ इस वजह से भी हॉस्टल जाने के नाम पर ही घबरा जाते हैं. पेरेंट्स के लिए भी यह फैसला लेना आसान नहीं होता है. डे स्कूल और बोर्डिंग स्कूल के बीच बहस आम है. यह डिबेट के लिए बेहतरीन विषय है. अगर आप भी डे स्कूल और बोर्डिंग स्कूल के बीच कंफ्यूज हो रहे हैं तो इन दोनों के फायदे और नुकसान समझना जरूरी है.
डे स्कूल में बच्चे 6-8 घंटे पढ़ाई और अन्य एक्टिविटीज करके घर वापस आ जाते हैं. फिर बाकी का दिन अपने परिवार के साथ बिताते हैं. वहीं, बोर्डिंग स्कूल यानी हॉस्टल. यहां बच्चे स्कूल में पढ़ाई करके संस्थान के ही हॉस्टल में रहते हैं. Shrewsbury School India के फाउंडर और प्रेसिडेंट अभिषेक मोहन गुप्ता से समझिए, डे स्कूल और बोर्डिंग स्कूल के बीच कुछ खास अंतर. इससे आपको सही फैसला लेने में मदद मिलेगी.
बोर्डिंग स्कूल और डे स्कूल में क्या अंतर है?
बोर्डिंग स्कूल और डे स्कूल के बीच कई बड़े अंतर हैं. दोनों का बेसिक स्ट्रक्चर ही अलग है.
बोर्डिंग स्कूल: बच्चे स्कूल परिसर में हॉस्टल में रहते हैं और वहीं पढ़ाई-लिखाई और अन्य एक्टिविटीज करते हैं. माता-पिता से संपर्क सीमित होता है और मुलाकात सिर्फ छुट्टियों में.
डे स्कूल: बच्चे दिन में स्कूल जाते हैं और पढ़ाई के बाद घर लौट आते हैं. उन्हें अपने परिवार के साथ रहने का अवसर मिलता है.
स्वतंत्रता और अनुशासनबोर्डिंग स्कूल: बच्चे माता-पिता की देखरेख के बिना रहते हैं. इसलिए उन्हें आत्मनिर्भरता, टाइम मैनेजमेंट और डिसिप्लन सीखने के ज्यादा अवसर मिलते हैं.
डे स्कूल: बच्चे माता-पिता की निगरानी में रहते हैं, जिससे स्वतंत्रता कम हो सकती है, लेकिन फैमिली सपोर्ट ज्यादा मिलने से पारिवारिक वैल्यू और इमोशनल स्टेबिलिटी बढ़ती है.
सोशल और एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटीजबोर्डिंग स्कूल: बच्चे दिन-रात क्लासमेट्स और दोस्तों के साथ रहते हैं, जिससे दोस्ती, सहयोग और सोशल स्किल्स मजबूत होती हैं. खेल, कला और अन्य एक्टिविटीज के लिए ज्यादा समय मिलता है.
डे स्कूल: एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटीज अक्सर स्कूल के समय तक सीमित रहती हैं. बच्चे घर पर दूसरी तरह की एक्टिविटीज में शामिल होकर ग्रो कर सकते हैं.
फैमिली कनेक्शनबोर्डिंग स्कूल: लंबे समय तक परिवार से दूरी के कारण इमोशनल जुड़ाव कम हो सकता है, खासकर छोटे बच्चों के लिए.
डे स्कूल: बच्चे रोज़ाना परिवार के साथ समय बिताते हैं, जिससे उन्हें इमोशनल और मॉरल सपोर्ट खूब मिलता है.
खर्च
बोर्डिंग स्कूल: फीस ज्यादा होती है. इनकी फीस में रहने, खाने, एक्टिविटीज और अन्य सुविधाओं का खर्च शामिल होता है.
डे स्कूल: बोर्डिंग स्कूल यानी हॉस्टल की तुलना में कम खर्चीला. य़हां सिर्फ ट्यूशन और कुछ अन्य शुल्क देने होते हैं.
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बच्चे के डेवलपमेंट के लिए क्या बेहतर?
यह बच्चे की उम्र, पर्सनालिटी, पारिवारिक स्थिति और माता-पिता के गोल्स पर निर्भर करता है. दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं:
बोर्डिंग स्कूल के फायदे
आत्मनिर्भरता: बच्चे खुद फैसले लेना, टाइम मैनेजमेंट और जिम्मेदारी संभालना सीखते हैं.
ग्लोबल एनवायर्मेंट: कई बोर्डिंग स्कूलों में विविध संस्कृतियों के बच्चे होते हैं. इससे बच्चों को अलग-अलग कल्चर की चीजें सीखने-समझने का मौका मिलता है.
संपूर्ण विकास: पढ़ाई के साथ-साथ खेल, कला और लीडरशिप स्किल्स पर फोकस किया जाता है.
नेटवर्किंग: क्लासमेट्स और टीचर्स के साथ गहरे रिश्ते बनते हैं, जिनका भविष्य में भी अच्छा फायदा मिल सकता है.
बच्चे को हॉस्टल किस उम्र में भेजें?
बच्चे को हॉस्टल भेजने के लिए कोई उम्र तय नहीं है. आमतौर पर यह फैसला बच्चे की समझ, पारिवारिक स्थिति और कई अन्य फैक्टर्स को आधार बनाकर लेना चाहिए. आप चाहें तो किसी काउंसलर से बात करके भी सही फैसला ले सकते हैं.
हॉस्टल के नुकसान
छोटे बच्चों (10 साल से कम) के लिए परिवार से दूरी इमोशनल तौर पर चैलेंजिंग साबित हो सकती है. कुछ बच्चों को हॉस्टल की स्ट्रिक्ट लाइफस्टाइल से स्ट्रेस हो सकता है. माता-पिता का बच्चों की लाइफ में हस्तक्षेप कम हो सकता है.यह भी पढ़ें- AI और डेटा साइंस ने बदल दिया बीटेक का खेल, फीकी हो गई इन कोर्सेस की चमक
डे स्कूल के फायदे
फैमिली सपोर्ट: बच्चे माता-पिता और भाई-बहनों के साथ रहते हैं, जिससे इमोशनल स्टेबिलिटी मिलती है. फ्लेक्सिबिलिटी: बच्चे स्कूल के बाद अपने शौक, ट्यूशन या अन्य एक्टिविटीज में टाइम इनवेस्ट कर सकते हैं. कम खर्च: बोर्डिंग स्कूल की तुलना में आर्थिक रूप से ज्यादा किफायती. माता-पिता की निगरानी: माता-पिता बच्चे की पढ़ाई, व्यवहार और दोस्तों पर नजर रख सकते हैं.डे स्कूल के नुकसान
बच्चे को स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता सीखने के कम अवसर मिल सकते हैं. कुछ डे स्कूलों में एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटीज और रिसोर्सेस की कमी हो सकती है. माता-पिता पर बच्चे की पढ़ाई और एक्टिविटीज को व्यवस्थित करने का बोझ होता है.
काम की बात
1- बच्चे की उम्र और व्यक्तित्व: 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए डे स्कूल बेहतर हो सकता है क्योंकि उन्हें परिवार की जरूरत ज्यादा होती है.
2- बच्चे की राय: बच्चे से बात करें कि वह कहां ज्यादा कंफर्टेबल महसूस करता है. कुछ बच्चे फ्रीडम पसंद करते हैं, जबकि कुछ को परिवार की जरूरत होती है.
3- स्कूल की क्वॉलिटी: दोनों ऑप्शंस में स्कूल की टीचिंग क्वॉलिटी, टीचर-स्टूडेंट रेशियो, बेसिक स्ट्रक्चर और को-करिकुलर एक्टिविटीज चेक करें.
4- परिवार की स्थिति: अगर पेरेंट्स जॉब या बिजनेस में बिजी रहते हैं तो बोर्डिंग स्कूल बेहतर ऑप्शन हो सकता है. अगर परिवार बच्चे के साथ समय बिता सकता है तो डे स्कूल बेस्ट है.
5- अंतिम सलाह: दोनों तरह के स्कूल विजिट करें, शिक्षकों और अन्य माता-पिता से बात करें और बच्चे की जरूरतों के आधार पर निर्णय लें. बच्चे की मेंटल और इमोशनल हेल्थ को सबसे ऊपर रखें.