दंगा क‍िया तो जमानत, 'अपमान' पर 7 साल जेल, कर्नाटक के कानून पर सवाल क्‍यों?

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Last Updated:December 18, 2025, 20:15 IST

कर्नाटक में एंटी हेट स्‍पीच बिल विधानसभा में पास हो गया है. कानून का मूल उद्देश्य चाहे नफरत रोकना हो, लेकिन जिस तरह से इसमें 7 साल की सजा, मृत व्यक्तियों के अपमान पर केस, और किताबों को भी दायरे में लाया गया है, वह डराने वाला है. एक लोकतांत्रिक देश में, जहां बोलने की आजादी एक मौलिक अधिकार है, वहां चोरी और दंगे से ज्यादा सजा बोलने पर होना एक गंभीर चिंता का विषय है.

दंगा क‍िया तो जमानत, 'अपमान' पर 7 साल जेल, कर्नाटक के कानून पर सवाल क्‍यों?कर्नाटक में एंटी हेट स्‍पीच बिल पेश पास क‍िया गया है.

बेंगलुरु. जरा सोचिए, आपने किसी का बटुआ चुरा लिया या सड़क पर दंगा किया, तो कानून आपको थाने से ही या कोर्ट से आसानी से जमानत दे सकता है. लेकिन अगर आपने सोशल मीडिया पर कुछ ऐसा लिख दिया जिससे किसी को ‘भावनात्मक चोट’ पहुंची, तो आपको सीधे जेल भेजा जा सकता है. और जमानत भी आसानी से नहीं मिलेगी. यह कोई मजाक नहीं, बल्कि कर्नाटक विधानसभा में गुरुवार को पारित हेट स्‍पीच कानून है. सोशल मीडिया में लोग इसे काला कानून कह रहे. कुछ ने तो यहां तक कहा, दंगा क‍िया तो जमानत, लेकिन डांट कर बोल द‍िया तो 7 साल जेल… गजब कानून है ये.

पहले जान‍िए कानून कहता क्‍या है? कर्नाटक विधानसभा ने गुरुवार को देश का पहला ‘एंटी-हेट स्पीच कानून’ (Hate Speech and Hate Crimes Prevention Bill) पारित कर दिया. इसका मकसद राज्य में नफरत भरे बयानों और सांप्रदायिक तनाव पर लगाम लगाना है, लेकिन इसके प्रावधान इतने सख्त और परिभाषाएं इतनी व्यापक हैं कि इसे लेकर डर का माहौल बन गया है. सबसे चौंकाने वाली बात सजा की अवधि है. इस बिल में दोषी पाए जाने पर 1 लाख रुपये तक का जुर्माना और 7 साल तक की जेल का प्रावधान है. पहले यह प्रस्ताव 10 साल की सजा का था, जिसे बाद में घटाकर 7 साल किया गया, लेकिन यह अभी भी सामान्य अपराधों की तुलना में बहुत ज्यादा है.

‘जिंदा या मुर्दा’ सब दायरे में

इस कानून की सबसे विवादित बात यह है कि इसमें हेट स्पीच का दायरा बहुत बढ़ा दिया गया है. बिल के अनुसार, कोई भी अभिव्यक्ति चाहे वह बोलकर हो, लिखकर हो, संकेतों में हो, या विजुअल हो. सोशल मीडिया के माध्‍यम से हो, अगर उसका इरादा किसी जीवित या मृत व्यक्ति, किसी वर्ग या समुदाय के खिलाफ चोट, वैमनस्य, दुश्मनी या नफरत की भावना पैदा करना है, तो वह अपराध माना जाएगा. यानी अब आप इतिहास के किसी पात्र या मृत नेता के बारे में भी अगर कुछ कड़वा बोलते हैं, और उससे किसी समूह की भावनाएं आहत होती हैं, तो यह कानून आप पर लागू हो सकता है.

असली अपराध vs बोलने का अपराध

इस कानून की खामियों को समझने के लिए हमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) या पुरानी IPC के तहत असली अपराधों की सजा और कर्नाटक के इस नए कानून की तुलना करनी होगी. विपक्ष के नेता आर. अशोक ने भी सदन में यही मुद्दा उठाया कि जब BNS में पहले से प्रावधान हैं, तो इस नए कानून की क्या जरूरत थी?


यानी अगर आप लाठी लेकर सड़क पर दंगा करते हैं, तो आपको कम सजा और जल्दी जमानत मिल सकती है. लेकिन अगर आपकी सोशल मीडिया पोस्ट या भाषण से किसी की भावनाएं आहत हो गईं, तो आप 7 साल के लिए सलाखों के पीछे जा सकते हैं.

विपक्ष का हमला- पुलिस बन जाएगी हिटलर

विधानसभा में बिल पास होते समय भारी हंगामा हुआ. विपक्ष के नेता आर. अशोक ने इस कानून को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया. उन्होंने कहा, यह कानून पुलिस को ‘हिटलर’ में बदल देगा. इसमें जमानत नहीं होगी, सिर्फ जेल होगी. हम उन लोगों से और क्या उम्मीद कर सकते हैं जिन्होंने इस देश पर इमरजेंसी थोपा था?

आर. अशोक ने चेतावनी दी कि यह कानून विपक्ष के खिलाफ ब्रह्मास्त्र है. उन्होंने कहा कि सबसे पहले विपक्ष इसका शिकार होगा और उसके बाद मीडिया की बारी आएगी. उन्होंने यह भी तंज कसा कि राज्य में इतनी जेलें नहीं हैं, जितनी इस कानून के तहत गिरफ्तारियों के लिए जरूरत पड़ेगी.

इस कानून की 5 सबसे खतरनाक बातें

भावनात्मक चोट और कार्टून भी दायरे में कानून में न केवल शब्द, बल्कि संकेतों और तस्वीरों को भी शामिल किया गया है. इसका मतलब है कि अखबारों में छपने वाले कार्टून या सोशल मीडिया मीम्स भी अब जेल जाने का कारण बन सकते हैं. भाजपा नेता आर. अशोक ने दावा किया कि यह डिजिटल स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी पर सीधा हमला है. धार्मिक किताबों का हवाला देना भी अपराध? बहस के दौरान एक बहुत ही पेचीदा सवाल सामने आया. भाजपा विधायक वी. सुनील कुमार ने पूछा कि अगर कोई किसी धार्मिक किताब से नफरत भरी सामग्री का हवाला देता है, तो क्या होगा? इस पर गृह मंत्री जी. परमेश्वर का जवाब चौंकाने वाला था. उन्होंने कहा, अतीत में प्रकाशित वे किताबें भी इस कानून के दायरे में आएंगी. इसका मतलब है कि अगर आप किसी पुरानी धार्मिक या ऐतिहासिक किताब का संदर्भ देते हैं जिसे सरकार नफरत भरा मानती है, तो आप पर केस दर्ज हो सकता है. जबरन वसूली का डर विपक्ष का आरोप है कि इस कानून का इस्तेमाल पुलिस और शरारती तत्व जबरन वसूली के लिए करेंगे. चूंकि यह कानून इतना सख्त है और इसमें जमानत मुश्किल है, इसलिए लोग पुलिस कार्यवाही से बचने के लिए पैसे देने को मजबूर हो सकते हैं. सरकार ने इस बिल को लाने के पीछे सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया है. गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है और कहा है कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. मंत्री ने तर्क दिया कि हेट स्पीच से हत्याएं होती हैं और सामाजिक अशांति फैलती है, इसलिए यह कानून समाज में बड़ा बदलाव लाएगा. लेकिन आलोचकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने नफरत रोकने को कहा था, अभिव्यक्ति की आजादी कुचलने को नहीं. बिल पर चर्चा के दौरान शहरी विकास मंत्री बायरथी सुरेश ने एक विवादित बयान दिया कि हेट स्पीच और हेट क्राइम के कारण कोस्‍टल कर्नाटक जल रहा है. इस पर भाजपा विधायकों ने तीखी प्रतिक्रिया दी और सदन के वेल में आकर माफी की मांग की. यह घटना खुद साबित करती है कि हेट स्पीच की परिभाषा कितनी राजनीतिक हो सकती है, एक पक्ष जिसे सच्चाई मानता है, दूसरा पक्ष उसे हेट स्पीच कह सकता है.

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Gyanendra Mishra

Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें

Location :

Bengaluru,Bengaluru,Karnataka

First Published :

December 18, 2025, 20:15 IST

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