अमेरिका में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप फाइट करवाने की तैयारी कर रहे हैं. ठीक इसी वक्त रूस ने अमेरिका के दुश्मन तालिबान का मास्को में ग्रैंड वेलकम किया है. रूस ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता दे दी है. पुतिन के इस फैसले से दुनिया की राजनीति में बड़ा असर पड़ सकता है. क्योंकि अब तक किसी भी देश ने तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी थी. अब रूस के फैसले के बाद तालिबान को मान्यता देने वाले देशों की संख्या बढ़ सकती है.
रूस का दूरदर्शी फैसला!
आज आपको भी जानना चाहिए आखिरकार किसी जमाने में रूस के खिलाफ जंग लड़ने वाले मुजाहिदीनों ने जिस तालिबान को बनाया, आज रूस उसे ही मान्यता क्यों दे रहा है और इसका पूरे क्षेत्र में क्या रणनीतिक असर पड़ेगा. सबसे पहले आपको समझना चाहिए, रूस ने कौन से बड़े कदम उठाकर तालिबान को मान्यता दी.
-रूस ने तालिबान को आतंकवादी संगठनों की लिस्ट से हटा दिया.
-इससे कानूनी रूप से रूस के लिए तालिबान से सीधे कूटनीतिक, आर्थिक, और रक्षा संबंध बनाना आसान हो गया.
-रूस ने तालिबान के नए राजदूत गुल हसन को अफगानिस्तान का राजदूत स्वीकार किया.
-यानि रूस ने औपचारिक रूप से तालिबान सरकार को अफगानिस्तान की वैध सरकार मान लिया.
-इसके अलावा काबुल में रूसी राजदूत और अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की मुलाकात हुई.
- यानि रूस की मान्यता से तालिबान की वैधता की प्रक्रिया शुरू हो गई और अब ये दूसरे देशों के लिए भी मिसाल बनेगी.
चलिए अब आप ये भी समझिए, इससे तालिबान को क्या क्या फायदे होंगे?
- अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद पहली बार किसी बड़ी पावर से तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता मिली है.
- इससे चीन, ईरान, तुर्की, और मध्य एशिया के देशों पर भी तालिबान को मान्यता देने का दबाव बढ़ेगा.
- अफगानिस्तान के लिए विदेशी निवेश, ट्रेड और सहायता के रास्ते खुल सकते हैं.
- भारत जो पहले भी अफगानिस्तान में बड़े निवेश करता रहा है. और तालिबान से संबंध सुधार रहा है. अफगानिस्तान में बड़े निवेश कर सकता है
लेकिन अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता देकर रूस ने अमेरिका को सबसे बड़ा झटका दिया है. आपको पुतिन के इस कदम से रूस को होने वाले फायदों के बारे में भी जानना चाहिए .
-तालिबान को मान्यता अमेरिका और नाटो के खिलाफ रूस की बड़ी कूटनीतिक जीत है.
- इससे अफगानिस्तान में रूस की स्थिति काफी मजबूत हो जाएगी.
- और दुनिया में तालिबान को अलग-थलग करने की अमेरिकी नीति कमजोर होगी.
- रूस का पूर्व सोवियत देशों ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान में प्रभाव बढ़ेगा.
-ISIS खुरासान जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ रूस तालिबान से सुरक्षा सहयोग कर सकेगा. रूस को डर है कि अफगानिस्तान में ISIS-खुरासान जैसे गुट चेचन्या, दागेस्तान, ताजिकिस्तान के कट्टरपंथ को बढ़ा सकते हैं.
- इसके अलावा अफगानिस्तान के खनिज संसाधन के ठेके अब रूसी कंपनियों को मिलेंगे.
- चीन भी तालिबान से समझौत कर चुका है. अब चीन के साथ मिलकर दक्षिण और मध्य एशिया में रूस अमेरिकी प्रभाव को कम करने की कोशिश भी करेगा.
डॉनल्ड ट्रंप बेचैन
यानी पुतिन ने तालिबान को मान्यता देकर एक मास्टर स्ट्रोक खेला है. जिससे अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप बहुत ज्यादा बेचैन होंगे. अमेरिका के प्रभाव के कारण अब तक किसी भी देश ने तालिबान को औपचारिक मान्यता नहीं दी थी. लेकिन तालिबान ने कई देशों के साथ उच्च स्तरीय बातचीत की है. वहीं चीन, पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात सहित कुछ देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं. आपरेशन सिंदूर के बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी तालिबान के विदेश मंत्री से फोन पर बातचीत की थी. ये भारत और तालिबान सरकार के बीच अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करने के बाद पहली बार विदेश मंत्री स्तर की बातचीत थी. जिस तरह भारत और तालिबान सरकार के बीच संबंध सुधर रहे हैं, माना जा रहा है अगर दुनिया की बड़ी शक्तियां तालिबान सरकार को मान्यता देती हैं तो भारत सरकार भी इस बारे में सोच सकती है.