पहले उद्योगमंत्री के तौर पर श्यामा मुखर्जी ने किया खूब काम, नेहरू ने भी सराहा

9 hours ago

जनसंघ के संस्थापक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी देश के पहले उद्योग और आपूर्ति मंत्री थे. उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र भारत तीन साल तक मंत्री के रूप में अपनी भूमिका निभाई. कई अहम काम किए, जो बाद में भारत के औद्योगिक विकास में मील का पत्थर भी साबित हुए.

6 जुलाई 1901 को जन्मे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय राजनीति, शिक्षा और राष्ट्रवाद के इतिहास में एक अमिट अध्याय हैं. आज उनकी 125वीं जयंती है.

श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म कोलकाता के एक प्रतिष्ठित और शिक्षित परिवार में हुआ. उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल के प्रसिद्ध शिक्षाविद, न्यायविद और कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे.

26 साल की उम्र में कुलपति बन गए

मुखर्जी की शुरुआती पढ़ाई कोलकाता में हुई. केवल 23 वर्ष की आयु में वह कानून में स्नातक बन गए. फिर इंग्लैंड से बैरिस्टर की उपाधि हासिल की. 26 वर्ष की आयु में वे कोलकाता विश्वविद्यालय के सबसे युवा उपकुलपति बने. ये आज भी रिकॉर्ड है.

मुखर्जी को पहला उद्योग और आपूर्ति मिनिस्टर बनाया गया

1941 में वह बंगाल प्रांत के वित्त मंत्री बने. 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी. मुखर्जी को भारत का पहला उद्योग और आपूर्ति मंत्री बनाया गया. मुखर्जी ने स्वतंत्र भारत की औद्योगिक नीति की आधारशिला रखी.

बड़े उद्योगों की नींव रखी

मुखर्जी ने भारतीय उद्योगों को आत्मनिर्भर बनाने और आधुनिक तकनीकों को अपनाने पर बल दिया. हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड जैसी बड़ी औद्योगिक परियोजनाओं की नींव रखी, जो बाद में भारत के औद्योगिक विकास में मील का पत्थर साबित हुई. उन्होंने 1948 में भारत की पहली औद्योगिक नीति तैयार की. यह नीति सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के संतुलित विकास पर केंद्रित थी.

सिंदरी फर्टिलाइजर उनकी पहल पर शुरू

उनकी पहल पर ही सिंदरी फर्टिलाइजर प्लांट और कई सार्वजनिक उपक्रमों की नींव रखी गई, जो आगे चलकर भारत के औद्योगिक विकास की रीढ़ बने.

लघु उद्योगों को भी बढ़ाया

मुखर्जी ने भारी उद्योगों की स्थापना और छोटे उद्योगों के विकास को प्राथमिकता दी, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा हुए. हथकरघा और लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया. छोटे और पारंपरिक उद्योगों को प्रोत्साहित किया. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और हस्तशिल्प उद्योगों को संरक्षित करने पर जोर दिया.

नेहरू ने उनकी औद्योगिक नीति की सराहना की

कुछ ऐतिहासिक संदर्भों में यह दर्ज है कि नेहरू ने डॉ. मुखर्जी के प्रशासनिक कौशल और औद्योगिक नीति में योगदान की सराहना की थी, विशेषकर 1947-48 के दौर में. 1948 में जब भारत की पहली औद्योगिक नीति का प्रारूप प्रस्तुत हुआ, तो नेहरू ने लोकसभा में मुखर्जी के प्रयासों को “व्यावहारिक और दूरदर्शी” बताया.

नेहरू ने 1950 में मुखर्जी के इस्तीफे के बाद भी संसद में एक बार कहा था,

“डॉ. मुखर्जी एक प्रखर बुद्धिजीवी, सक्षम प्रशासक और राष्ट्र के प्रति समर्पित नेता हैं. यद्यपि हमारी वैचारिक राहें अलग हैं, परंतु उनके योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता.”

हालांकि दोनों में एक ही सरकार में होने के नाते परस्पर सहयोग भी था लेकिन दोनों के बीच संसद में तीखी बहसें भी होती थीं. डॉ. मुखर्जी ने एक बार कहा था,

“मैं नेहरू जी के राष्ट्रप्रेम पर कभी संदेह नहीं करता, परंतु मैं उनकी नीति को भारत के दीर्घकालिक हित में नहीं मानता.”

आज भी नीतियां प्रासंगिक

मुखर्जी का दृष्टिकोण भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना था. उन्होंने भारत को आयात पर निर्भरता कम करने और स्वदेशी उत्पादन को बढ़ाने की नीति अपनाई. उन्होंने पहले उद्योग मंत्री के रूप में जो आर्थिक, औद्योगिक और राष्ट्रीय नीतियां बनाईं, वो आज भी प्रासंगिक हैं.

नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा

मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल में रहते हुए कश्मीर, धर्म, और राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों पर अपनी स्पष्ट और साहसिक राय दी. हालांकि, उनके और नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद थे, विशेषकर कश्मीर के विशेष दर्जे (अनुच्छेद 370) के विषय में. मुखर्जी ने कश्मीर मुद्दे और नेहरू की नीतियों से असहमति के कारण 1950 में मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. उनका मानना था कि अनुच्छेद 370 भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा है.

जनसंघ की स्थापना

1951 में मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की. यही आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी के रूप में विकसित हुआ, जो पार्टी आज भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति है. मुखर्जी ने कश्मीर में ‘दो निशान, दो विधान, दो प्रधान’ का विरोध करते हुए 1953 में आंदोलन छेड़ा. वे बिना परमिट कश्मीर गए. तत्कालीन सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद किया.

संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु

23 जून 1953 को संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई. मुखर्जी की मृत्यु को आज भी राजनीतिक षड्यंत्र और रहस्य से जोड़ा जाता है. उनकी शहादत ने राष्ट्रवादी ताकतों को संगठित किया. कश्मीर मुद्दे पर देशभर में जागरूकता आई.

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