टीएमसी या बीजेपी क‍िसके गढ़ में कटे ज्‍यादा वोट? बंगाल SIR क‍िसे कर गया खुश

3 hours ago

पश्चिम बंगाल की वोटर लिस्ट में 58 लाख नामों का कटना क‍िसी राजनीत‍िक भूचाल से कम नहीं. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिन जिलों में सबसे ज्यादा नाम कटे हैं, वे या तो सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) के अभेद्य किले हैं या फिर भाजपा के मजबूत गढ़. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सीट भवानीपुर और नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी की सीट नंदीग्राम के आंकड़ों में जमीन-आसमान का अंतर है. हम आपको उन ज‍िलों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां सबसे ज्‍यादा वोट कटे हैं और ये भी बताएंगे क‍ि अभी वहां क‍िसकी ताकत क‍ितनी है? वहां का सियासी समीकरण कैसा है?

1. कोलकाता (नॉर्थ और साउथ)
टीएमसी का गढ़, यहां सबसे ज्यादा वोट कटे हैं.

कोलकाता उत्तर: 25% नाम कटे (390390 वोटर) जो राज्य में सबसे अधिक प्रतिशत.

कोलकाता दक्षिण: 23.82% नाम कटे (2,16,150 वोटर).

राजनीतिक समीकरण: कोलकाता टीएमसी का सबसे मजबूत किला है. 2021 के विधानसभा चुनाव में, टीएमसी ने कोलकाता की सभी 11 सीटों पर क्लीन स्वीप किया था. भवानीपुर (ममता का गढ़)
यह कोलकाता दक्षिण का हिस्सा है. यहां कुल 2,06,295 वोटर थे, जिनमें से 44,787 (लगभग 21%) हटा दिए गए हैं. यह एक शहरी सीट है जहां बंगाली भद्रलोक, मारवाड़ी और गुजराती समुदाय का मिश्रण है. 2021 में ममता बनर्जी यहां से 58,000 से अधिक वोटों से जीती थीं.

नुकसान किसका?
कोलकाता में इतनी बड़ी संख्या में नाम कटना टीएमसी के लिए चिंता का विषय है. यहां बड़ी संख्या में प्रवासी और किराएदार रहते हैं. अगर कटे हुए नामों में टीएमसी के कोर वोटर (बस्ती में रहने वाले या अल्पसंख्यक) ज्यादा हैं, तो यह ममता के लिए झटका है. वहीं, कोलकाता उत्तर में हिंदी भाषी वोटरों का भी बड़ा तबका है जो भाजपा की तरफ झुकता रहा है, अगर उनके नाम कटे हैं तो भाजपा को नुकसान होगा.

2. दक्षिण 24 परगना
टीएमसी की लाइफलाइन

नाम कटे: 8,18,432 (9.52%).

राजनीतिक समीकरण: यह जिला टीएमसी की रीढ़ है. 2021 के चुनाव में, दक्षिण 24 परगना की 31 में से 30 सीटें टीएमसी ने जीती थीं. केवल एक सीट (भांगड़) आईएसएफ (ISF) के नौशाद सिद्दीकी ने जीती थी. भाजपा यहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी. जातीय/धार्मिक समीकरण: यहां लगभग 35% मुस्लिम आबादी है, जो टीएमसी का एकमुश्त वोट बैंक है. इसके अलावा, सुंदरबन के इलाकों में एससी/एसटी आबादी भी निर्णायक है.

क‍िसे फायदा नुकसान
8 लाख से ज्यादा नाम कटना बहुत बड़ी बात है. कैनिंग, डायमंड हार्बर (अभिषेक बनर्जी की संसदीय सीट) जैसे इलाकों में नाम कटे हैं. यदि ये नाम अल्पसंख्यक समुदाय के हैं, तो टीएमसी इसे एनआरसी के डर से जोड़ेगी. यह जिला टीएमसी को भारी बढ़त दिलाता रहा है, इसलिए यहां की कटौती सीधे सत्ता पक्ष के मार्जिन को प्रभावित करेगी.

3. उत्तर 24 परगना
मतुआ और अल्पसंख्यक फैक्टर

नाम कटे: 7,92,133 (9.54%)

राजनीतिक समीकरण: यह बंगाल का सबसे बड़ा जिला है और यहां 33 विधानसभा सीटें हैं. 2021 में टीएमसी ने यहां जबरदस्त प्रदर्शन किया था, लेकिन भाजपा ने बैरकपुर और बनगांव बेल्ट में अपनी पकड़ बनाए रखी थी. मतुआ समुदाय: इस जिले में मतुआ समुदाय (दलित शरणार्थी) की बड़ी आबादी है, जो बनगांव और आसपास की सीटों पर हार-जीत तय करते हैं. भाजपा का सीएए (CAA) का दांव इसी वोट बैंक के लिए है.

क‍िसे फायदा क‍िसे नुकसान
अगर कटे हुए नामों में मतुआ समुदाय के लोग ज्यादा हैं, तो भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बनाएगी. वहीं, अगर सीमावर्ती इलाकों (बशीरहाट आदि) से नाम कटे हैं, तो यह टीएमसी के अल्पसंख्यक वोट बैंक पर चोट हो सकती है. 2021 में भाजपा ने यहां मतुआ गढ़ में सीटें जीती थीं, लेकिन टीएमसी ने शहरी और मिश्रित आबादी वाले इलाकों में क्लीन स्वीप किया था.

4. मुर्शिदाबाद: अल्पसंख्यक बहुल
कांग्रेस का ढहता किला

नाम कटे: 2,78,837 (4.84%).

राजनीतिक समीकरण: मुर्शिदाबाद में 66% से अधिक मुस्लिम आबादी है. कभी यह कांग्रेस और अधीर रंजन चौधरी का अभेद्य किला था, लेकिन 2021 में टीएमसी ने इसे ध्वस्त कर दिया. जिले की 22 में से 20 सीटें टीएमसी ने जीती थीं, जबकि भाजपा को 2 मिली थीं. कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था.

क‍िसे फायदा क‍िसे नुकसान
यहां 4.84% की कटौती भले ही प्रतिशत में कम लगे, लेकिन संख्या (ढाई लाख से ऊपर) बड़ी है. यहां नाम कटना बेहद संवेदनशील है क्योंकि यहां घुसपैठ और नागरिकता का मुद्दा हमेशा गर्म रहता है. टीएमसी के लिए यह जिला अब बहुत महत्वपूर्ण है, और यहां नाम कटने का मतलब है उनके ठोस वोट बैंक में सेंधमारी.

5. पश्चिम वर्धमान
हिंदी भाषी और औद्योगिक क्षेत्र

नाम कटे: 3,06,146 (13.1%).

राजनीतिक समीकरण: यह जिला आसनसोल-दुर्गापुर औद्योगिक बेल्ट है. यहां हिंदी भाषियों और बाहरी राज्यों से आए श्रमिकों की बड़ी संख्या है. 2021 में यहां मुकाबला कांटे का था, लेकिन टीएमसी ने बढ़त बनाई थी. वजह: 13% नाम कटना (कोलकाता के बाद सबसे ज्यादा) यह दर्शाता है कि यहां बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर थे जो शायद काम बंद होने या अन्य कारणों से चले गए, या वे ‘घोस्ट वोटर्स’ थे.

क्‍या हो सकता है असर
यह भाजपा के लिए चिंताजनक हो सकता है क्योंकि हिंदी भाषी वोटर पारंपरिक रूप से भाजपा का समर्थक माना जाता है. विधानसभा स्तर पर भाजपा यहां फाइट में रहती है.

6. उत्तर बंगाल (दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार)
भाजपा का ‘पावर हाउस’

दार्जिलिंग: 1,22,214 नाम कटे (9.45%).

जलपाईगुड़ी: 1,33,107 नाम कटे (6.95%).

कूचबिहार: 1,13,370 नाम कटे (4.55%).

दार्जिलिंग: यहां 9.45% नाम कटना बहुत अहम है. यहां गोरखा समुदाय और चाय बागान के मजदूरों का दबदबा है. दार्जिलिंग, कर्सियांग और सिलीगुड़ी में भाजपा के विधायक हैं. गोरखा समुदाय अपनी पहचान को लेकर बहुत संवेदनशील है. नामों का कटना यहां ‘अस्मिता’ का मुद्दा बन सकता है. कूचबिहार: यहां राजबंशी समुदाय (SC) निर्णायक है. निसिथ प्रमाणिक (केंद्रीय मंत्री) का यह क्षेत्र है. 2021 में सीतलकूची की घटना (फायरिंग में मौत) यहीं हुई थी. यहां नाम कटने पर भाजपा ज्यादा आक्रामक होगी क्योंकि यह उसका कोर वोट बैंक है.

राजनीतिक समीकरण
उत्तर बंगाल भाजपा का सबसे मजबूत क्षेत्र है. 2019 लोकसभा और 2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां एकतरफा जीत हासिल की थी.

7. पूर्व मेदिनीपुर
अधिकारी परिवार का गढ़ बनाम टीएमसी

नाम कटे: 1,41,936 (3.31%)

राजनीतिक समीकरण: यह जिला शुभेंदु अधिकारी का गृह जिला है. यहां कुल 16 सीटें हैं. 2021 में यहां टीएमसी और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर थी. नंदीग्राम बनाम भवानीपुर: रिपोर्ट में सबसे दिलचस्प तुलना यहीं है. नंदीग्राम में 2,78,212 वोटर थे, जिनमें से सिर्फ 10,599 नाम हटाए गए हैं. यह भवानीपुर (ममता की सीट) के मुकाबले बहुत कम है, जहां 44,000 नाम कटे.

क‍िसका फायदा क‍िसका नुकसान
पूर्व मेदिनीपुर में सबसे कम प्रतिशत (3.31%) में नाम कटे हैं. इसका मतलब है कि यहां का वोटर डेटाबेस या तो पहले से साफ था या यहां कम पलायन हुआ है. राजनीतिक रूप से, यह शुभेंदु अधिकारी के लिए राहत की बात है कि उनके गढ़ में भारी कटौती नहीं हुई है, जबकि ममता के गढ़ में बड़ी सर्जरी हुई है.

8. हुगली और हावड़ा
कांटे की टक्कर वाले जिले

हुगली: 3,18,874 (6.68%).

हावड़ा: 44,734 (10.8%)

राजनीतिक समीकरण
हुगली में 2021 में टीएमसी ने बड़ी जीत दर्ज की थी, लेकिन भाजपा ने सिंगूर जैसी प्रतीकात्मक सीट पर भी कड़ी टक्कर दी थी (हालांकि हार गई). लॉकेट चटर्जी यहीं से सांसद थीं (अब हार गईं). टीएमसी की रचना बनर्जी अब यहां से सांसद हैं. यहां 3 लाख से ज्यादा नाम कटना ग्रामीण और अर्ध-शहरी समीकरण को बदल सकता है.

9. जंगलमहल (पुरुलिया, बांकुरा, पश्चिम मेदिनीपुर)
आदिवासी बेल्ट

पुरुलिया: 1,83,416 (7.57%).

बांकुरा: 1,32,821 (4.38%).

पश्चिम मेदिनीपुर: 2,03,341 (5.06%).

राजनीतिक समीकरण: 2019 में भाजपा ने जंगलमहल में झाड़ू फेर दिया था, लेकिन 2021 में टीएमसी ने यहां जबरदस्त वापसी की.

क‍िसे फायदा क‍िसे नुकसान
पुरुलिया में 7.57% नाम कटना महत्वपूर्ण है. यहां कुर्मी और आदिवासी (संथाल) आबादी बहुतायत में है. कुर्मी समुदाय पिछले कुछ समय से आंदोलनरत है. अगर उनके नाम कटे हैं, तो यह चुनाव में बड़ा मुद्दा बनेगा. जंगलमहल की कई सीटों पर जीत-हार का अंतर 2021 में बहुत कम (2000-5000 वोट) था. ऐसे में 1-2 लाख वोटों का कटना किसी भी पार्टी का खेल बिगाड़ सकता है.

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