'पापा... पापा...' डेढ़ साल की वो गुड़िया और खामोश पिता, कलेजा चीर देगा ये मंजर

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Last Updated:December 18, 2025, 00:05 IST

शहीद अमजद खान की डेढ़ साल की बेटी ताबूत के पास पापा को जगाने की मासूम कोशिश करती रही, लेकिन अमजद खान अब हमेशा के लिए खामोश हो गए हैं.

'पापा... पापा...' डेढ़ साल की वो गुड़िया और खामोश पिता, कलेजा चीर देगा ये मंजरमासूम बेटी की पुकार...

महज डेढ़ साल की उम्र… अभी तो जुबान भी ठीक से नहीं खुली है. दुनिया क्या है, जंग क्या है, शहादत क्या है… उसे कुछ नहीं पता. उसे बस इतना पता है कि सामने लकड़ी के उस बक्से में, सफेद कफन और तिरंगे के बीच जो चेहरा नजर आ रहा है, वो उसके पापा हैं. लाल स्वेटर में लिपटी शहीद अमजद की मासूम बेटी को जब अंतिम दर्शन के लिए पिता के करीब लाया गया, तो उसे लगा कि पापा गहरी नींद में हैं. जगाने की कोश‍िश करती है. पापा… पापा… लेकिन तोतली जुबान से निकले ये दो शब्‍द कलेजा चीर देते हैं.

शायद उसे लगा होगा कि पापा सो रहे हैं. जैसे रोज थककर आते थे और सो जाते थे. उसे लगा होगा कि अभी एक पुकार पर वो आंखें खोल देंगे, अभी अपनी मजबूत बाहों में उसे भरकर हवा में उछाल देंगे. शायद उसकी आवाज में शिकायत है. एक जिद है. पापा, आप बात क्यों नहीं कर रहे? पापा, आप मुझे देख क्यों नहीं रहे?

वहां मौजूद सेना के सख्त जान कमांडो, जिन्होंने न जाने कितनी बार मौत को करीब से देखा है, वो भी अपनी नजरें फेर लेते हैं. उनकी आंखों से आंसू नहीं रुकते. गांव की महिलाएं दहाड़ें मार कर रो रही हैं, लेकिन यह बच्ची चुप है. बस टुकुर-टुकुर पिता को देख रही है. बीच-बीच में उसे हैरानी होती है… सब रो क्यों रहे हैं? पापा उठ क्यों नहीं रहे?

शहीद अमजद खान… जो उधमपुर में आतंकियों के लिए काल बन गए थे, जो गोलियों की बौछार के बीच सीना तान कर खड़े रहे… आज अपनी लाडली की इस मासूम पुकार के सामने खामोश लेटे हैं. क्या गुजर रही होगी उस पिता की आत्मा पर, जो अपनी गुड़िया को जवाब नहीं दे पा रहा?

यह तस्वीर हमसे सवाल पूछती है. हम जो अपने घरों में सुरक्षित बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ खबरों पर बहस करते हैं, क्या हम कभी इस डेढ़ साल की बच्ची का दर्द महसूस कर सकते हैं? उसकी पूरी दुनिया उस ताबूत में सिमट गई है. वह बड़ी होगी, तो उसे बताया जाएगा कि तुम्हारे पापा ‘हीरो’ थे. लेकिन आज… आज उसे हीरो नहीं, उसे उसका ‘पापा’ चाहिए.

ताबूत को उठाने का वक्त आ गया है. बच्ची को पीछे हटाया जाता है. उसकी नजरें अभी भी उसी चेहरे पर टिकी हैं. वह शायद सोच रही है, पापा मुझे छोड़कर कहां जा रहे हैं?

यह विदाई नहीं है. यह एक कर्ज है जो आज इस डेढ़ साल की बच्ची ने पूरे देश पर चढ़ा दिया है. उसकी वो तोतली पापा… पापा… की आवाज, इस देश की हवाओं में हमेशा गूंजनी चाहिए, ताकि हमें याद रहे कि हमारी आजादी मुफ्त में नहीं मिली है. इसे अमजद खान जैसे शूरवीरों के लहू और उनकी बेटियों के आंसुओं ने सींचा है.

पापा नहीं उठे, गुड़िया… वो अब आसमान से तुम्हें देखेंगे. तुम रोना मत. तुम एक शेर की बेटी हो.

और हां, एक सवाल उन लोगों से जो आतंक‍ियों के समर्थन में छाती पीटते नजर आते हैं. रात में कोर्ट खुलवा देते हैं. सड़कों पर उपद्रव करते हैं… उनसे पूछना है, क्‍या तुम्‍हारे आंसू नहीं आए? अगर नहीं तो तुम जानवर हो… अगर नहीं तो तुममें न इंसान‍ियत है, न मानवता… तुम क‍िसी के नहीं हो सकते… हम यह वीडियो दिखा नहीं सकते, वरना तुमसे पूछते… तुम्‍हारे साथ ये हो जाए तब भी क्‍या तुम ऐसे ही जानवर बने रहते…

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Gyanendra Mishra

Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें

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Delhi,Delhi,Delhi

First Published :

December 18, 2025, 00:05 IST

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